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इंदौर नगर निगम द्वारा अटल बिहारी रीजनल पार्क को ठेके पर देने के लिए हुए ई टेंडर के संदिग्ध होने के द सूत्र के खुलासे के बाद बवाल मच गया है। इस मुद्दे पर नगर निगम घेरे में आ गया है और इसे अपनी पसंदीदा कंपनी को देने के आरोप लग रहे हैं। इस मुद्दे पर अब कांग्रेस जागी है और वह गुरुवार को नगर निगम से इस संबंध में शिकायत करेगी।
टेंडर वापस नहीं तो लोकायुक्त में शिकायत
निगम नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे ने कहा कि वह गुरुवार दोपहर में इसे लेकर नगर निगम में अधिकारियों को ज्ञापन देकर इसे रद्द करने की मांग करेंगे। यदि ऐसा नहीं किया गया तो फिर लोकायुक्त में भ्रष्टाचार को लेकर शिकायत की जाएगी।
दो करोड़ नहीं 20 करोड़ हो किराया
चौकसे ने कहा कि अभी यह दो करोड़ साल के किराए पर निजी कंपनी को देने की तैयारी की जा रही है। जबकि वास्तव में कम से कम 20 करोड़ रुपए इसका किराया होना चाहिए। इससे निजी कंपनी जमकर कमाएगी और निगम को कुछ भी हाथ नहीं आएगा। ई टेंडर प्रक्रिया में एक ही फर्म द्वारा आठ बार संशोधन किए गए, जो बताता है कि इसमें घोटाला हुआ है।
सूत्र ने 31 जुलाई को किया था पूरा खुलासा
सूत्र ने इस पर विस्तृत न्यूज 31 जुलाई को पब्लिश की थी। सूत्र के पास मिली चौंकाने वाली जानकारी के अनुसार टेंडर पाने वाली कंपनी और अन्य प्रतियोगी कंपनी के डायरेक्टर के बीच भी लिंक रही है। इससे साफ हो रहा है कि नगर निगम में टेंडर मैनेज हो रहे हैं और टेंडर भरने वाली कंपनियों की गोपनीय जानकारी अन्य को मिल रही है। इस पूरे मामले में इंदौर से लेकर भोपाल तक टेंडर प्रक्रिया के पोर्टल से जुड़े लोगों और इस पर निगरानी रखने वाले अधिकारियों पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
इस कंपनी की मिली सबसे बड़ी बोली
इन कंपनियों के भरे गए टेंडर के आधार पर बिड खुल चुकी है, जिसे कुछ समय पहले महापौर परिषद (एमआईसी) में रखा गया था। इसमें इंदौर की ऑरेंज कंपनी को सबसे बड़ी बिड मिली है। हालांकि अभी एमआईसी ने औपचारिक तौर पर इसे मंजूर नहीं किया है, क्योंकि इसमें कुछ एमआईसी मेंबर के सुझाव आए हैं। इस टेंडर के अनुसार यह रीजनल पार्क एक तय समय के लिए इस कंपनी को दिया जाएगा और फिर वह कंपनी इसके बदले में बिड में तय राशि हर साल नगर निगम को देगी। बदले में कंपनी ही इस पार्क का मेंटनेंस भी करेगी।
यह है मामला
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अब कैसे इस टेंडर में घोटाले की छाया पड़ रही है
- इस टेंडर के लिए लिंक 5 मार्च को ओपन हुई और 3 अप्रैल अंतिम तारीख थी। लेकिन इस दौरान केवल दो कंपनी के टेंडर आए। इसमें सोना इन्फ्रा पार्क की बिड सबमिट नहीं होने से उसने आवेदन दिया और इसके आधार पर इसमें अंतिम तारीख बढ़ाई गई। हालांकि सोना ने फिर उसी दिन बिड सबमिट कर दी।
- इसी दौरान एक और कंपनी थी, जिसने अपने टेंडर बिड में सुधार किया और इस कंपनी ने बिड भरने की समयसीमा खत्म होने के केवल एक मिनट पहले चार अप्रैल की शाम को बोली में करेक्शन करके फिर सबमिट की। जबकि टेंडर भरने में समस्या केवल सोना कंपनी को आ रही थी लेकिन सुधार दूसरी कंपनी ने भी किया। तो क्या इस कंपनी को पता चल गया था कि एक और कंपनी ने बोली लगाई है और उसकी बोली उससे हल्की निकल सकती है, इसलिए सुधार जरूरी है। जबकि टेंडर किसने भरा यह किसी को पता नहीं चलता है और यह जानकारी गोपनीय होती है। सबसे बड़ा सवाल यही कि दूसरी कंपनी ने यह सुधार क्यों किया।
- इससे सवाल उठता है कि गोपनीय और संवेदनशील जानकारी का लीक हुआ है, संभवतः किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे टेंडर प्रक्रिया को लेकर विशेष पहुंच प्राप्त थी। लीक की संभावना उस संस्था से जुड़ी है जो निविदा प्रक्रिया की निगरानी कर रही थी, जैसे कि परियोजना की परामर्शदाता फर्म या पोर्टल का प्रशासनिक दल।
- जिस कंपनी को टेंडर मिला, आरेंज को, इसे लेकर एक और जानकारी मिली है कि इसने टेंडर में 5, 12, 15 मार्च और तीन व चार अप्रैल को भी संशोधन किया है।
- एक बात और, इस आरेंज कंपनी ने करीब 2.20 करोड़ प्रति साल की बोली लगाई, जो सबसे ज्यादा थी, दूसरी कंपनी की बोली 1.80 करोड़ के करीब की थी और तीसरी कंपनी की सवा करोड़ के करीब की। वहीं इसके पहले भी यह कंपनी पूर्व में टेंडर प्रक्रिया में शामिल हो चुकी है और तब इसकी बिड 1 से सवा करोड़ के बीच ही थी। यानी इस कंपनी ने इस बार एक करोड़ का इजाफा किया है अपनी टेंडर बिड में।
- वहीं एक और इसमें आशंका तेज है, आपस में कंपनियों के लिंक होने की। क्योंकि टेंडर भरने वाली चेन्नई की अरिहंत कंपनी के डायरेक्टर कमल लुनावत, कुछ साल पहले आरेंज इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रालि कंपनी में डायरेक्टर रह चुके हैं। इस तरह बोली लगाने वाली अरीहंत फाउंडेशंस एंड हाउसिंग और ऑरेंज मेगास्ट्रक्चर एलएलपी कंपनी के आपस में लिंक जुड़ रहे हैं। इससे संकेत है कि यह कंपनियाँ आपस में मिलकर बोली लगा रही हैं, जो एक गंभीर मामला है।
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