इंदौर के प्राकृतिक जंगल हुकुमचंद मिल में पेड़ कटाई का विरोध, जहां कटे पेड़, वहीं विरोध करने पहुंचे पर्यावरणविद

हुकुमचंद मिल में की गई गुपचुप तरीके से कटाई का विरोध तेज हो गया है। अजय लागू, अरविंद पोरवाल सहित कई पर्यावरणविदों ने कहा कि प्रशासन की यह कार्रवाई न केवल पेड़ों की अवैध कटाई है, बल्कि इंदौर की आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरनाक फैसला भी है।

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Vishwanath Singh
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तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बीच इंदौर का पर्यावरण गंभीर संकट से गुजर रहा है। हरित क्षेत्रों की लगातार कटाई और पेड़ों की घटती संख्या ने शहर की वायु गुणवत्ता और भूजल स्तर दोनों को प्रभावित किया है। इस बीच, हुकुमचंद मिल परिसर स्थित इंदौर का प्राकृतिक जंगल भी प्रशासनिक निर्णयों की आड़ में नष्ट किया जा रहा है। 23 अगस्त की यहां तीन बड़े पेड़ जेसीबी मशीन से उखाड़ दिए गए। इन पर क्रमांक 2, 28 और 32 अंकित थे, यानी ये पेड़ पूर्व में हुई गणना में भी शामिल थे।

पर्यावरणविद बोले, शहर की प्राणवायु छीन रहा प्रशासन

हुकुमचंद मिल में की गई गुपचुप तरीके से कटाई का विरोध तेज हो गया है। अजय लागू, अरविंद पोरवाल सहित कई पर्यावरणविदों ने कहा कि प्रशासन की यह कार्रवाई न केवल पेड़ों की अवैध कटाई है, बल्कि इंदौर की आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरनाक फैसला भी है। उनका कहना है कि इंदौर का यह प्राकृतिक जंगल शहर के वायु संतुलन और जलवायु को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता रहा है।

हुकुमचंद मिल में बड़ी संख्या में पहुंचे पर्यावरणप्रेमी

हुकुमचंद मिल में की जा रही पेड़ों की कटाई के विरोध में बड़ी संख्या में पर्यावरणप्रेमी प्रदर्शन करने पहुंचे। इसमें श्याम सुंदर यादव, डॉ. ओपी जोशी, डॉ. शंकरलाल गर्ग, शिवाजी मोहिते, डॉ. दिलीप वाघेला, संदीप खानवलकर, अजय लागू, अरविंद पोरवाल, अशोक गोलाने, अभय जैन, हरीश मेनारिया, प्रकाश सोनी, राजेन्द्र सिंह, मुकेश वर्मा, डॉ. राजेंद्र बाफना, गुरमीत सिंह छाबड़ा, चन्द्र शेखर गवली, राहुल सिंह, तरुण द्विवेदी, मनोज दीक्षित, प्रमोद नामदेव, लक्ष्मण सिंह चौहान, प्रणीता दीक्षित सहित कई पर्यावरण प्रेमी मौजूद रहे।

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इस तरह से किया विरोध प्रदर्शन

शहर में हरियाली मात्र 9-10%

अध्ययनों के अनुसार इंदौर में शहरी हरियाली अब घटकर मुश्किल से 9-10 प्रतिशत रह गई है। IIT इंदौर और स्मार्ट सिटी के सर्वे में शहर में कुल पेड़ों की संख्या 9-10 लाख बताई गई, जबकि आबादी 36 लाख और पंजीकृत वाहन 34 लाख से अधिक हैं। यानी, हर नागरिक और वाहन के अनुपात में पेड़ बेहद कम हैं। पिछले पांच वर्षों में ही विकास योजनाओं के नाम पर डेढ़ लाख से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं।

डेढ़ लाख पेड़ काट दिए गए

पर्यावरणविदों ने बताया कि आईआईटी इंदौर के एक अन्य आंकलन के अनुसार पिछले 5 वर्षों में विभिन्न विकास योजनाओं हेतु लगभग डेढ़ लाख पेड़ काटे गए। पेड़ कटाई के साथ शहर में पेड़ गिरने की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इसी वर्ष 4, 5 और 6 मई को आंधी तूफान में 250 पेड़ गिरे एवं 50 पेड़ बड़ी शाखाएं टूटने से क्षतिग्रस्त हुए। शहर के बगीचे और ग्रीन बेल्ट की स्थिति भी खराब है, और कई जगह अतिक्रमण है। इसे देखते हुए, शहर के पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

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इन पेड़ों को काट डाला

जल और वायु संकट गहराता जा रहा है

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक इंदौर सहित 30 शहर गंभीर जल संकट का सामना करेंगे। भूजल दोहन पहले ही 90% से अधिक हो चुका है। वहीं, वायु प्रदूषण के मामले में भी इंदौर की स्थिति चिंताजनक है। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम का लक्ष्य है कि PM10 की मात्रा 2026 तक 55 माइक्रोग्राम/घनमीटर लाई जाए, लेकिन शहर अब भी इस लक्ष्य से दूर है।

प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा, तापमान और प्रदूषण बढ़ा

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, इंदौर का औसत तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है। अप्रैल-मई में हीट वेव के दिनों की संख्या बढ़ गई है, जबकि वर्षा दिवस घटे हैं। शहर में प्रदूषण के नए हॉटस्पॉट खासतौर पर भीड़–भाड़ वाले और खान-पान वाले क्षेत्रों में बढ़ते जा रहे हैं। जिस क्रूरता एवं हताशा में इंदौर शहर की प्राणवायु इन जंगलों को धीरे-धीरे नष्ट किया जा रहा है। इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि प्रशासन किसी भी हद तक जाकर अपने ग़लत निर्णय को क्रियान्वित करना चाह रहा है। शासन-प्रशासन यह भूल रहा है कि उनकी यह हठधर्मिता इंदौर की जनता के भविष्य में स्वस्थ्य जीवन के लिए खतरनाक साबित होगी। इंदौर का यह प्राकृतिक जंगल इंदौर शहर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है एवं यह शहर को जिंदा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते आ रहा है। 

स्थानीय नागरिकों की अपील – जंगल बचाओ, भविष्य बचाओ

पर्यावरणविदों और नागरिकों का कहना है कि एक पौधे को पूर्ण विकसित वृक्ष बनने में 30 वर्ष लगते हैं। यदि आज जंगल काट दिए गए, तो भविष्य की पीढ़ियों के पास स्वच्छ हवा और भूजल का संकट गहरा जाएगा। उन्होंने मांग की है कि हुकुमचंद मिल परिसर का यह जंगल तत्काल संरक्षित किया जाए और जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई की जाए। 

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30 साल में एक पौधा बनता है पेड़

उन्होंने बताया कि 1 पौधे को पूर्ण विकसित वृक्ष बनने में 30 साल का समय लगता है। वर्तमान में लगाए गए पौधे लगभग 10 वर्षों के बाद ही आंशिक लाभ देना प्रारंभ करेंगे। ऐसी परिस्थितियों में जो स्थानीय लोगों का स्वस्थ्य जीवन जीने का अधिकार है उसका भी हनन हो रहा है। इंदौर शहर के एकमात्र प्राकृतिक जंगल को इस शहर के लोगों के बेहतर जीवन हेतु संरक्षित किया जाए एवं इसे बचाया जाए।

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