इंदौर हुकुमचंद मिल की जमीन पर लगे 5000 पेड़ संकट में, हाउसिंग बोर्ड के प्रोजेक्ट में यह कटेंगे

मप्र सरकार ने इंदौर के ऑक्सीजन और वाटर रिचार्ज जोन को खत्म करने के लिए सहमति दे दी है। यहां पर बने हुए सैकड़ों साल पुराने जंगल को खत्म कर कमर्शियल और रेसिडेंशियल कॉम्लेक्स बनाने के लिए हाउसिंग बोर्ड को पिछले दिनों हरी झंडी दे गई दी है।

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Vishwanath singh
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MP News : इंदौर देश का सबसे सुंदर शहर तो है ही अब यह स्मार्ट शहर बनाने के लिए भी अग्रसर है। शहर में आए–दिन कई नए प्रोजेक्ट आ रहे हैं। इनके लिए पेड़ाें की कटाई हो रही है। इसके विरोध में अब शहर के सामाजिक संगठन मैदान में उतर गए हैं। उनका कहना है कि हुकुमचंद मिल ( Hukumchand Mil ) की जमीन को सरकार ने हाऊसिंग बोर्ड को बेच दिया है। समाजसेवियों का आरोप है कि बोर्ड अब यहां पर लगे हजारों पेड़ को काटकर हाई राईज बिल्डिंगें बनाएगा। ये पेड़ शहर के फेफड़ों की तरह काम करते हैं। अगर इन्हें भी काट दिया गया तो फिर शहर में हरियाली का ग्राफ कम हो जाएगा और प्रदूषण का स्तर धीरे–धीरे कर बड़ने लगेगा।

पांच हजार से ज्यादा पेड़ काटने का विरोध

मप्र सरकार ने इंदौर के ऑक्सीजन और वाटर रिचार्ज जोन को खत्म करने के लिए सहमति दे दी है। यहां पर बने हुए सैकड़ों साल पुराने जंगल को खत्म कर कमर्शियल और रेसिडेंशियल कॉम्लेक्स बनाने के लिए हाउसिंग बोर्ड को पिछले दिनों हरी झंडी दे गई दी है। इसके बाद से ही शहर की संस्थाओं और समाजसेवियों ने शहर को बचाने के लिए एक बार फिर से कमर कस ली है। सभी ने एक सुर में कहा कि वायु प्रदूषण, सूखे और भीषण गर्मी से जूझते इस इंदौर को अब और बर्बाद नहीं करने दिया जाएगा। यहां पर पांच हजार से अधिक पेड़ों को काटने, तालाब को सुखाने और कुओं को बंद करने की योजना पर काम शुरू हो गया है।

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यह है पूरा मामला

इंदौर के मध्य में स्थित हुकुमचंद मिल की जमीन सरकार ने हाउसिंग बोर्ड को दे दी है। हाउसिंग बोर्ड यहां पर कमर्शियल और रेसिडेंशियल कॉम्लेक्स बनाएगा और फ्लैट, दुकानें आदि बनाकर बेचेगा। यहां पर पांच हजार से अधिक प्राचीन पेड़ हैं और सैकड़ों साल से बना प्राकृतिक जंगल है जिसमें लाखों जीव जंतु निवास करते हैं। जनता की नजर से दूर यह जंगल इंदौर के सबसे खूबसूरत प्राकृतिक स्थलों में से एक है। इसके विरोध में रीगल तिराहे पर बनाई गई मानव भृखला में शहर के राजनीतिक दलों ने भी एकजुटता दिखाई। इंदोर की बड़ी संस्थाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और शहर के प्रबुद्वजन शामिल हुए। सभी ने एक सुर में कहा कि पेड़ों की कटाई को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आयोजन में जनहित पार्टी, कांग्रेस, आप, कम्युनिस्ट पाटी के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। इसके अलावा संस्था सेवा सुरभि, अभ्यास मंडल, इंदौर इनिशिएटिव, मालव मंथन, यूथ होस्टल बस्ती फाउंडेशन, जीवन प्रवाह समेत कई संस्थाओ के सदस्य शामिल हुए।

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डेढ़ हेक्टेयर पर आना है ग्रीन सिटी

