इंदौर में मंत्री के करीबी कन्फेक्शनरी कारोबारी संजय जैसवानी और रशियन नागरिक गौरव अहलावत के बीच चल रही लड़ाई में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। डीजीपी, सीपी, डीसीपी, एसीपी तक मामला जाने के बाद आखिरकर पुलिस ने मंगलवार को अहलावत की एफआईआर करने की बात कही, लेकिन जब वह लसूड़िया थाने पहुंचे तो वहां पर अलग ही मामला हुआ।
यह हुआ घटनाक्रम
मंगलवार को अहलावत के साथ जीआरवी बिस्किट कंपनी के कई मजदूर भी पुलिस कमिश्नर राकेश गुप्ता की जनसुनवाई में जा रहे थे। इसी दौरान उन्हें फोन आता है कि आप लसूड़िया थाने आ जाइए, सोमवार रात को अधिकारियों की मीटिंग हो गई है और हम आपकी एफआईआर कर रहे हैं। इसके बाद अहलावत थाने पहुंच गए।
थाने पर फिर यह हुआ
थाने पर पुलिस ने एफआईआर टाइप करना शुरू कर दिया, लेकिन इसमें अहलावत के पूर्व में दिए गए आवेदन की जगह वह पूछ-पूछ कर लिख रहे थे। साथ ही पूरे 11 आरोपियों के नाम लिखने से भी इनकर दिया गया। इसमें मुख्य आरोपी संजय जैसवानी को ही छोड़ दिया गया। इस पर अहलावत ने आपत्ति ली और एफआईआर कराने से ही इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जो मेरा आवेदन है उसे पूरा लीजिए और सभी आरोपी के नाम लिखिए। इस पर पुलिसकर्मी ने मना कर दिया, तो उन्होंने भी केस कराने से मना कर दिया।
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टीआई ने बोला- हम बताते हैं
इसके बाद वह लौट गए। तब टीआई तारेश सोनी का फोन गया कि आपका केस हो गया या नहीं? उन्होंने कहा, नहीं हुआ, वह मेरे हिसाब से केस दर्ज नहीं कर रहे थे। पहले केस तो जैसवानी पर सीए निशिथ नाहर वाला भी हुआ, लेकिन इसमें कोई कार्रवाई नहीं हुई। मुझे मेरे आवेदन पर विस्तृत गंभीर धाराओं में केस चाहिए और गिरफ्तारी भी, इसके बिना मुझे खानापूर्ति के लिए केस दर्ज नहीं कराना है। इस पर टीआई ने कहा कि हम आपको फिर पता करके बताते हैं।
इन 11 पर FIR की मांग
संजय जैसवानी, संजय कलवानी, कंचन जेवनानी, नितिन जेवनानी, विजय जैसवानी, दिनेश मनवानी, जय माथे, संदीप, नदीम, नीरज और यतिंद्र जोशी।
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