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Indore. इंदौर में त्रिशला हाउसिंग सोसायटी में भूमाफिया दीपक मद्दा व अन्य के 1000 करोड़ के खेल की पोल 'द सूत्र' ने खोली थी। इसके बाद भी सहकारिता विभाग ने इसके चुनाव करा दिए। अब इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित विभागों को जमकर फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि आखिर इन चुनाव की जल्दी क्या थी, जब सदस्यों की सदस्यता का ही निर्धारण होना बाकी था।
सुप्रीम कोर्ट ने डायस से यह दिए आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों से पूछा कि चुनाव की आखिर जल्दबाजी क्यों थी। हाईकोर्ट में चुनाव की याचिका भंवरलाल ने दायर की। उनकी याचिका पर चुनाव कराने के आदेश हुए। भंवरलाल ने कहा कि संस्था का समयकाल पूरा हो गया था इसलिए चुनाव कराना जरूरी था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाउसिंग सोसायटी की सदस्यता का मतलब है कि प्लॉट/अपार्टमेंट ऑनर, उन्हें कैसे बाहर किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले सदस्यता का तय होना जरूरी है। इसलिए हम हाईकोर्ट इंदौर के अभी तक के सभी आदेश को स्टे करते हैं और इलेक्शन कमेटी रहेगी। इसमें पूर्व हाईकोर्ट चीफ जस्टिस प्रमुख होंगे, यह पहले सदस्यता तय करेंगे। इसके बाद इन्हीं के सुपरविजन मे चुनाव होंगे। वहीं जो चुनाव हुए हैं और निर्वाचित हुए हैं उन्हें होल्ड किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश मौखिक तौर पर सुनवाई में दिए, अभी औपचारिक आदेश आना बाकी है।
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हाईकोर्ट के सिंगल और डबल बेंच आदेश में यह था
हाईकोर्ट सिंगल बेंच ने जुलाई में भंवरलाल की याचिका पर आदेश देते हुए तीन माह में चुनाव कराने के आदेश दिए थे। इसके बाद सिद्दार्थ पोखरना सहित 30 से अधिक सदस्यों ने आपत्ति लगाई थी। साथ ही उन्हें मतदाता सूची से ही बाहर कर दिया गया है, पहले उनकी सदस्यता तय हो। इस पर सहकारिता अधिकारियों ने जमकर खेल किया। इसके अलावा यह कहकर आपत्तियों को दरकिनार किया कि संस्था की मूल रजिस्टर नहीं है।
वहीं जो ऑडिट रजिस्टर है इसमें उनके नाम ही नहीं है, ऐसे में वह सदस्य नहीं है। जबकि पोखरना तो साल 2000 से 2006 तक संस्था में अध्यक्ष/उपाध्यक्ष जैसे पद पर ही रहे हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले में लगी सभी याचिकाएं खारिज कर दी थी। इसके बाद चुनाव समय पर हुए और भूमाफियाओं ने मनचाहा संचालक बोर्ड बनवा लिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रितेश इनानी, आस्तिक गुप्ता और ऋषि श्रीवास्तव ने पक्ष रखा।
विवाद होने पर मद्दा व दोनों भाई ने नामांकन वापस लिया था
'द सूत्र' द्वारा खुलासा करने के बाद दीपक मद्दा के साथ ही उनके दोनों भाई कमलेश जैन और निलेश जैन ने भी नाम वापस ले लिया था। साथ ही उनके करीबी नरसिंह गुप्ता, हाईकोर्ट में चुनाव में याचिका लगाने वाले भवंरलाल गुर्जर ने भी नामांकन वापस ले लिया था।
इसके साथ ही चंद्रप्रकाश सामिलदास परिहार, पवन ओमप्रकाश सिंह, भाग्यश्री चिटणीस, वर्षा पिता ओमप्रकाश, आशा रामकुमार उमरिया, संजय सेंगर, नीरज गाले ने नाम वापस लिया। इसके बाद संस्था के संचालक बोर्ड में 10 पदों पर निर्विरोध उम्मीदवार आ गए। निर्विरोध आए उम्मीदवारों में नंदकिशोर छगनलाल गौड़, रामचंद्र कंवरलाल बागौरा, निखिल सदाशिव अग्रवाल, ईश्वर कालूराम अग्रवाल, मोहन गोपाल सिंह झाला, महेंद्र हुकुमचंद वोरा (जैन), नीरज मांगीलाल माते, अन्नुलाल मलकु कुमरे, ममता दिलीप जैन और सपना मंगेश जैन शामिल थे।
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11 पदों के लिए आए थे 22 नामांकन फार्म
कमलेश आनंदीलाल जैन, नरसिंह मोहनलाल गुप्ता, दिलीप आनंदीलाल सिसौदिया, निलेश आनंदीलाल जैन, ममता दिलीप जैन, सपना मंगेश जैन, नंदकिशोर छगनलाल गौड़, चंद्रपर्काश सामिलदास परिहार, रामचंद्र कंवरलाल बागौरा, राजेंद्र सिंह ग्यासी परिहार, निखिल सदाशिव अग्रवाल, पवन ओमप्रकाश सिंह, अन्नुलाल मलकु कुमरे, ईश्वर कालूराम अग्रवाल, मोहन गोपाल सिंह झाला, भंवरलाल गुर्जर, भाग्यश्री पिता अशोक चिटणी, वर्षा पिता ओमप्रकाश, आशा रामकुमार , संजय सरनाम सेंगर, महेंद्र हुकुमचंद वोरा और नीरज मांगीलाल गाले।