इंदौर की खुशी कूलवाल का सुसाइड मिस्ट्री बना, 7 साल बाद फाइल खुली, नतीजा अब भी सिफर

इंदौर की खुशी कूलवाल का सुसाइड मामला सात साल बाद भी सुलझा नहीं पाया है। जून 2025 में इंदौर पुलिस ने पुनः जांच शुरू की, लेकिन अब भी कोई नतीजा नहीं आया है। रसूखदारों के नाम सामने आए, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में है।

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Manish Kumar
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Photograph: (The Sootr)

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INDORE. इंदौर में सात साल पहले सुसाइड करने वाली खुशी कूलवाल का मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया है। जून 2025 में इंदौर पुलिस ने इस मामले की पड़ताल शुरू कराई थी, लेकिन फिर नतीजा सिफर है।

2018 में इस केस ने पूरे शहर में हड़कंप मचा दिया था। रसूखदारों के नाम आए थे। जांच की गूंज भी हुई, लेकिन हुआ क्या? कुछ भी नहीं। सात साल बाद भी इंसाफ वहीं ठहरा हुआ है। सियासत चुप है। सिस्टम खामोश है और एक महिला की मौत को मिस्ट्री बना दिया गया है। इस पूरे मामले में द सूत्र की पड़ताल में डेली कॉलेज का एक खास कनेक्शन सामने आया है।

पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

क्या था मामला

जुलाई 2018 की वो रात इंदौर के महालक्ष्मीनगर में दर्ज हुई थी। 37 साल की खुशी कूलवाल की लाश उनके फ्लैट में फंदे से लटकी मिली थी। खुशी शहर के नामचीन यशवंत क्लब की मेंबर थीं। वह अपने पति से अलग रहती थीं। क्लब, पब, पार्टियों और हाईप्रोफाइल सर्कल में उनका सीधा उठना-बैठना था। जिस वक्त उन्होंने सुसाइड किया था, तब उनके साथ उनका दोस्त राहुल मौजूद था। कुछ ही देर में खुशी की सांस रुक चुकी थी और राहुल फरार हो गया था। 

असली खिलाड़ी पर्दे के पीछे चले गए

पुलिस को जांच में पता चला कि खुशी की पार्टियों में कारोबारी, अफसर और नेता शामिल होते थे। ड्रग्स सप्लाई के कनेक्शन उजागर हुए। साथ ही तब के कॉलोनाइजर, फाइनेंसर, तत्कालीन यशवंत क्लब मेंबर और डेली कॉलेज के कुछ सदस्यों की भूमिका सामने आई थी। बस फिर क्या था...पुलिस ने असली चेहरों तक हाथ नहीं बढ़ाया। जांच सिर्फ राहुल और कुछ दोस्तों पर अटक गई। बाकी सब को किनारे कर दिया गया। पुलिस ने मौके से तीन मोबाइल जब्त किए थे, लेकिन न सुसाइड नोट मिला, न कोई बड़ा सुराग। इस तरह सिस्टम ने एक महिला की मौत को मामूली कागज बना दिया। असली खिलाड़ी पर्दे के पीछे चले गए।

क्या गोवा में बनाया था खुशी का वीडियो

जांच में पता चला था कि खुशी तब मयूरी नाम की युवती के संपर्क में थी। देर रात पब और बड़े होटलों में पार्टी करती थी। मयूरी ने ही उसे ड्रग्स और शराब की लत लगाई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, खुशी का मयूरी के जरिये धीरज लुल्ला, संजय पाहवा और देवराज से संपर्क हुआ था। आरोप है कि ये तीनों कारोबारी पार्टी के लिए खुशी को गोवा लेकर गए थे। यहां खुशी का वीडियो बनाया गया था। 

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वीडियो वायरल करने की धमकी देते थे

धीरज वीडियो वायरल करने की धमकी देकर बड़े अफसरों से मिलने का दबाव बनाता था। ये सब कुछ सामने आने के बाद इंदौर के तत्कालीन डीआईजी हरिनारायणचारी मिश्र ने खुशी, मयूरी व अन्य पांच संदेहियों की कॉल डिटेल, फार्म हाउस के सीसीटीवी फुटेज जांचने के निर्देश दिए थे। हालांकि बाद में मीडिया से बातचीत में धीरज ने कहा था कि उनके विरोधी यशवंत क्लब चुनाव की रंजिश निकालकर उन्हें बदनाम कर रहे हैं। उनका खुशी से कोई संपर्क नहीं रहा। वे गोवा भी नहीं गए थे। 

