नगर निगम का 150 करोड़ का घोटाला दबाया, सालभर पहले ही GST जांच में आया

इंदौर नगर निगम में 150 करोड़ रुपये के फर्जी बिल घोटाले के मामले में सूत्र ने चौंकाने वाला खुलासा किया है, जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे और सोचेंगे कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है।

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Sanjay gupta
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इंदौर नगर निगम में हुए 150 करोड़ रुपए के फर्जी बिल घोटाले मामले में द सूत्र एक चौंकाने वाला खुलासा कर रहा है। इस घोटाले में पहली एफआईआर भले ही 16 अप्रैल 2024 को निगम ने कराई, लेकिन यह मामला स्टेट जीएसटी विभाग की जांच में एक साल पहले ही मार्च-अप्रैल 2023 में सामने आ चुका था। इसकी रिपोर्ट भी बनी लेकिन इसे दबा दिया गया। द सूत्र के पास इसके दस्तावेज मौजूद है। कुछ कंपनियों पर तो निगम ने केस करा दिया है लेकिन उस रिपोर्ट को माने तो इसमें कई और कंपनियां लिंक्ड हैं, जिनकी जांच जरूरी है। 

विभाग की जांच में क्या आया सामने?

जीएसटी विभाग की जांच में सामने आया था कि कुछ कंपनियां जो इंदौर नगर निगम के लिए काम कर रही हैं, वह बोगस बिलिंग कर रही हैं और सरकार से फर्जी तरीके से जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) क्लेम कर रही हैं। यह राशि भी छोटी-मोटी नहीं है बल्कि करोड़ों रुपए में है। इस नेटवर्क में कई कंपनियां शामिल हैं। इन कंपनियों के साल 2021-22 और 2022-23 के जीएसटी रिटर्न की जांच कर विभागीय अधिकारियों ने रिपोर्ट भी तैयार करके दे दी थी लेकिन इस मामले को वहीं दबा दिया गया, ना इसे निगम के अधिकारियों को बताया गया और ना ही इसे उच्च स्तर पर कार्रवाई के लिए पहुंचाया गया।

निगम घोटाले में शामिल कंपनियों के साथ यह भी लिंक्ड

जीएसटी विभाग ने इस मामले में जान्हवी इंटरप्राइजेस, क्षितिज इंटरप्राइजेस, नींव कंस्ट्रक्शन, ग्रीन कंस्ट्रक्शन को सीधे तौर पर फर्जी बिलिंग करके आईटीसी क्लेम में सस्पेसियस कंपनी माना था। यह बिना खरीदी हुई माल की बिक्री होनी बताई जा रही थी और इसी आधार पर आईटीसी क्लेम कर रही थी। इन सभी कंपनियों के संचालकों पर निगम ने एफआईआर दर्ज कराई है और सभी के संचालक गिरफ्तार हुए हैं। इस नेटवर्क में इन कंपनियों के साथ बालाजी इंटरप्राइजेज, मयूर ट्रेडिंग कंपनी, एनआर इंटरप्राइजेज, नील गगन एक्सपोर्ट, जीके ट्रेडर्स, तृप्ती ट्रेडर्स, दिलीप इंटरप्राइजेज, जय महाकाल इंटरप्राइजेज, मनोज ट्रेडर्स और कृष्णा इंटरप्राइजेज भी शामिल है। ऐसे में अब निगम को इन कंपनियों के भी रिकार्ड की जांच करना चाहिए। 

इस घोटाले में यह सभी बने आरोपी

इस महाघोटाले में पुलिस ने करीब दो दर्जन आरोपी बनाए गए हैं। इसमें निगम के भी अधिकारी, कर्मचारी शामिल है। जिसमें अधिकांश कम्प्यूटर डाटा एंट्री करने वाले और लेखा व ऑडिट शाखा के हैं। बाकी सरगना इंजीनियर अभय राठौर को बताया गया। 

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ठेकेदार में ये आरोपी

मोहम्मद साजिद, मोहम्मद जाकिर, मोहम्मद सिदिदकी, राहुल बडेरा, रेणु बडेरा, राजेंद्र शर्मा, मौसम व्यास, मोहम्मद इमरान, जाहिद खान, एहतेशाम उर्फ काकू आशु व अन्य। 

