Indore Municipal Corporation bill scam
संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर नगर निगम बिल घोटाला: 'द सूत्र' की खबर फिर सौ फीसदी सही साबित हुई, नगर निगम के करीब 148 करोड़ रुपए के घोटाले का किंगपिन और कोई नहीं पूर्व निगमायुक्त का चहेता इंजीनियर अभय राठौर ही निकला है। डीसीपी पंकज पाण्डेय ने खुद इसकी पुष्टि कर दी है और उसे आरोपी बताते हुए गिरफ्तारी के लिए सर्च अभियान शुरू कर दिया है। वहीं राठौर के ही रिश्तेदार निगम के सब इंजीनियर उदय भदौरिया और डाटा इंट्री ऑपरेटर चेतन भदौरिया भी इस घोटाले में शामिल है और इन दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
घोटाले में इस तरह रही चहेते इंजीनियर की भूमिका
घोटाले को लेकर डीसीपी पांडेय ने कहा कि आरोपी ठेकेदार साजिद और जाकिर की पूछताछ में निगम के इंजीनयिर, कर्मचारियों की भूमिका बताई गई थी। इसी आधार पर सब इंजीनियर और डेटा इंट्री आपरेटर को गिरफ्तार किया। इन सभी से पूछताछ में इंजीनियर अभय राठौर का नाम आया। इसकी तलाश के लिए घर गए, अन्य जगह भी लेकिन वह नहीं मिला, पुलिस ने आरोपी माना है और राठौर की गिरफ्तारी के लिए तलाश की जा रही है।
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इस तरह किया गया घोटाला
डीसीपी ने कहा कि घोटाला राठौर ने फर्जी फर्म और निगम के कर्मचारियों के साथ मिलकर किया। इंजीनियर ने भुगतान के लिए पूरी फाइल फर्जी तरीके से तैयार की। इनकी डाटा इंट्री गलत तरीके से चेतन भदौरिया से कराई गई। सब इंजीनयर उदय भदौरिया ने मदद की। फिर इस भुगतान की राशि फर्जी फर्म के ठेकेदारों ने अपने खाते में प्राप्त की। सभी डेटा हमने लिए हैं और जांच हो रही है।
राठौर ने ही भदौरिया को लगवाया था काम पर
राठौर ने ही उदय और चेतन भदौरिया को निगम में लगवाया था। राठौर पर पहले भी एक घोटाले के चलते EOW द्वारा छापा मारा जा चुका है। लेकिन पूर्व निगमायुक्त के चहेते होने के चलते लगातार उन्हें शेल्टर मिला और बने रहे। कुछ और अधिकारियों के कार्यकाल में उनकी इसी तरह की फर्जी फाइल सामने आई थी, तब चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। लेकिन वह बाज नहीं आया और इसके बाद फर्जी कंपनियों के जरिए यह खेल कर दिया।
स्वच्छता मिशन में शौचालय बनाने से कराई थी राठौर ने इनकी इंट्री
नगर निगम में स्वच्छता मिशन के तहत शहर में जगह-जगह शौचालयों का निर्माण किया गया। इन्हीं काम के लिए ग्रीन कंसट्रक्शन, नींव कंस्ट्रक्शन, किंग कंसट्रक्शन, क्षितिज इंटरप्राइजेस और जान्हवी इंटरप्राइजेस की इंट्री हुई थी। यह इंट्री इन्हीं चहेते इंजीनियर राठौर द्वारा कराई गई थी। बाद में इंजीनियर और कंपनियों के कर्ताधर्ताओं के बीच अच्छा तालमेल हो गया। लेकिन निगमायुक्त के जाने के बाद यह इंजीनियर निगम में अनाथ से हो गए और इन्हें लगातार आ रही शिकायतों और इसी तरह की कुछ और मिली संदिग्ध फाइल के चलते ड्रेनेज विभाग से निकाल दिया गया।
खूब जतन किए साहब से दबाव डलवाया, लेकिन पाल नहीं मानी