बड़े नामों तक नहीं पहुंची पुलिस

सुसाइड मिस्ट्रीः इसके बाद पुलिस ने खुशी से जुड़े कुछ छोटे लोगों के बयान लिए, लेकिन जिन नामों से शहर की सियासत चलती थी, उन तक पुलिस की जांच पहुंची ही नहीं। मामला कांग्रेस के तत्कालीन मंत्री के भाई के इर्द-गिर्द भी घूमता रहा। ड्रग्स पैडलर सोहन उर्फ जोजो ने भी उसका नाम अपने बयान में लिया था। मोबाइल रिकॉर्ड डिलीट करवा दिए गए थे, लेकिन उस समय कांग्रेस की सरकार थी। लिहाजा, सियासी पकड़ मजबूत होने के चलते तत्कालीन मंत्री के भाई पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। 

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नेताजी को डेली कॉलेज में पद मिला

इस केस में राजनीति ने भी अपना खेल दिखाया। नरसिंहगढ़ से पूर्व विधायक राज्यवर्धन सिंह ने उस वक्त विधानसभा में मामला उठाया था। उन्होंने कहा था कि असल आरोपी बचाए जा रहे हैं, जांच में खेल हो रहा है। फिर कुछ साल बाद उन्हें नामचीन डेली कॉलेज के बोर्ड में उपाध्यक्ष बना दिया गया और मामला थम गया। 
उस वक्त डेली कॉलेज से जुड़े कुछ बड़े नाम खुशी के सुसाइड केस में सामने आए थे। माना गया कि राज्यवर्धन सिंह को पद देकर मैनेज कर लिया गया। अब यहां खास यह भी है कि धीरज लुल्ला और संजय पाहवा अभी डेली कॉलेज के बोर्ड में हैं। अब यहां सवाल यही है कि यह सिर्फ इत्तेफाक है या पूरी कहानी स्क्रिप्टेड है। 

सीधी बात: पढ़िए क्या बोले राज्यवर्धन सिंह

द सूत्र: आपने खुशी को न्याय दिलाने के लिए कदम बढ़ाए थे, फिर आगे कुछ क्यों नहीं किया?

राज्यवर्धन सिंह: हां, मैंने उस समय विधानसभा में मामला उठाया था, आगे की कार्रवाई को शासन, प्रशासन को करनी थी। हमने तो अपनी ड्यूटी पूरी कर दी थी। जब उनसे डेली कॉलेज में नियुक्ति को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि मुझे कुछ नहीं कहना है।

द सूत्र: खुशी के परिवार ने आपसे संपर्क किया था?

राज्यवर्धन सिंह: नहीं, मुझसे सीधे संपर्क नहीं हुआ, किसी के माध्यम से मुझ तक मैसेज पहुंचाया गया था। कहा गया था कि हमारी फैमिली को आप इन्वॉल्व मत करो। मैंने तब भी उनसे कहा था कि मैंने तो सिर्फ मुद्दा उठाया है। 

द सूत्र: आपने उस समय मामला उठाया था, तब डेली कॉलेज के बोर्ड के कुछ लोगों के नाम भी खुशी के सुसाइड केस में सामने आए थे?

राज्यवर्धन सिंह: हां, तत्कालीन इंदौर कलेक्टर का नाम भी उसमें आया था, मेरे को टिकट नहीं मिला तो मैं तो हट गया। अब जनहित में मुद्दे उठाना, कुछ काम करवाने में कोई कीमत नहीं है, तो अपन भी अब चुप हो गए हैं। हम जनहित में मुद्दे उठा रहे थे तो लोगों को पसंद नहीं आया। मैं भी क्या करूं। बस इसके अलावा मुझे कुछ नहीं कहना है।

पुलिस की खामोशी भी चर्चा का विषय

खुशी कूलवाल केसमें पुलिस की खामोशी अपने आप में एक बयान बन चुकी है। जब 'द सूत्र' ने इंदौर पुलिस कमिश्नर संतोष सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने न कॉल रिसीव किया, न मैसेज का जवाब दिया। सात साल में सियासत ने अपना खेल खेल लिया, पुलिस ने अपनी आंख मूंद ली और एक महिला की मौत को कागाजों में दफन कर दिया गया।

सुलगते सवाल ज्यों के त्यों...

सवाल आज भी वहीं है कि आखिर खुशी को इंसाफ कब मिलेगा? कौन हैं वो ताकतवर चेहरे, जिनकी वजह से जांच अटकी हुई है? क्या कानून सिर्फ कमजोरों के लिए है? सात साल में न केस आगे बढ़ा, न कोई सजा हुई और न सच्चाई सामने आई। रसूखदार आजाद घूम रहे हैं और एक महिला की मौत रहस्य बन गई है।

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