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ई-टेंडर घोटाले के लिए चर्चा में आ चुके मध्यप्रदेश में अब प्रदेश की सबसे बड़ी नगर निगम इंदौर में ई-टेंडर घोटाले की छाया पड़ती दिख रही है। ऐसे कई तथ्य सामने आ रहे हैं जिसके चलते इस पूरे टेंडर को पाने के लिए बड़े स्तर की सांठगांठ की आशंका हो रही है।
द सूत्र के पास मिली चौंकाने वाली जानकारी के अनुसार, टेंडर पाने वाली कंपनी और अन्य प्रतियोगी कंपनी के डायरेक्टर के बीच भी लिंक रही है। इससे साफ हो रहा है कि नगर निगम में टेंडर मैनेज हो रहे हैं और टेंडर भरने वाली कंपनियों की गोपनीय जानकारी अन्य को मिल रही है। इस पूरे मामले में इंदौर से लेकर भोपाल तक टेंडर प्रक्रिया के पोर्टल से जुड़े लोगों और इस पर निगरानी रखने वाले अधिकारियों पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
यह है मामला
इंदौर नगर निगम लंबे समय से अटल बिहारी वाजपेयी पिपल्यापाला रीजनल पार्क को ठेके पर देने के लिए टेंडर कर रहा है। चार-पांच बार इसके लिए टेंडर हो चुके हैं लेकिन किसी ना किसी वजह से यह रद्द कर दिए गए। इस बार 5 मार्च 2025 को निगम से टेंडर बुलाए गए और इसके लिए अंतिम तारीख 3 अप्रैल थी।
टेंडर में तीन कंपनियों के आवेदन आए, इनमें एक कंपनी इंदौर की ऑरेंज मेगास्ट्रक्चर एलएलपी और रिक्लूसिव रियल एस्टेट एंड एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड जॉइंट वेंचर है। इसमें डायरेक्टर राजेश मेहता और गुरजीत (पिंटू) सिंह छाबड़ा हैं।
दूसरी कंपनी चेन्नई, तमिलनाडु की अरिहंत फाउंडेशन एंड हाउजिंग प्राइवेट लिमिटेड है। इसमें डायरेक्टर कमल लुनावत, विमल लुनावत, भरत जैन, करण भसीन, और अन्य हैं।
तीसरी कंपनी रायपुर, छत्तीसगढ़ की सोना इन्फ्रापार्क प्राइवेट लिमिटेड है।
इंदौर नगर निगम में ई-टेंडर मामले को एक नजर में समझें...
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इस कंपनी की मिली सबसे बड़ी बोली
इन कंपनियों के भरे गए टेंडर के आधार पर बिड खुल चुकी है, जिसे कुछ समय पहले महापौर परिषद (एमआईसी) में रखा गया था। इसमें इंदौर की ऑरेंज कंपनी को सबसे बड़ी बिड मिली है।
हालांकि अभी एमआईसी ने औपचारिक तौर पर इसे मंजूर नहीं किया है, क्योंकि इसमें कुछ एमआईसी मेंबर के सुझाव भी आए हैं। इस टेंडर के अनुसार, यह रीजनल पार्क एक तय समय के लिए इस कंपनी को दिया जाएगा। फिर वह कंपनी इसके बदले में बिड में तय राशि हर साल नगर निगम को देगी। बदले में कंपनी ही इस पार्क का मेंटेनेंस भी करेगी।
अब कैसे इस टेंडर में घोटाले की छाया पड़ रही है
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इस टेंडर के लिए लिंक 5 मार्च को ओपन हुई और 3 अप्रैल अंतिम तारीख थी। लेकिन इस दौरान केवल दो कंपनी के टेंडर आए। इसमें सोना इन्फ्रापार्क की बिड सबमिट नहीं होने से उसने आवेदन दिया और इसके आधार पर इसमें अंतिम तारीख बढ़ाई गई। हालांकि सोना ने फिर उसी दिन बिड सबमिट कर दी।
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लेकिन इसी दौरान एक और कंपनी थी, जिसने अपने टेंडर बिड में सुधार किया और इस कंपनी ने बिड भरने की समयसीमा खत्म होने के केवल एक मिनट पहले 4 अप्रैल की शाम को बोली में करेक्शन करके फिर सबमिट की। जबकि टेंडर भरने में समस्या केवल सोना कंपनी को आ रही थी, लेकिन सुधार दूसरी कंपनी ने भी किया।
तो क्या इस कंपनी को पता चल गया था कि एक और कंपनी ने बोली लगाई है और उसकी बोली उससे हल्की निकल सकती है, इसलिए सुधार जरूरी है। जबकि टेंडर किसने भरा यह किसी को पता नहीं चलता है और यह जानकारी गोपनीय होती है। सबसे बड़ा सवाल यही कि दूसरी कंपनी ने यह सुधार क्यों किया। -
इससे सवाल उठता है कि गोपनीय और संवेदनशील जानकारी का लीक हुआ है, संभवतः किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे टेंडर प्रक्रिया को लेकर विशेष पहुंच प्राप्त थी। लीक की संभावना उस संस्था से जुड़ी है जो निविदा प्रक्रिया की निगरानी कर रही थी, जैसे कि परियोजना की परामर्शदाता फर्म या पोर्टल का प्रशासनिक दल।
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जिस कंपनी को टेंडर मिला ऑरेंज को, इसे लेकर एक और जानकारी मिली है कि इसने टेंडर में 5, 12, 15 मार्च और तीन व चार अप्रैल को भी संशोधन किया है।
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एक बात और, इस ऑरेंज कंपनी ने करीब 2.20 करोड़ प्रति साल की बोली लगाई जो सबसे ज्यादा थी, दूसरी कंपनी की बोली 1.80 करोड़ के करीब की थी और तीसरी कंपनी की सवा करोड़ के करीब की। वहीं इसके पहले भी यह कंपनी पूर्व में टेंडर प्रक्रिया में शामिल हो चुकी है और तब इसकी बिड 1 से सवा करोड़ के बीच ही थी। यानी इस कंपनी ने इस बार एक करोड़ का इजाफा किया है अपनी टेंडर बिड में।
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वहीं एक और इसमें आशंका तेज है, आपस में कंपनियों के लिंक होने की। क्योंकि टेंडर भरने वाली चेन्नई की अरिहंत कंपनी के डायरेक्टर कमल लुनावत, कुछ साल पहले ऑरेंज इंफ्रास्ट्रक्चर प्रालि कंपनी में डायरेक्टर रह चुके हैं।
इस तरह बोली लगाने वाली अरिहंत फाउंडेशंस एंड हाउजिंग और ऑरेंज मेगास्ट्रक्चर एलएलपी कंपनी के आपस में लिंक जुड़ रहे हैं। इससे संकेत है कि ये कंपनियां आपस में मिलकर बोली लगा रही हैं, जो एक गंभीर मामला है।
क्या बोल रहे निगमायुक्त
इंदौर निगमायुक्त शिवम वर्मा का कहना है कि पूरी टेंडर प्रक्रिया भोपाल के सॉफ्टवेयर से चलती है, इसमें स्थानीय स्तर पर कोई भूमिका नहीं होती है। टेंडर पूरी तरह गोपनीय होता है। अभी टेंडर बिड खुली है, किसी को दिया नहीं है। यदि कोई सवाल उठते हैं तो इसका परीक्षण किया जाएगा।
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