इंदौर हाईकोर्ट ने 13 साल पुराने कर्मचारी के वेतनमान की राशि को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। असल में जल संसाधन विभाग के कर्मचारी के वेतनमान की राशि के भुगतान को लेकर विभाग के सुपरीटेंडेंट इंजीनियर ने आपत्ति ली थी और उससे राशि की वसूली के आदेश दिए थे। इस पर हाईकोर्ट में लगी याचिका पर कोर्ट ने पीड़ित के पक्ष को सही मानते हुए अब राशि का भुगतान ब्याज सहित विभाग के एसई से वसूलने के आदेश दिए हैं। हाल ही में हाईकोर्ट ने एक मामले में उच्च अधिकारियों के रवैए पर सख्त टिपप्ण की थी इसमें कहा था कि अधिकारी तृतीय व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के लिए मनमाने फैसले लेते हैं। इसके चलते इन्हें कोर्ट का रूख करना होता है।
याचिकाकर्ता की नियुक्ति और वेतन का है मामला
याचिकाकर्ता हरिसिंह जाट को 11 अप्रैल 1975 को स्टेनो टाइपिस्ट के पद पर 169-300 रुपए वेतनमान में मप्र के जल संसाधन विभाग के देवास कार्यालय में नियुक्त किया गया था। नियुक्ति आदेश में टाइपिंग परीक्षा पास करने की कोई शर्त नहीं थी। हालांकि, 5 वर्षों तक उन्हें वेतनवृद्धि नहीं दी गई और 1982 में टाइपिंग परीक्षा पास करने के बाद 1985 में उन्हें पांच वृद्धि प्रदान की गई।
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वेतनमान में बदलाव को लेकर दिया आदेश
उन्होंने बताया कि 1987 में याचिकाकर्ता को 7 वर्षों की सेवा के बाद 740-1180 रुपए के वेतनमान का लाभ दिया गया। यह आदेश सुपरीटेंडेंट इंजीनियर (SE) पीसी बघेल द्वारा जारी किया गया था और General Administration Department द्वारा जारी एक पत्र में यह स्पष्ट किया गया था कि सात वर्षों की सेवा पूरी करने वाले स्टेनो टाइपिस्ट को यह वेतनमान मिलेगा।
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रिटायरमेंट के बाद हुआ विवाद
याचिकाकर्ता 2012 में रिटायर हो गया। उसके बाद उन्हें अपनी सेवा पुस्तिका में यह जानकारी मिली कि Joint Director-cum-Pension Officer ने उनके वेतनमान पर आपत्ति जताई और अधिक राशि की वसूली का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता को इस बारे में कोई नोटिस या जानकारी नहीं किया गया था।
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प्रतिक्रिया और वसूली का निर्देश
याचिकाकर्ता की तरफ से हाईकोर्ट एडवोकेट प्रखर कप्रे और श्रेय चांडक ने पैरवी की। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि उनका वेतनमान गलत तरीके से वापस लिया गया और वसूली का कोई उचित कारण नहीं था। इस पर विभाग ने कहा कि टाइपिंग परीक्षा पास करने की शर्त भर्ती नियमों में थी, लेकिन नियुक्ति आदेश में इसका कोई उल्लेख नहीं था। इसलिए उनकी वृद्धि 1983 से शुरू होनी चाहिए थी और जो अतिरिक्त राशि दी गई थी, उसे वापस लिया जाना चाहिए था।
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कोर्ट ने माना वेतनमान सही दिया
इस पर हाईकोर्ट ने यह माना कि 1987 में याचिकाकर्ता को दिया गया वेतनमान उचित था और इसे बिना किसी वैध आदेश के वापस लेना गलत था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों से वसूली की कोई अनुमति नहीं है। इसको लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के Rafiq Masih मामले और मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्ण पीठ के फैसले का उदाहरण भी दिया। कोर्ट ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता को बिना किसी उचित नोटिस और सुनवाई के उनके वेतनमान से वंचित किया गया जो अवैध और अन्यायपूर्ण था।
एसई से मुआवजा राशि वसूली के आदेश
इंदौर हाईकोर्ट ने हालही में आदेश देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को उनकी पूरी बकाया राशि के साथ 8% वार्षिक ब्याज के साथ 60 दिनों के भीतर भुगतान किया जाए। किसी भी प्रकार की वसूली को रोकते हुए पूरी राशि का भुगतान किया जाएगा। याचिकाकर्ता को 13 वर्षों तक उनकी सेवानिवृत्त लाभों की अदायगी में हुई देरी और अन्य परेशानियों के लिए 50 हजार रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया गया, जो संबंधित अधिकारी से वसूला जाए।