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कर्बला जमीन (जिसे हिंदूवादी संगठन हिंदू चौक धोबी घाट बोल रहे हैं) पर मेले की मंजूरी को लेकर उपजा विवाद फिलहाल थम गया है। हिंदूवादी संगठनों की मांग नगर निगम ने मान ली है। अब इस जगह का नाम कर्बला की बजाय धोबीघाट मैदान किया गया है। नए मंजूरी पत्र में इस जगह को धोबीघाट कहा गया है। वहीं इस जमीन को किराए पर देने के साथ ही यह महापौर पुष्यमित्र भार्गव और नगर निगम ने मास्टर स्ट्रोक मार दिया है।
क्यों कहा जा रहा है इसे मास्टर स्ट्रोक
इस जमीन को बीते साल 14 सितंबर 2024 में ही निगम ने जिला कोर्ट में कानूनी तौर पर स्वामित्व आदेश पाया है। जमीन को लेकर लंबे समय से लड़ाई हो रही थी।
इसके बाद निगम ने महापौर के साथ जाकर 18 सितंबर को जमीन पर कब्जा भी ले लिया और बोर्ड लगा दिया। लेकिन जमीन को लेकर अभी भी आगे कानूनी लड़ाई जारी है। लेकिन इस जमीन पर कमेटी ने जिस तरह से मेले के लिए मंजूरी ली, किराया राशि जमा की और पत्र में जो शर्तें व अन्य बातें लिखी गई हैं वह निगम को स्वामित्व को लेकर कानूनी तौर से मजबूत कर रही है।
कुल मिलाकर कमेटी ने निगम का स्वामित्व माना है और खुद ही किराया राशि भरकर मेले की मंजूरी ली है। आगे वाली कानूनी लड़ाई में यह पत्राचार और मंजूरी पत्र निगम को काफी मजबूत करेगा।
यह 18 सितंबर 2024 की फोटो जब महापौर और निगमायुक्त ने जमीन पर कब्जा लिया गया था...
इन नौ शर्तों पर दिया, जीएसटी भी भरवाया
नगर निगम द्वारा कमेटी के मोहम्मद फारूक राईन व अन्य आवेदकों को यह मंजूरी दी गई है। हालांकि यह पूरी 6 एकड़ जमीन पर नहीं दी गई है। यह मंजूरी केवल 3 एकड़ जमीन पर दी गई है और इसके लिए 84 हजार 854 रुपए का कलेक्टर गाइडलाइन से किराया और साथ ही 18 फीसदी जीएसटी 15 हजार 274 रुपए इस तरह कुल 1 लाख 128 रुपए भरवाए गए हैं।
- शर्त है कि जो भी निगम के अन्य कर होंगे वह भरना होंगे
- मेला स्थल पर अस्थाई लगने वाली दुकान से नगर निगम पटरी शुल्क अलग से लेगा
- आयोजन स्थल पर मेला कमेटी अन्य कोई वसूली नहीं करेगी
- हाईकोर्ट के आदेशों का पालन किया जाएगा
- धर्म, जाति को लेकर कोई टीका-टिप्पणी नहीं
- अनुमति अनुसार ताजिए ठंडे करने का आयोजन समयावधि 6 से 8 जुलाई में ही होगा
- अस्त्र-शस्त्र नहीं होंगे
- सीसीटीवी लगाएंगे आयोजन स्थल पर
- आयोजन में कोई अश्लीलता नहीं होगी।
यह है जमीन का पूरा विवाद
नगर निगम को कर्बला मैदान की 6.70 एकड़ जमीन पर कोर्ट से 14 सितंबर को अपने आदेश से स्वामित्व दिया गया। जिला कोर्ट ने पूर्व 2019 के आदेश को पलटते हुए इस जमीन को वक्फ की संपत्ति मानने से साफ इंकार करते हुए निगम का मालिकाना हक पाया और डिक्री करने के भी आदेश दिए।
कोर्ट ने कहा कि ताजिए ठंडे होने और मोर्हरम वहां होने भर से संपत्ति वक्फ की नहीं होती है। महापौर और निगमायुक्त दोनों ने मिलकर इस केस में मजबूती से पक्ष रखवाया था।
निगम ने कोर्ट में यह तथ्य रखे थे
जिला कोर्ट न्यायाधीश नरसिंह बघेल ने यह फैसला सुनाया था। इसमें नगर निगम याचिकाकर्ता था और प्रतिवादी पक्ष में कर्बला कमेटी और वक्फ बोर्ड था। इसमें निगम का कहना था कि यह जमीन नगर निगम एक्ट 1956 की धारा 82 के तहत हमारी है क्योंकि पूर्व के 1909 एक्ट और बाद में बने एक्ट में भी प्रावधान है कि निगम क्षेत्र की सभी खुली जमीन जो शासन के या किसी व्यक्ति के नाम नहीं वह निगम की होती है। वहीं निगम के रिकार्ड में सर्वे नंबर 17017 में निगम की बंजर जमीन के रूप में और राजस्व रिकार्ड के सर्वे नंबर 1041 में यह जमीन चरनोई के रूप में दर्ज है। निगम ने ही यहां पर धोबी घाट बनवाया है, जिसका वर किराया लेता है और साथ ही यहां पर कर्बला मैदान के लिए साल में तीन दिन की मंजूरी भी निगम द्वारा दी जाती है। यहां पर 1979 से कब्जे का प्रयास हो रहा है। कर्बला कमेटी को केवल 0.02 एकड़ जमीन पर ताजिए ठंडे करने के लिए जमीन दी गई।
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वक्फ कमेटी और कर्बला कमेटी का यह दावा था
कमेटी का कहना था कि यह संपत्ति 1984 में वक्फ की घोषित हो गई थी, गजट नोटिफिकेशन भी हो गया था। यहां 150 साल से कर्बला मैदान पर मेला लगता है और ताजिए ठंडे किए जाते हैं। हलोक समय से यहां यह धार्मिक गतिविधि की जा रही है।
इस आधार पर कोर्ट ने निगम की मानी थी जमीन
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वक्फ कमेटी के गजट नोटिफिकेशन पर 1991 में आपत्ति कोर्ट में लग चुकी है, तत्कालीन कलेक्टर के पास मामला आने पर तहसीलदार से आदेश भी जारी हुए। वक्फ का मुख्य अंश होता है दान दिया जाना, वह इस जमीन को लेकर नहीं है। महाराज ने किसी तरह का पट्टा, दानपत्र नहीं दिया था
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निगम एक्ट की धारा 82 खुली जमीन निगम को देती है
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केवल ताजिए ठंडे करने मोर्हरम के लिए जमीन मिलने से जमीन वक्फ की नहीं हो जाती है।
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