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इंदौर के नगर नगम में भ्रष्टाचार का एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। इस बार IAS अपर आयुक्त के फर्जी हस्ताक्षर कर करीब 7.53 लाख रुपये की वसूली का फर्जी नोटिस जारी किया गया है। निगम आयुक्त शिवम वर्मा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच के आदेश दिए हैं। प्रारंभिक जांच में एक आउटसोर्स कर्मचारी की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। इसमें किए गए फर्जी साइन को लेकर अपर आयुक्त अभिलाष पांडे, रोहित सिसोनिया आदि के साइन से भी मिलान किया गया। गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व ही नगर निगम में एक फर्जी बिल कांड सामने आ चुका है। जिसमें कर्मचारियों से लेकर अफसरों तक की सहभागिता मिली थी।
आयुक्त कार्यालय से जारी किया था नोटिस
मामला नगर निगम की जनसुनवाई में तब सामने आया जब अशोक कुमार बत्रा, वरुण बत्रा और मयंक बत्रा नामक कुछ लोग निगम कार्यालय पहुंचे। उन्होंने नोटिस की सत्यता को लेकर सवाल उठाए। इन लोगों को 7,53,725 रुपये की राशि जमा करने के लिए जो नोटिस मिला था, उसमें अपर आयुक्त के हस्ताक्षर थे और उसे आयुक्त कार्यालय से जारी बताया गया था।
प्रथम दृष्टया फर्जी पाया गया दस्तावेज
निगम अधिकारियों ने जब नोटिस को देखा, तो उसमें विभाग का नाम तक नहीं लिखा था और हस्ताक्षर भी मौजूदा किसी भी अपर आयुक्त से मेल नहीं खा रहे थे। प्रारंभिक जांच में स्पष्ट हो गया कि नोटिस पूरी तरह फर्जी है। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए आयुक्त ने जांच शुरू करवा दी है।
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हूबहू नगर निगम के मार्केट विभाग की भाषा लिखी
नगर निगम की अपर आयुक्त लता अग्रवाल का कहना है कि फर्जी साइन करके वसूली आदेश देने के मामले में हम एफआईआर करवा रहे हैं। यह रोहित सिसोनिया की साइन नहीं है, वे इस तरह की साइन नहीं करते हैं। हालांकि जिस फॉर्मेट में यह नोटिस लिखा गया है। वैसा ही फॉर्मेट हमारे विभाग द्वारा नोटिस में उपयोग किया जाता है। इससे यह स्पष्ट है कि कोई विभाग का ही व्यक्ति है जिसने नोटिस को असली दिखाने के लिए ना केवल उसमें नगर निगम के मार्केट विभाग की भाषा का उपयोग किया, बल्कि उस पर आवक–जावक नंबर भी दर्ज कर दिए।
कुछ दिन पूर्व ही जारी किए थे नोटिस
अपर आयुक्त अग्रवाल ने बताया कि उन्हाेंने कुछ दिन पूर्व ही कुछ लोगों को विज्ञापन के लिए इसी तरह के नोटिस जारी किए थे। हालांकि उसमें इस नाम से कोई भी नोटिस नहीं था। इसके बारे में मुझे याद है, क्योंकि वे सभी मैंने अच्छे से देखे थे। उन्हीं नोटिस का फायदा उठाकर किसी ने नया फॉर्मेट तैयार किया है और यह नोटिस भेज दिया है।
आवक–जावक नंबर भी फर्जी
उन्होंने बताया कि इस नोटिस पर जो आवक–जावक नंबर लिखा है वह भी फर्जी है। हमने जब उसका मिलान अपने रिकॉर्ड से किया तो ऐसा कोई भी नंबर हमको मिला ही नहीं। असल में जब जब भी कोई नोटिस जारी किया जाता है तो उसको लेकर एक फाइल तैयार की जाती है। इस नोटिस के संबंध में देखने में आया कि कोई फाइल भी नहीं बनी है।
अपर आयुक्तों की साइन से भी मिलाकर देखा
जब इस फर्जी साइन करके नोटिस दिए जाने की जानकारी सामने आई तो सबसे पहले अफसरों ने अपर आयुक्तों द्वारा की जाने वाली साइन वाले पत्र बुलवाए। इसमें अपर आयुक्त रोहित सिसोनिया और अभिलाष पांडे आदि के साइन से इस फर्जी साइन का मिलान किया गया, लेकिन इसका मिलान नहीं हो पाया। क्योंकि नगर निगम के कोई भी अफसर इस तरह के साइन नहीं करते हैं।