इंदौर में दिसंबर 2024 को आयोजित नगर निगम सम्मेलन आयोजित किया गया था। उसमें हुकमचंद मिल की जमीन को लेकर फैसला लिया गया कि डेढ़ हेक्टेयर जमीन पर ग्रीन सिटी विकसित होगी। मिल परिसर की हरियाली को कायम रखा जाएगा। इसको लेकर महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने भी कहा था कि हाउसिंग बोर्ड ने पैसा जमा कर दिया है। जमीन देने की सैद्धांतिक सहमति हुई थी, वह हम दे रहे हैं। बोर्ड ने उसका प्लान बनाया है कि किस तरह का प्राेजेक्ट लाया जा सकता है। उनको जो सबसे अच्छा मुनाफे वाला प्रोजेक्ट लगेगा, वह काम करेंगे। हमारी मंशा है कि वहां डेढ़ हेक्टेयर जमीन को ग्रीन बेल्ट के लिए रखा जाए। यह प्रस्ताव भी हम रखेंगे। साथ ही एमओयू में समय सीमा में प्रोजेक्ट पूरा होने का विशेष ध्यान रखा जाएगा।

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नया जंगल बनाने के लिए फिर करोड़ों रुपए कर्ज लेंगे

शहर के समाजसेवियों और संस्थाओं के सामाजिक कार्यकर्ता अजय लागू, अरविंद पोरवाल का कहना है कि इसे सिटी फारेस्ट घोषित कर दिया जाए। एक तरफ तो हम प्राचीन जंगल को काट रहे हैं और दूसरी तरफ स्कीम-97 में खाली पड़ी 42 एकड़ जमीन पर सिटी फारेस्ट बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि बने बनाए जंगल को काटकर जमीन बेची जा रही है और नया जंगल बनाने के नाम पर फिर से करोड़ों रुपए निकाल लिए जाएंगे। यह कैसा इंसाफ है। 

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बोरिंग और नर्मदा पानी के भरोसे है शहर

शहर में बाग-बगीचों के लिए जल मिले इसके लिए होलकर साम्राज्य के समय से ही कुंए और बावड़ी बनवाने पर जोर दिया गया, लेकिन विकास के नाम पर इनकी भी उपेक्षा की गई। इसके चलते मौजूदा में पूरा शहर बोरिंग और नर्मदा पानी के भरोसे है। समय के साथ पीने के पानी का संकट भी झेलना पड़ रहा है। वहीं बेमोसम बारिश, भीषण गर्मी, दूषित हवा के साथ कई संक्रामक बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।

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पेड़ बचाने की कोशिश हो 

पर्यावरणविद् ओपी जोशी का कहना है कि सरकार कुछ तो सोचे कि इस शहर के साथ कैसा सलूक करना चाह रही है। जहां पहले से पेड़ हैं, उन्हें बचाने की कोशिश होना चाहिए, बजाय इसके कि नया जंगल तैयार किया जाए। यह शहर का प्रमुख ऑक्सीजन और वाटर जोन है, यदि इसे खत्म कर दिया तो फिर कभी इसकी भरपाई नहीं हो पाएगी। शहर के बाहर लाखों पौथे लगाकर हरियाली बढ़ाने का दावा किया जा रहा है। सबसे जरूरी है कि शहर के बीच हरियाली रहे। इसके लिए शहर में हरे-भरे बाग-बगीचे बनाकर, सड़क किनारे पौधे लगाकर उन्हें संरक्षित करने की जरूरत महसूस की जाने लगी है, लेकिन शहर के विकास पुरुष सड़क, सीवरेज और पानी की पाइप लाइन बिछाने में ही समूचा दमखम दिखा रहे हैं।

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यहां प्राचीन पेड़ और पक्षी हैं

जनहित पार्टी के संस्थापक अभय जैन ने कहा कि हुकुमचंद मिल में प्राकृतिक वन है और पांच हजार से अधिक प्राचीन वृक्ष और सैकड़ों पशु पक्षी हैं। वहां पर किसी तरह का कोई प्रोजेक्ट नहीं आना चाहिए। जो भी प्रोजेक्ट लाया जा रहा है उसे तुरंत निरस्त करें वरना बड़े जन आंदोलन के लिए तैयार रहें। कांग्रेस के राहुल निहोरे ने कहा कि सरकार जनता को जीने के लिए शुद्ध हवा, पानी भी नहीं दे रही। जनता की सांसे भी छीन रही है। जनता जाग रही है और अब यह सहन नहीं करेगी। 

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गांधी हॉल भी हरियाली की कमी से बेहाल

शहर सहित समूचे मालवा का मौसम ही उसकी पहचान रहा है, लेकिन मौजूदा में हरियाली की कमी से मौसम का मिजाज बदल गया है। जिस शहर में पहले शाम ठंडी होती थी वहां अब तपन से लोग बेहाल रहते हैं। इस तरह ठंडक घटी और गर्मी बढ़ी है। शहर के पार्क हरियाली की जगह सीमेंट कांक्रीट के विकास से अच्छादित हो रहे हैं। इसके चलते ही नेहरू पार्क के हरे-भरे वृक्ष काटकर वहां रेलवे स्टेशन बना दिया। गांधी हॉल भी हरियाली की कमी से बेहाल हो रहा है। चिमन बाग में भी अब गिनती के पेड़ बचे हुए हैं, लेकिन जिम्मेदारों को इसकी परवाह नहीं है।

