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इंदौर नगर निगम के जरिए गणेशगंज में की गई बदलापुर की चर्चित कार्रवाई में आखिरकार मामला रफा-दफा हो गया है। गुरुवार को हुई मेयर-इन-काउंसिल की बैठक में इसे लेकर महापौर पुष्यमित्र भार्गव के जरिए एमआईसी मेंबर की कमेटी बनाई गई थी। इसमें अधिकारियों के खिलाफ लिखा गया था कि प्रक्रियागत त्रुटि की गई है।
क्या था गणेशगंज का चर्चित बदलापुर मामला, समझें
साल 2016-17 में सड़क चौड़ीकरण में गणेशगंज में रहने वाले रविशंकर मिश्रा ने दो करोड़ के मुआवजे का केस कोर्ट में लगाया। इसमें चार अप्रैल 2025 को कोर्ट ने बजावरी आदेश जारी कर दिए। इस पर चार अप्रैल को, जिस दिन निगम का बजट सत्र चल रहा था, कोर्ट के आदेश से टीम पहुंची और कुर्की कर दी। इससे निगम की भद पिटी। इस पर मिश्रा के यहां 8 अप्रैल को निगम की धड़ाधड़ टीमें पहुंची और सब कुछ सीज कर मारा।
महापौर ने इसे कहा था अराजकता
महापौर भार्गव अगले दिन दिल्ली से लौटकर सीधे मिश्रा के यहां गए। निगम की कार्रवाई पर जमकर गुस्सा निकाला और इसे सरासर अराजकता का नाम दिया और जांच के लिए कमेटी बना दी। उन्होंने कहा था कि निगम के अधिकारियों की गलती के कारण द्वेषपूर्ण कार्रवाई की गई।
बिना वैधानिक नोटिस दिए, किसी का पक्ष सुने ऐसे व्यक्ति पर कार्रवाई हुई जो वैधानिक तरीके से कोर्ट में अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है। जिसने भी द्वेषपूर्ण तरीके से यह कार्रवाई की है, ऐसे अधिकारियों के खिलाफ, कर्मचारी नहीं अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। मंशा समझी जाएगी, आखिर ऐसा क्यों कार्रवाई की गई। आम आदमी और नागरिक को अगर कोई परेशान करेगा तो कार्रवाई होगी।
गणेशगंज के बदलापुर मामले को ए समझें...
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अब इस दो लाइन से निपट गया मामला
इस मामले में एमआईसी बैठक में कमेटी की रिपोर्ट पेश की गई। इस पर केवल एक मिनट ही चर्चा हुई और चेतावनी देते हुए कहा गया कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। जो भी कार्रवाई हो, इसके लिए पूरी प्रक्रिया का पालन किया जाए। इसके साथ ही मामला खत्म हो गया।
एमआईसी कमेटी की रिपोर्ट में यह था
इस रिपोर्ट में है कि इस मामले में कार्रवाई आदेश अपर आयुक्त आईएएस रोहित सिसोनिया का था। कार्रवाई करने में जोनल व बिल्डिंग अधिकारी पल्लवी पाल, फायर ऑफिसर विनोद मिश्रा के साथ अन्य अधिकारी भी थे।
इनके जरिए की गई कार्रवाई तो सही है, लेकिन यह नियमानुसार नहीं हुई और ना ही इसमें विधि सम्मत प्रक्रिया का पालन किया गया। यह कार्रवाई अचानक दबिश मारने जैसी थी। अधिकारियों को इसमें प्रक्रिया का पालन करते हुए नोटिस जारी कर फिर आगे कार्रवाई करनी थी, जो नहीं किया गया। इसके चलते पूरे मामले में शहर में निगम को लेकर गलत संदेश गया और इसे बदले की कार्रवाई के रूप में देखा गया।
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