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इंदौर में श्रीराम मंदिर व खेड़ापति हनुमान मंदिर की नाम की सरकारी जमीन, जिसे 2008-09 में वर्ग विशेष के 18 लोगों ने अपने नाम करा लिया था, आखिरकार उसे फिर से सरकारी घोषित कर दिया गया है। इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह ने इस जमीन को सरकारी घोषित करने, फिर से सरकार के नाम दर्ज करने और कब्जा लेने के आदेश दे दिए हैं। इसके लिए लंबी मेहनत हुई और हजारों पन्नों के आदेश, दस्तावेज खंगाले गए। इसके बाद इंदौर प्रशासन ने यह अहम कामयाबी हासिल की है।
इस जमीन का है मामला
ग्राम पिपल्याकुमार की सर्वे नंबर 206 की यह जमीन 1925-26 के मिसल बंदोबस्त में देवस्थान खेड़ापति हनुमान मंदिर नंदराम के नाम पर थी। फिर यह जमीन बाबूदास बैरागी को गुरु-शिष्य परंपरा के तहत ओंकारदास से मिली। यह जमीन साल 1997-98 से 2008-09 तक श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर व्यवस्थापक कलेक्टर के नाम पर होकर सरकारी रही। लेकिन इसके बाद इस जमीन पर नामांतरण हो गए और यह निजी खाते में चली गई।
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इन्होंने करा ली जमीन अपने नाम पर
तत्कालीन तहसीलदार ने विभिन्न न्यायलयीन आदेशों का हवाला देकर जमीन के 11 टुकड़े करते हुए इनके नाम पर नामांतरण और बटांकन कर दिए। मंदिर की जमीन इम्तियाज पिता अब्दुल रज्जाक, सैय्यद मोइनउद्दीन अहमद पिता सैय्यद बहाउद्दीन, मोहम्मद सलीम पिता अब्दुल रज्जाक, मोहम्मद फारूख पिता हाजी इब्राहीम, आबेदा पत्नी मोहम्मद फारूख, मोहम्मद नईम पिता नूर मोहम्मद, आबेद पत्नी फारूक, मोहम्मद अशफाक पिता अब्दुल रज्जाक, मोहम्मद सलीम पिता हाजी इब्राहीम, असलम पिता अब्दुल रज्जाक, अंजुम पत्नी सलीम, अब्दुल रज्जाक पिता अब्दुल शकूर, मोहम्मद मुनाफ पिता अब्दुल शकूर, नूर मोहम्मद पिता अब्दुल शकूर, नूर मोहम्मद पिता अब्दुल शकूर, अब्दुल मजीद पिता अब्दुल शकूर, इकबाल पिता अब्दुल शकूर, बाबूदास पिता गंगादास, मोहम्मद माज पिता मोहम्मद यह दौलतगंज और ब्रुकबांड कॉलोनी के निवासी हैं, के नाम पर चढ़ गई।
इंदौर में श्रीराम और खेड़ापति हनुमान मंदिर की जमीन सरकारी घोषित
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जिला कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक हारा प्रशासन
इस जमीन को बाबूदास बैरागी ने अपने स्वत्व की घोषणा 1995 में जिला कोर्ट से आदेश हासिल कर लिया। इसके बाद प्रशासन की देरी से हुई अपील के चलते 2000 में सरकारी जमीन की याचिका खारिज हो गई। वहीं देरी से अपील के चलते यह अपील 2001 में हाईकोर्ट और फिर 2004 में सुप्रीम कोर्ट में भी खारिज हो गई। इसके बाद बैरागी ने जमीन बेचकर वर्ग विशेष के नाम करवा दी। इसमें जून 2016 में राजस्व मंडल से भी इन्हीं के हक में फैसला हुआ।
जमीन को बचाने के लिए प्रशासन ने ऐसे निकाला रास्ता
इस मामले में लगातार विवाद था और मंदिर की जमीन दूसरों के हाथ में चली गई। इस पर कलेक्टर आशीष सिंह ने संज्ञान लिया और इसकी पूरी जांच के आदेश दिए। एसडीएम जूनी इंदौर प्रदीप सोनी ने इसमें कोर्ट के सभी आदेश, नामांतरण आदेश और पूरी फाइल के हजारों पन्ने खंगाले।
इसमें रास्ता 1995 में बैरागी के ही पक्ष में जिला कोर्ट के आदेश में ही निकला। जिला कोर्ट ने भले ही जमीन पर स्वामित्व बैरागी का माना, लेकिन कहा कि- मंदिर की जमीन पूजा अर्चना के लिए दी गई है और वादी का इस पर स्वामित्व है। यानी जिला कोर्ट का साफ कहना था कि जब तक वादी यानी बैरागी इस जमीन पर पूजा अर्चना और धार्मिक काम करता है, तब तक जमीन उसी के पास रहेगी, लेकिन इसमें कहीं भी उसे जमीन बेचने और निजी करने के अधिकार नहीं थे। इसी आधार पर एसडीएम ने इस केस को पुनरीक्षण के लिए कलेक्टर की कोर्ट में भेजा। यहां पर कलेक्टर ने केस दर्ज कर सुनवाई की और सभी पक्षों से जवाब मांगा।
कलेक्टर ने इस आधार पर जमीन वापस ली
कलेक्टर सिंह ने सभी पक्षों को सुनने के बाद आदेश में कहा कि जिला कोर्ट के 1995 के आदेश में केवल पूजा अर्चन के लिए ही जमीन का स्वामित्व बैरागी का माना था, ना कि इसे बेचने के लिए। मध्य प्रदेश शासन के धर्मस्व विभाग का भी अक्टूबर 2014 का आदेश है, जिसमें देव/मूर्ति/मंदिर की मूल भूमि वापस लेने के लिए कहा गया है।
इसके तहत यह पुनरीक्षण स्वीकार किया जाता है और आदेश दिए जाते हैं जूनी इंदौर तहसील द्वारा सर्वे नंबर 206 पर किए गए सभी नामांतरण, बटांकन रद्द किए जाते हैं और जमीन को सरकारी घोषित कर राजस्व रिकॉर्ड में कॉलम 3 में श्री खेड़ापति मंदिर व श्री राम मंदिर व्यवस्थापक कलेक्टर किया जाए। अब प्रशासन द्वारा मौके पर जाकर जमीन का कब्जा लिया जाएगा।
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आईएएस आशीष सिंह | इंदौर सरकारी भूमि