रात को गंभीर चेकिंग करने वाली इंदौर पुलिस की आंखों के सामने 7 दिन तक था जीतू यादव
इंदौर पुलिस ने जीतू यादव उर्फ जाटव की गिरफ्तारी में देरी की, जबकि वह सात दिन तक खुलेआम घूमता रहा। पुलिस की सुस्ती के बाद सीएम की फटकार पर कार्रवाई शुरू हुई। पढ़ें पूरी खबर इस लेख में...
जीतू यादव (काले कोट और सफेद कुर्ते में) और सीपी संतोष सिंह (पुलिस वर्दी में)
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00
रात में सड़कों पर जमकर चेकिंग करने वाली हमारी इंदौर पुलिस की आंखों के सामने जीतू यादव उर्फ जाटव उर्फ देवतवार निर्वस्त्र कांड़ करने के बाद सात दिन तक घूमता रहा। तब पुलिस ने उसके आवाज के नमूने लेने और पूछताछ कर बयान लेने की कोई जरूरत नहीं समझी। वहीं कालरा के घर पर जाने वाले उसके समर्थक गुंडे भी चार दिन तक अपने क्षेत्र में सक्रिय रहे। पूरे मामले में भद पिटने के बाद पुलिस ने गिरफ्तारी शुरू की लेकिन अब पूरी कार्रवाई खानापूर्ति बनती जा रही है। दबंग आईपीएस सीपी संतोष सिंह की पुलिस ने शुरू से लेकर अभी तक हाथ पर हाथ धरे रखने और जितना बोलो उतना करो वाली पुलिसिंग से ज्यादा कुछ नहीं किया है।
इस पूरी घटना में यह बड़ी बात सामने आई है कि इंदौर पुलिस ऊपर देखती रही, टीआई साहब डीसीपी की ओर और वह सीपी साहब की ओर कि आगे क्या करना है। वहीं सीपी साहब कानून, संविधान की जगह भोपाल की ओर राजनीतिक कदम पर नजर रखे हुए थे, कि कैसे आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन जब सीएम डॉ. मोहन यादव ने फटकार लगाई और सख्ती दिखाई तब जाकर कानून और संविधान याद आया और फिर धाराएं भी बढ़ी, समर्थक गुंडों की गिरफ्तारी भी हुई और एसआईटी भी बनी। बड़ा सवाल यही है कि यह तो पुलिस खाकी का मान रखते हुए खुद भी कर सकती थी, जो नहीं किया, कम से कम समर्थक गुंडों की पहचान कर गिरफ्तारी और पूछताछ तो हो ही सकती थी और पॉक्सो भी पहले दिन लग सकता था।
चार जनवरी की दोपहर कालरा के घर पर कांड होने के बाद शाम सवा चार बजे जूनी इंदौर पुलिस ने सात धाराओं 191(2), 333, 115, 296, 351(3), 324(4) और 324(5) में केस दर्ज किया लेकिन पॉक्सो नहीं लगाया। केस भी 30-40 अज्ञात पर दर्ज किया।
इसके बाद पुलिस आराम की मुद्रा में चली गई और गुंडे कांड करने के बाद अपने धंधे पानी में फिर लग गए।
जबकि जूनी इंदौर टीआई अनिल गुप्ता को रहवासियों से फोन आया था और वह मौके पर गए थे और उन्हीं की आंखों के सामने से ही यह गुंडे कालरा के घर से निकले, लेकिन कोई नाकाबंदी नहीं और ना ही किसी को उन्होंने पकड़ा
जब यह मुद्दा तेज उठा और पूरे समाज, शहर से गुस्सा जागा, सिंधी समाज ने बंद किया और पुलिस कमिशनर संतोष सिंह से मुलाकात कर कालरा ने आत्महत्या तक की बात कह दी तब पुलिस ने पॉक्सो की धाराएं लगाई। इधर मीडिया ने जब गुंडों की फोटो छापी तो पुलिस की अपनी ड्यूटी थोडी याद आई।
घटना के पांचवे दिन जाकर 9 जनवरी को पुलिस ने 6 आरोपियों को पकड़ा और तब भी रिमांड में लेकर मुख्य आरोपियों को रिकॉर्ड पर लेने की कोशिश नहीं की और सीधे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया।
सीएम को फिर पुलिस की सुस्ती की शिकायत हुई और तब 11 जनवरी को जाकर सीपी ने इस मामले में एसआईटी का गठन किया।
हालांकि इसने भी कोई झंडे नहीं गाड़े, अभी तक 30 को चिह्नित किया है और 18 को गिरफ्तार किया है। लेकिन जीतू यादव और उसका चचेरा भाई अभिलाष दोनों ही उनकी गिरफ्त से बाहर है।
News Strike: BJP में साइडलाइन हो रहे हैं भूपेंद्र सिंह, क्या बयानों से बढ़ी मुश्किलें?
जीतू तो सात दिन तक घूमता रहा
जीतू इस कांड में इस तरह बेफिक्र था कि उसे कुछ नहीं होगा वह लगातार राजनीतिक आयोजनों और निगम के सार्वजनिक आयोजनों में मौजूद रहा। सीएम के स्वागत में भी गया। यहां तक कि पुलिस को ही दलित समाज साथ लेकर कमिशनर ऑफिस में ज्ञापन दे आया और पुलिस ने ज्ञापन भी लिया। बीजेपी ने उसने 11 जून को सुबह इस्तीफा दिया, पार्टी ने दोपहर में निकाल दिया और इसके बाद महापौर ने उसे एमआईसी से निकाल दिया। इसके बाद जीतू गायब हो गया। जो आज तक गायब ही है।