इंदौर के प्रसिद्ध लैंटर्न होटल, स्टारलिट सिनेमा की जमीन जिसकी कीमत आज बाजार भाव से 300 करोड़ रुपए से ज्यादा है (1.08 लाख वर्गफीट) पर सुप्रीम कोर्ट से फैसला अब कभी भी आ सकता है। इसी बीच इस मामले में अब जमीन पर फिर से कमर्शियल कॉम्प्लेक्स का नक्शा बहाल कराने के लिए खिचड़ी पकने लगी है। इसके लिए यह भी खबरें आ रही हैं कि एक बीजेपी के बड़े नेता और कांग्रेस के एक पूर्व नेता इस मामले में रुचि ले रहे हैं। कांग्रेस नेता की मंशा है कि बीजेपी के इन दिग्गज नेता की मदद से इस नक्शे को करा लिया जाए, जिससे लंबे समय से फंसी उनकी राशि बाहर आ सके।
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क्या है यह मुद्दा
28 नंबर वायएन रोड के 1.08 लाख वर्गफीट के इस प्लाट में से 24570 वर्गफीट जमीन साल 2002 में बिल्डर शरद डोसी ने कैप्टन एचसी धांडा से ली थी। यह वह जमीन है जहां पहले कभी स्टारलिट सिनेमा हुआ करता था। वहीं 2019 में एमएसडी रियल एस्टेट की तरफ से विकास चौधरी ने बाकी बची जमीन 65 करोड़ में धांडा के बेटे जोगेश धांडा (जो ऑस्ट्रेलिया के निवासी हो गए हैं) से खरीदी थी। इस जमीन को लेकर स्टाम्प ड्यूटी, नामांतरण का भी मुद्दा उठा और इसमें करोड़ों की स्टाम्प ड्यूटी का मुद्दा उठाया गया। यह हल होने के बाद तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह द्वारा जमीन की जांच अपर कलेक्टर से कराई गई। इसमें आया कि यह जमीन नगर निगम की है और 1925-26 मिसल बंदोबस्त का रिकॉर्ड निकाला गया।
यह भी कहा गया कि जिस जमीन को धांडा की बताई जा रही है उसकी पोजीशन तो अलग है और वहां अब यशवंत निवास कॉलोनी बन चुकी है। इस जांच के बाद साल 2020 में यहां पर टीएंडसीपी से पास कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के नक्शे और निगम से जारी भवन मंजूरी खारिज हो गई। इसके खिलाफ एमएसडी रियल एस्टेट हाईकोर्ट गया और वहां पर निगम और टीएंडसीपी के आदेश को खारिज कर याचिका मंजूर हो गई। इसके खिलाफ इंदौर नगर निगम सुप्रीम कोर्ट गया। जहां पर नोटिस आदि की पूर्ति हो चुकी है। इसमें 26 मार्च को सुनवाई लगी थी और अब दो अप्रैल को इस मामले में सुनवाई तय की गई है।
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धांडा का कहना जमीन हमारी
वहीं इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कैप्टन एचसी धांडा होलकर राज्य में वाणिज्य मंत्री थे और महाराज ने उन्हें 1946 में यह जमीन गिफ्ट की थी और इसकी गिफ्ट डीड बनी थी। वह इसके पूरी तरह से स्वामी थे। इस जमीन पर 1949 में लैंटर्न होटल की मंजूरी हुई, 1972 में कंपाउंडिंग भी नगर निगम ने की, फिर यहां स्टारलिट ओपन सिनेमा और बाद में हाल की मंजूरी भी दी। सारी मंजूरियां नगर निगम इंदौर ने ही दी और कभी भी इस मामले में स्वामित्व का विवाद नहीं आया, तो फिर अचानक 74 साल बाद निगम इस पर मालिकाना हक कैसे जता रहा है। उधर प्रशासन की जांच के बाद निगम का दावा है कि यह उनकी संपत्ति है और जिस सर्वे नंबर और जमीन की बात एमएसडी कर रहा है वह अन्य सर्वे नंबर है जहां पर यशवंत कॉलोनी बन चुकी है।
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