निगम के अधिकारी-कर्मचारी

अभय राठौर सरगना, उदय भदौरिया, चेतना भदौरिया, राजकुमार साल्वी, मुरलीधरन, समर सिंह परमार, अनिल गर्ग, रामेश्वर परमार, जगदीश ओहरिया हैं।

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16 अप्रैल को पहली एफआईआर दर्ज

निगमायुक्त हर्षिका सिंह के समय फरवरी 2024 में बिना काम के कुछ फर्मों को राशि जारी होने की बात सामने आई, इसके बाद उन्होंने जांच के आदेश दिए। इसी दौरान मार्च में सुनील गुप्ता इंजीनियर की कार से मूल फाइल चोरी हो गई, जिससे मामला और संदिग्ध हो गया। इसके बाद कार्रवाई के आदेश हुए। इसी बीच उनका तबादला हो गया, निगमायुक्त शिवम वर्मा के सामने केस आया और उन्होंने एफआईआर के आदेश दिए। पहली एफआईआर 16 अप्रैल को हुई, जिसमें पांच ठेकेदार सिद्दकी, साजिद, जाकिर, राहुल और रेणु आरोपी बने। 

अधिकारी भी लिप्त

पुलिस ने जांच शुरू की और इसी दौरान निगमायुक्त ने तत्कालीन अपर आयुक्त आईएएस सिद्दार्थ जैन की अध्यक्षता में कमेटी बना दी। पुलिस ने जांच के बाद इसमें कुछ और फर्म फर्जी मिली। इसके बाद 26 व 27 को तीन केस और दर्ज हुए। फिर 3 मई को निगम अधिकारियों पर केस हुए और 16 मई को फिर एक और एफआईआर हुई। पुलिस और निगम की जांच में कई अधिकारियों की संलिप्तता सामने आई। पुलिस ने विविध बयानों और सबूतों के आधार पर इसमें सरगना इंजीनियर अभय राठौर को माना और उनके साथ इस गठजोड़ में शामिल लेखा आडिट विभाग व कम्प्यूटर इंट्री करने वालों को आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया गया। पूर्व घोटालेबाज बेलदार असलम के भाई एहतेशाम उर्फ काकू की भी इसमें बड़ी भूमिका सामने आई, उसने कई अपने कर्मचारियों इमरान, मौसम व्यास के साथ ही रिश्तेदारों के नाम पर फर्जी फर्म बनाकर करोड़ों का घोटाला किया। उसे सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली। 

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कुल फाइल 48 में 47.53 करोड़ का भुगतान

पुलिस की जांच में निगम की और से प्रारंभिक तौर पर 28 और फिर 20 फाइल गई। इन फाइलों की जांच में पाया गया कि 47.53 करोड़ का भुगतान यह ठेकेदार निगम से फर्जी काम के लिए ले चुके हैं। उधर, करीब 174 फाइलों में घोटाले की बात सामने आई, जिसमें यह घोटाला सवा सौ से 150 करोड़ के बीच होने की बात सामने आई। 

कहां गई उच्च स्तरीय कमेटी?

इस मामले में महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने मप्र शासन, सीएम, मंत्री विजयवर्गीय को खुला पत्र लिखा और इसमें बड़े घोटाले की आशंका होने की बात कहते हुए और कई लोगों की संलिप्तता की भूमिका को लेकर जांच करने की मांग की। मंत्री विजयवर्गीय का भी भरपूर साथ मिला और जांच की बात कही और कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और सभी की भूमिका की जांच होगी। जोर-शोर से मांग उठी तो सीएम ने भी पीएस अमित राठौर की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी, कमेटी बनने के 15 दिन बाद निगम दफ्तर पहुंची और सुबह से शाम तक दौरा कर लौट गई। इसके बाद पलट कर नहीं आई और ना ही उनकी रिपोर्ट का अता-पता है। इधर सभी ने इस मामले में चुप्पी साध ली है।

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