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पद्मश्री पलटा और मोंढे ने कहा बस बहुत हुआ

पद्मश्री जनक पलटा और पद्मश्री भालू मोंढे ने कहा कि इंदौर को बचाने के लिए प्रकृति की रक्षा करना ही सर्वोपरी है। अब शहर में एक भी पेड़ कटा तो उसकी भरपाई नहीं हो सकती। इंदौर में पर्यावरण प्रदूषण का खतरा बढ़ गया है। बेतरतीब विकास के लिए शहर में बाग-बगीचों के हरे-भर हजारों वृक्ष काट दिए गए । इससे शहर सहित समूचे मालवा का क्लाइमेट ही बदल गया। तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। बारिश के दिन कम हो रहे हैं और भूमिगत जल खत्म हो रहा है प्रदूषण से पूरा शहर घिरा हुआ है। 

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नाम के रह गए बाग

शहर में किसी समय बाग ही बाग थे। इनमें लालबाग, बक्षीबाग, कैदीबाग, गोपाल बाग, रामबाग, विश्राम बाग, छत्रीबाग, माणिकबाग, केसरबाग, गुलाब बाग, चंदन नगर, छोटे लाल का बगीचा, कृष्षणबाग, सीताराम बाग, एयरपोर्ट रोड पर सीताराम पार्क, महावीर बाग, खासगी बाग, मोहता बाग, महेश बाग, सत्यसांई बाग, गणेश बाग, गंगा बाग, नंदन बाग, राजा बाग, दशरथ बाग, रोशन बाग, नारायणबाग, शंकरबाग, सबनीस बाग, मरीमाता का बगीचा, राधा गोविंद का बगीचा, महावीर का बगीचा, हीरा बाग, पंचवटी, मुमताज बाग, राधाकृष्ण बाग, स्वर्ण बाग, तपेश्वरी बाग, शाहीबाग, अनार बाग, बाबा का बाग, दौलत बाग, छोटा शिवबाग, मसूर बाग, लाला का बगीचा, रुस्तम का बगीचा, दुबे का बगीचा और सीता बाग जैसे अनेक बाग-बगीचे थे। वर्तमान में इनमें से कई बाग नाम के ही बचे हैं, वहां पर पेड़ नहीं हैं। अधिकतर बागों की जगह पर कॉलोनी बन गई है।

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बुद्धिजीवी बोले यह शहर की बर्बादी की शुरुआत

हरियाली को बचाने के लिए शुरू किए गए आंदोलन में एसएल गर्ग, डीके वाघेला, ओपी जोशी, अशोक गोलाने, अजय लागू, संदीप खानवलकर, प्रमोद नामदेव, चंद्रशेखर गवली, उज्जवल स्वामी और अखिलेश जैन समेत कई बुद्धिजीवी भी शामिल हुए। सभी ने कहा कि यह शहर की बर्बादी की शुरुआत है। इसी तरह चलता रहा तो इंदौर में जीवन दूभर हो जाएगा। मौजूदा स्थिति में शहर की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। लोगों को मूलभूत सुविधाएं मुहया कराने के नाम पर अब भी वृक्षों की कटाई जारी है। इसके चलते शहर की प्रमुख सड़कों पर अब छव के लिए वृक्षों की कमी दिखने लगी है। शहरवासियों को राहत देने के लिए चौराहों पर ग्रीन नेट लगाकर कृत्रिम छांव देने का प्रयास किया जा रहा है।

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बड़ी संख्या में आए युवा, बच्चे और महिलाएं

प्रणीता दीक्षित, भावना अहलुवालिया, जयश्री सिक्का ने कहा कि हमारे धर्म में प्रकृति को ही ईश्वर माना गया है। इसके बावजूद प्रकृति का विनाश सोच से परे है। शहरवासियों को भीषण गर्मी, कम बरसात सहित कई तरह की परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। विकास के नाम पर जिस तरह से शहर के बाग-बगीचों को उजाड़ा गया, हजारों हरे–भरे वृक्ष काटे गए, उससे शहर प्रदूषण के मुहाने पर अकर खड़ा हो गया। आयोजन में बड़ी संख्या में कालेज के छात्र और बच्चे भी शामिल हुए।

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