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इंदौर के नगर निगम में एक और बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। चंदन नगर क्षेत्र में बिना एमआईसी की मंजूरी के नामकरण बोर्ड लगाए गए और इसके भुगतान के लिए लाखों रुपए निगम द्वारा रिलीज भी कर दिए गए। अब सवाल उठ रहा है कि जब एमआईसी से अनुमति ही नहीं थी, तो अधिकारियों ने बिल पास कैसे कर दिए। वहीं, पूर्व में जब महापौर ने घोटाला सामने आने पर पार्षद पर एफआईआर कराने की बात कही थी, लेकिन अब इस पूरे मामले में नगर निगम खुद ही घिरता दिख रहा है।
निगमायुक्त ने गठित की 3 सदस्यीय जांच समिति
चंदन नगर क्षेत्र में बोर्ड लगाने में गड़बड़ी सामने आने के बाद निगमायुक्त शिवम वर्मा ने तीन सदस्यीय जांच समिति बना दी है। इसमें जनकार्य विभाग के अपर आयुक्त अभय राजनगांवकर, अधीक्षण यंत्री डीआर लोधी और उपयंत्री पराग अग्रवाल शामिल हैं। समिति को पांच दिन में रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए हैं।
बिना वैरिफिकेशन के पास हो गए बिल
सूत्रों के अनुसार, यह बोर्ड जोन-15 वार्ड-2 में यातायात विभाग के अफसर के कहने पर लगाए गए। वैरिफिकेशन की जिम्मेदारी सब-इंजीनियर को दी गई थी, लेकिन बिल दूसरे सब-इंजीनियर से पास करवा दिए गए। आमतौर पर जहां ठेकेदारों को भुगतान के लिए सालों लग जाते हैं। वहीं इस मामले में रिकॉर्ड तेजी से फाइल बनी और रकम रिलीज कर दी गई। लेखा शाखा की भूमिका भी अब सवालों के घेरे में है।
यह है अंदर की कहानी
बताया जा रहा है कि ये बोर्ड तो इसी साल जनवरी में लग गए थे। तब सूचना मिलने पर नगर निगम की टीम मौके पर पहुंची थी। तब बोर्ड हटाने को लेकर काफी विवाद हुआ था और क्षेत्रीय पार्षद के हस्तक्षेप के बाद टीम वापस लौट आई थी। उसके कुछ दिन बाद चार-पांच बोर्ड और लग गए। सूत्रों के मुताबिक ये बोर्ड ठेकेदार संजय शर्मा द्वारा लगाए गए है। इस विवाद में अब नगर निगम खुद ही घिर गया है। पहले मामला जहां देखने में आ रहा था कि बोर्ड पार्षद ने बिना मंजूरी के लगवाए हैं। ठेकेदार ने बिना वर्क आर्डर के लगा दिए हैं। अब सामने आया है कि इसका भुगतान तो नगर निगम ने ही किया है। ऐसे में पूरे मामले में नगर निगम इसमें खुद घिर गया है। सवाल तो यह है कि यदि बोर्ड बिना मंजूरी के लगे हैं तो फिर भुगतान कैसे हो गया। यानि बिना जांचे परखे वर्क–आर्डर के भी पेमेंट हो रहे हैं।
कांग्रेस का सवाल, अफसरों पर होगी FIR?
जिस तरह से डेढ़ सौ करोड़ का फर्जी बिल भुगतान घोटाला सामने आया था। वहीं अब कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि महापौर कुछ दिन पूर्व पार्षद पर एफआईआर की बात कर रहे थे। जबकि सामने आ गया है कि भुगतान तो निगम ने किया है। इसका मतलब है कि यह काम मंजूर हुआ था। अब क्या महापौर नगर निगम के अधिकारियों पर एफआईआर करवाएंगे।
एफआईआर पर सस्पेंस
महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने घटना सामने आने के बाद एफआईआर दर्ज कराने की बात कही थी। वार्ड-2 के पार्षद फातमा खान पर मनमाने तरीके से बोर्ड लगवाने के आरोप लगे थे, लेकिन चार दिन बीत जाने के बावजूद थाने में कोई आवेदन नहीं पहुंचा है। यही नहीं, दस्तावेज बताते हैं कि अफसरों की जानकारी में ही यह बोर्ड लगाए गए थे।
दो महीने पहले हुआ था नामकरण विवाद
करीब दो महीने पहले सकीना मंजिल, गौसिया रोड, ख्वाजा रोड और रजा गेट के नाम से बोर्ड लगाए गए थे। इस पर महापौर और विधायक ने आपत्ति जताई थी क्योंकि किसी भी गली-मोहल्ले का नामकरण एमआईसी की मंजूरी के बिना संभव नहीं है। उस वक्त अफसरों ने ठेकेदार को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन अब सामने आए दस्तावेज बताते हैं कि बिल बाकायदा जोन स्तर से वैरिफाई होकर जमा हुए और भुगतान भी कर दिया गया।
निगम में अफसरों के तबादले
घोटाले के बीच रविवार को निगमायुक्त ने कई अफसरों की पदस्थापनाएं बदल दीं। भवन अधिकारी वैभव देवलासे, जिनके पास यातायात विभाग का प्रभार भी था, उनसे यह जिम्मेदारी हटा दी गई और उन्हें योजना शाखा (जोन 12 से 22) का प्रभार दिया गया। वहीं, अश्विनी जनवदे को यातायात विभाग का कार्यपालन यंत्री बनाया गया है। निगमायुक्त का कहना है कि यह सामान्य प्रशासनिक फेरबदल है।
नामकरण समिति अध्यक्ष ने उठाए सवाल
एमआईसी की नामकरण समिति के अध्यक्ष राजेंद्र राठौर ने इस पूरे प्रकरण पर निगम की कार्रवाई पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि सीधे तौर पर कार्यपालन यंत्री की जिम्मेदारी बनती थी, फिर भुगतान कैसे हो गया। अफसर कार्रवाई करने के बजाय एक-दूसरे को बचाने में लगे हैं और उल्टा अच्छे विभागों में पदस्थ कर दिए जा रहे हैं।
दोषी अधिकारियों पर होगी कार्रवाई
महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि चंदन नगर में अवैध बोर्ड लगाने के मामले की जांच के लिए 3 सदस्यीय समिति गठित की गई है। अधिकारियों की गलती के कारण इस प्रकार का कृत्य हुआ है। चाहे मौखिक निर्देश देना हो और बाद में उसका बिल क्लियर करना हो। अवैधानिक बोर्ड लगाने में प्रथम दृष्टि में उपयंत्री और कार्यपालन यंत्री की गलती लगती है। समिति को 3 दिन में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं। कमिश्नर को भी निर्देश दिए कि इस मामले में कठोर कार्रवाही करनी ही होगी। महापौर ने यह भी कहा कि इस कृत्य से नगर निगम को आर्थिक नुकसान भी हुआ है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मामले में एक पार्षद ने ठेकेदार से सीधे संपर्क कर बोर्ड लगवाने का कार्य किया, जिसकी भी जांच होगी। सबके खिलाफ कार्रवाही को इसके निर्देश में पहले ही दे चुका हूं।