मंत्री गुट के इनकार ने इंदौर नगर निगम में रिटायर्ड प्रभारी अपर आयुक्त लता अग्रवाल की वापसी को रोका

इंदौर नगर निगम में रिटायर्ड प्रभारी अपर आयुक्त लता अग्रवाल की संविदा नियुक्ति के प्रस्ताव को मंत्री गुट के विरोध के कारण रोक दिया गया। क्या है पूरा मामला... आइए जानते हैं

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Sanjay Gupta
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इंदौर नगर निगम की रिटायर्ड प्रभारी अपर आयुक्त लता अग्रवाल की संविदा नियुक्ति की फाइल अब बंद हो गई है। खुद लता भी समझ चुकी हैं कि अब कोई संभावना नहीं है। दो बार उन्हें नियुक्ति देने की फाइल दौड़ी लेकिन एक बार एमआईसी (मेयर इन काउंसिल) में हल्की बहस हुई और विरोध के बाद अगली एमआईसी तक टाल दी गई। फिर एमआईसी हुई तो इस बार चर्चा ही नहीं और बिना कुछ बोले ही इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

लता अग्रवाल की वापसी क्यों नहीं

लता अग्रवाल 30 जून को रिटायर हुई थीं। उनकी कार्यशैली तेज तर्रार मानी जाती रही है और एक रिमूवल अधिकारी के तौर पर भी वह दबंग अधिकारी रही हैं। लेकिन यही दबंगता भारी पड़ गई है, इसके चलते कई एमआईसी सदस्य उनसे नाराज रहे कि वह सुनती नहीं हैं। एमआईसी सदस्य नंदू पहाड़िया, निरंजन सिंह चौहान और राजेश उदावत तो पहले से ही नाराज थे, बाद में, इन्हीं के विरोध से पहली बार भी प्रस्ताव अटक गया था। बाद में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय गुट के राजेंद्र राठौर व अन्य ने भी उनका साथ दिया। महापौर पुष्यमित्र भार्गव किसी भी हाल में मंत्री गुट से कोई मनमुटाव नहीं चाहते हैं। इसके चलते इस प्रस्ताव को पूरी तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

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शॉर्ट में समझें लता अग्रवाल की नियुक्ति से जुड़ा मामला

  1. लता अग्रवाल की नियुक्ति रोकी गई: इंदौर नगर निगम की रिटायर्ड प्रभारी अपर आयुक्त लता अग्रवाल की संविदा नियुक्ति को मंत्री गुट और अन्य अधिकारियों के विरोध के कारण रोक दिया गया।

  2. कार्यशैली से नाराजगी: लता अग्रवाल की कार्यशैली, जो तेजतर्रार और दबंग मानी जाती थी, इसके कारण कई एमआईसी सदस्य उनसे नाराज थे, जिससे नियुक्ति प्रस्ताव अटक गया।

  3. मंत्री गुट का विरोध: मंत्री कैलाश विजयवर्गीय गुट के सदस्य राजेंद्र राठौर और अन्य ने लता अग्रवाल की नियुक्ति का विरोध किया, जिससे प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

  4. युवाओं का विरोध: रिटायर्ड अधिकारियों की संविदा नियुक्ति के खिलाफ युवा अधिकारियों और कर्मचारियों ने विरोध किया, उनका कहना था कि इससे युवाओं को अवसर नहीं मिलते।

  5. महापौर की चिंताएं: महापौर पुष्यमित्र भार्गव नवाचार और युवाओं को आगे लाने की बात करते हैं, ऐसे में लता अग्रवाल की नियुक्ति को मंजूरी नहीं दी गई।

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अन्य अधिकारी, कर्मचारी भी नहीं चाहते थे

वहीं इस प्रस्ताव के साथ यह भी गंभीर चर्चा चली कि फिर युवाओं को मौके कब देंगे। रिटायर्ड अधिकारियों को उनकी विशेषज्ञता का लाभ लेने की बात कहते हुए फिर से संविदा पर रख लिया जाता है। इसमें अपर आयुक्त देवेंद्र सिंह सबसे बड़े उदाहरण साबित हुए, जो रिटायर के बाद भी लंबे समय तक डटे रहे और अपनी चलाते रहे। ऐसे में युवा अधिकारी, कर्मचारी भी इस एक्सटेंशन और संविदा नियुक्ति के ट्रेंड के खिलाफ थे, उनका साफ कहना है कि जब मौका नहीं देंगे तो हम अनुभवी कैसे बनेंगे, कब तक यह जमे रहेंगे। खुद महापौर भी नवाचार और युवा को आगे लाने की बात करते हैं, ऐसे में यह भी गलत संदेश जाता।

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