बाद में निगमायुक्त जब शहर में फिर लौटे तो लगातार उनके ऑफिस जाकर निगमायुक्त प्रतिभा पाल को फोन करवाए कि इन्हें वापस ड्रेनेज में लिया जाए। लेकिन इंजीनियर अभय राठौर की लगातार आ रही शिकायतों के चलते वापसी नहीं कराई गई। आशंका इसी बात की है इसी दौरान फुर्सत में बैठे इंजीनियर और इन पांचों फर्जी कंपनियों ने मिलकर यह फर्जी बिल घोटाले का खेल रच दिया।
पुलिस लाइजनर जय जैन को किया सक्रिय, लेकिन उलझ गए
इस मामले में इंजीनियर को भी भनक लग चुकी थी कि वह उलझ सकते हैं, ऐसे में उन्होंने अपना जोर लगाना शुरू कर दिया और इसके लिए मप्र और इंदौर में पुलिस विभाग के सबसे सक्रिय लाइजनर जेजे यानि जयसिंह जैन की मदद ली। लेकिन इस घोटाले के भोपाल तक तूल पकड़ जाने और मामला सीएम डॉ. मोहन यादव और नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय तक पहुंचने के बाद जेजे की ज्यादा गोटियां सेट नहीं हुई। कोशिश यही थी कि गगरी पूरी ठेकेदारों पर नीचे के एख- दो निगम कर्मचारियों पर फोड़ी जाए। जेजे ने थाना स्तर से लेकर उच्च स्तर तक मेल-मुलाकात की।
ऑडिट शाखा के तीन कर्मचारी भी हो रहे सस्पेंड निपटेंगे
नगर निगम की प्रारंभिक जांच में आडिट शाखा के डिप्टी डायरेक्टर समरसिंह परमार, सीनियर ऑडीटर जगदीश अहरोलिया और असिस्टेंड ऑडिटर रामेशवर परमार भी दोषी पाए गए हैं। इन पर कार्रवाई के लिए निगमायुक्त शिवम वर्मा पहले ही शासन को पत्र भेज चुके हैं। वहीं इसके पहले विनियमितकर्मी सुनील भंवर व भूपेंद्र पुरोहित को निगमायुक्त पहले ही लेखा शाखा से ट्रेचिंग ग्राउंड ट्रांसफर कर दिया था, ताकि जांच प्रभावित नहीं हो।
कुल चार एफआईआर है
उधर एमजी रोड पुलिस थाने में इन ठेकेदारों के खिलाफ तीन और एफआईआर दर्ज हो गई है। यह निगम से पुलिस द्वारा बाद में पकड़ी 16 फाइल जिसमें 21 करोड़ का घोटाला पाया था, उससे जुड़ी हुई है। यह सभी एफआईआर धारा 420, 467, 468, 471, 474, 120बी और 34 के तहत दर्ज हुई है। उधर बढेरा के डीबी सिटी स्थित मकान पर पुलिस ने छापा मारा, लेकिन दोनों आरोपी नहीं मिले हैं।
- पहली एफआईआर 0134- 16 अप्रैल को- इसमें मोहम्मज सिद्दकी और उनके बेटे जाकिर व साजिक के साथ रेणु बडेरा और राहुल बडेरा आरोपी है।
- दूसरी एफआईआर 0147- 26 अप्रैल को- इसमें साजिद, सिद्दकी और राहुल बडेरा है
- तीसरी एफआईआर-0148- इसमें सिद्दकी, जाकिर और रेणु बडेरा है।
- चौथी एफआईआर- 0149- इसमें साजिद आरोपी है।
नौ साल में कंपनियों के नाम 147 करोड़ की बिलिंग
यह घोटाला जो पहले ड्रेनेज विभाग की 20 फाइलों में 28.76 करोड़ रुपए से शुरु हुआ था वह अब 147 करोड़ तक पहुंच गया है। इसके बाद पुलिस ने 16 और फाइल जब्त की जिसमें इन कंपनियों के 20 करोड़ का मामला था। वहीं निगम की जांच में 88 फाइल और अन्य विभागों की इन्हीं कंपनियों से जुड़ी सामने आई है। इसमें 99 करोड़ रुपए के भुगतान का मामला था। यह पूरा मामला साल 2015 से 2022 के बीच का है, जिसके काम के बिल लगाए गए हैं। बताया जा रहा है कि अभी तक निगम द्वारा 79 करोड़ रुपए का भुगतान भी हो चुका है। इसमें से कितने काम असल में हुए और कितने नहीं, निगम की टीम अभी इसी मुद्दे की जांच कर रही है।