भोपाल के ईरानी डेरे में लगे खामेनेई के पोस्टर्स, वैचारिक विरोध या धार्मिक समर्थन? जानिए पूरा मामला

भोपाल के ईरानी डेरे में मोहर्रम के दौरान खामेनेई के पोस्टर्स लगाए गए। इसके माध्यम से ईरान और भारत के बीच धार्मिक और वैचारिक समर्थन का संदेश दिया गया है।

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Amresh Kushwaha
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मोहर्रम के अवसर पर भोपाल रेलवे स्टेशन के पास स्थित ईरानी डेरा में इस बार कुछ खास देखने को मिला। यहां ईरान के शीर्ष धार्मिक और सैन्य नेताओं जैसे आयतुल्ला अली खामेनेई, जनरल कासिम सुलेमानी, अली अल सिस्तानी, मोहम्मद बाघेरी और अयातुल्ला खोमैनी के बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए हैं। इन पोस्टरों के साथ भारतीय तिरंगा भी नजर आया, जो इस आयोजन को एक अनोखा आयाम देता है।

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यह एक वैचारिक प्रदर्शन का हिस्सा

फतेहपुर से आए इरानी डेरे के इमाम शाहकार हुसैन ने स्पष्ट किया कि यह आयोजन किसी जश्न का हिस्सा नहीं है। उनका कहना है कि, इस बार पोस्टरों की संख्या ज्यादा है क्योंकि हाल ही में इजराइल और ईरान के बीच जो टकराव हुआ, उसमें ईरान ने मजबूत प्रतिक्रिया दी। यह वैचारिक समर्थन और अन्याय के खिलाफ एक स्पष्ट स्टैंड है।

भारत के रुख की सराहना

ईरानी कल्चरल हाउस की ओर से भारत को धन्यवाद पत्र भेजा गया है। इसमें भारत के संतुलित रुख की तारीफ की गई है। शाहकार हुसैन ने कहा कि भारत ने संघर्ष के दौरान संतुलन बनाए रखा और शांति की अपील की, जबकि यूरोपीय देशों ने इसका स्पष्ट विरोध नहीं किया।\

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भारतीय तिरंगे के साथ पोस्टर्स: एकजुटता का प्रतीक

ईरानी डेरे में तिरंगे के साथ खामेनेई और अन्य नेताओं के पोस्टर लगने को लेकर कुछ सवाल उठे, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि इसमें विरोधाभास नहीं है। मोहम्मद अली नाम के एक व्यक्ति ने कहा, हम भारतीय हैं, देशभक्ति हमारी आस्था का हिस्सा है। तिरंगे के साथ इन पोस्टर्स का मकसद यही दिखाना है कि हमारी धार्मिक सोच भारत की एकता और समरसता से जुड़ी है।

आतंक के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक

यहां लगे पोस्टरों में महात्मा गांधी का एक उद्धरण भी शामिल है। इसमें लिखा है कि मोहर्रम सिर्फ एक त्योहार नहीं, आतंकवाद के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक है। इसके साथ काले झंडे और भारतीय तिरंगा भी prominently प्रदर्शित किए गए हैं।

नई पीढ़ी का संदेश: अन्याय के खिलाफ एकजुटता

स्थानीय युवक करार अली और तौफिक अली जैसे लोग इस आयोजन को एक मजबूत वैचारिक संकेत मानते हैं। करार अली का कहना है कि इमाम हुसैन ने 1400 साल पहले अन्याय के खिलाफ जो आवाज उठाई, वही आज खामेनेई जैसे नेता दोहरा रहे हैं। तौफिक अली कहते हैं कि इस बार मोहर्रम का माहौल अलग है, क्योंकि दुनिया ने देखा कि बड़ी ताकतें भी न्याय के सामने झुक सकती हैं।

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