रोहित सिसोनिया की साइन करने की कोशिश
सूत्रों के मुताबिक जब फर्जी साइन को नगर निगम के अफसरों ने अच्छे से देखा तो ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी ने अपर आयुक्त रोहित सिसोनिया की साइन करने की कोशिश की है और सिर्फ नाम के आगे वाला अक्षर रोहित लिखने का प्रयास किया है। इस पत्र पर दो साइन किए गए हैं। नीचे वाले साइन से तो ठीक से समझ नहीं आ रहा है, लेकिन जो ऊपर वाली साइन की गई है उसे पढ़ने में रोहित के बजाए राहुल आ रहा है।
साइन करने के लिए लेनी होती है अधकारिक अनुमति
उन्होंने बताया कि नगर निगम में अगर कोई अफसर छुट्टी पर जाता है तो उसके विभाग का चार्ज किसी और को दिया जाता है। अफसर की छुट्टी वाली स्थिति में भी विभाग का काम ना रुके इसके लिए हस्ताक्षर करने के लिए अन्य अफसर को अधिकृत किया जाता है। इसके लिए भी विभाग की तरफ से नियम 69(4) के तहत हस्ताक्षर करने के अधिकार दिए जाते हैं। उसके बाद ही कोई भी अफसर किसी और अफसर की गैरमौजूदगी में साइन कर सकता है। वहीं, इस केस में भी अभी तो मैं छुट्टी पर गई भी नहीं हूं। जिस तारीख का यह पत्र है उस दौरान तो मैं मौजूद थी।
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पोस्ट ऑफिस से मांगे सीसीटीवी फुटेज
नगर निगम के अफसरों का कहना है कि इस फर्जी नोटिस को स्पीड पोस्ट के जरिए भेजा गया है। ऐसे में यह देखा जा रहा है कि इस नोटिस को किसने पोस्ट किया है। इसके लिए हमने पोस्ट ऑफिस के अफसरों को भी पत्र लिखा है। उनसे सीसीटीवी फुटेज की मांग की गई है। जिससे नोटिस को लेकर और ज्यादा स्पष्टता हो जाएगी।
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तोड़–बट्टे के लिए भी हो सकती है पेशकश
इस फर्जी नोटिस से नगर निगम में हड़कंप मच गया है। इसको लेकर अफसर किसी भी तरह का रिस्क लेना नहीं चाहते हैं। अफसरों को अंदेशा है कि इस नोटिस के बाद संबंधित व्यक्ति पार्टी से तोड़–बट्टे के लिए भी संपर्क कर सकता है और इस साढ़े 7 लाख रुपए की राशि को आधा करके निपटान करने की बात कर सकता है। हम उसको लेकर भी सतर्कता बरत रहे हैं और जिन लोगों को भी नोटिस गए हैं उनसे भी इसको लेकर संपर्क किया जा रहा है। अगर कोई व्यक्ति इस तरह से तोड़–बट्टे को लेकर संपर्क करे तो उसकी जानकारी नगर निगम को दी जाए।
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बड़े घोटाले की आशंका
नगर निगम में इस फर्जी साइन वाले नोटिस को लेकर ऐसा माना जा रहा है कि यह कोई बड़ा घोटाला हो सकता है। क्योंकि अभी तक तो केवल एक ही नोटिस सामने आया है। अफसर इसको लेकर खुद ही मान रहे हैं कि यह कोई नगर निगम का कर्मचारी ही है जिसने इस तरह की हरकत की है। ऐसे में उन्हें आशंका है कि अगर इस मामले की तह तक जाएंगे तो कोई बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।
पूर्व में सामने आ चुका है बड़ा घोटाला
नगर निगम में फर्जी साइन करके वसूली नोटिस घोटाला करने का यह मामला पहला नहीं है। इसके पूर्व में भी करोड़ों रुपए का घोटाला हो चुका है। जिसमें ना केवल फर्जी साइन करके नोटिस, पत्र जारी किया जाना मिला था। बल्कि करोड़ाें रुपए के बिल भी उस दौरान सामने आए थे। उसमें भी नगर निगम के कर्मचारियों से लेकर अफसरों तक की मिलीभगत सामने आ चुकी है।
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