ननि अपर आयुक्त अंजू सिंह और पति ने रची थी झूठे रेप केस की साजिश, BJP नेता ने लगाए गंभीर आरोप

जबलपुर में बीजेपी नेता शशिकांत सोनी के खिलाफ झूठे रेप केस की साजिश रचने के आरोप में नगर निगम अपर आयुक्त अंजू सिंह और उनके पति शामिल थे। साजिश का खुलासा अदालत में हुआ है, अब कोर्ट ने मामले की जांच करने के आदेश दिए हैं।

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Neel Tiwari
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जबलपुर में निगम अपर आयुक्त अंजू सिंह और उनके पति पर गंभीर आरोप लगे हैं। बीजेपी नेता शशिकांत सोनी, जो नगर निगम की एक विक्रय समिति से जुड़े थे, उनका जीवन तब अचानक उलझनों में घिर गया जब उन्हें रेप जैसे गंभीर और अमानवीय अपराध के झूठे आरोप में फंसाने की साजिश रची गई। उनका दावा है कि यह सब एक पुराने प्रशासनिक विवाद का प्रतिशोध था। इस षड्यंत्र की जड़ें नगर निगम की पूर्व उपायुक्त अंजू सिंह ठाकुर से जुड़ी हुई हैं। शशिकांत ने बताया कि एक बार उनका अंजू सिंह से गंभीर मतभेद हो गया था, जिसके चलते अंजू सिंह उन्हें निजी शत्रु मानने लगीं और अपने पद एवं प्रभाव का दुरुपयोग करके उनके खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से साजिश रची गई।

पद की ताकत बनी निजी बदले की जमीन

शिकायत के अनुसार, नगर निगम अपर आयुक्त अंजू सिंह ठाकुर ने शशिकांत सोनी को नुकसान पहुंचाने के लिए जबलपुर नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त के माध्यम से शशिकांत से जुड़ी नगर विक्रय समिति को नियमों के विरुद्ध भंग करवा दिया। यह कार्रवाई न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया का उल्लंघन थी, बल्कि व्यक्तिगत रंजिश का खुला प्रदर्शन भी थी। जब शशिकांत ने इस अनुचित कार्रवाई के खिलाफ दस्तावेजों सहित शिकायत की, तो उस पर संज्ञान लेते हुए शासन ने अंजू सिंह का तबादला जबलपुर से भोपाल कर दिया। लेकिन वहीं से बदले की एक और खतरनाक कहानी की शुरुआत हुई और एक झूठे बलात्कार के मामले की साजिश रची गई।

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ऐसे रखी गई झूठे रेप केस की नींव

बीजेपी नेता शशिकांत सोनी के अनुसार, जब अंजू सिंह को शासकीय तबादले का सामना करना पड़ा, तब उन्होंने अपने पति शिवराज चौधरी, रिश्तेदार प्रवीण सिंह, और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर एक साजिश रची। उन्होंने अर्चना गोस्वामी नामक महिला को अपने इस षड्यंत्र में शामिल किया, जो पहले से ही एक युवक रवि चौधरी की लिव-इन पार्टनर थी। आरोप है कि इन लोगों ने अर्चना को मानसिक रूप से तैयार किया, उसे होटल और भोपाल के विभिन्न स्थानों पर ले जाकर घटनास्थल की नकली जानकारी दी और सिखाया कि यदि पुलिस पूछे, तो उसे उन्हीं स्थानों का उल्लेख करना है। इसी के आधार पर भोपाल के टीटी नगर थाने में शशिकांत सोनी के खिलाफ धारा 376 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

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अर्चना गोस्वामी की कबूलनामा ने खोले राज

हालांकि, साजिश की योजना चालाकी से बनाई गई थी, लेकिन सच्चाई ज्यादा देर तक नहीं छिप सकी। पुलिस जांच के दौरान कोई ठोस साक्ष्य न मिलने पर, भोपाल पुलिस ने मामला बंद करने की अनुशंसा के साथ मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष खात्मा प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। जब अर्चना गोस्वामी को न्यायालय में बयान देने के लिए बुलाया गया, तो उसने शपथपूर्वक यह स्वीकार कर लिया कि शशिकांत सोनी से उसकी कभी कोई मुलाकात नहीं हुई थी और उसने अन्य लोगों के कहने पर झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई थी। अर्चना का यह बयान पूरे मामले का टर्निंग पॉइंट बन गया और शशिकांत की बेगुनाही प्रमाणित हो गई।

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अदालत ने माना कि गहरी और सुनियोजित थी साजिश

शशिकांत ने पुलिस की निष्क्रियता से निराश होकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपने परिवाद में सभी साक्ष्य व दस्तावेज संलग्न किए। कोर्ट ने प्रकरण की पूरी गहराई से विवेचना की और पाया कि मामला केवल झूठी रिपोर्ट तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें एक सुनियोजित आपराधिक षड्यंत्र रचा गया था। कोर्ट ने प्रथम दृष्टया यह माना कि धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 211 (झूठा आरोप), 468 व 469 (कूट रचना), और 471 (झूठे दस्तावेज का प्रयोग) के तहत अपराध बनता है। इसके आधार पर अदालत ने सभी प्रस्तावित आरोपियों के विरुद्ध परिवाद पंजीबद्ध करने का आदेश दिया और समन जारी करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।

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नगर निगम अपर आयुक्त अंजू सिंह ने क्या कहा... 

इस मामले में तत्कालीन नगर निगम उपायुक्त और वर्तमान में अपर आयुक्त अंजू सिंह से जब हमने उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो उन्होंने मैसेज में जवाब देकर बताया कि आवेदक शशिकांत सोनी के अधिवक्ता के फोन कॉल द्वारा उन्हें इस मामले की जानकारी लगी है। अभी उन्हें परिवाद के मामले के आधार की जानकारी नहीं है, लेकिन उन्होंने एक विशेष वाहक कल आवेदन के साथ भेजा है और इस मामले की पूरी जानकारी लगने के बाद ही वह अपना पक्ष दे पाएंगी।

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पुलिस की निष्क्रियता बनी पीड़ित की दूसरी पीड़ा

इस पूरे मामले में एक और चिंता की बात यह रही कि जब शशिकांत ने पुलिस उपायुक्त, भोपाल को लिखित में शिकायत दी, जिसमें स्पष्ट साक्ष्य और न्यायालयीन आदेश संलग्न थे, तब भी पुलिस ने किसी भी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। यह रवैया न केवल न्याय के प्रति उदासीनता दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि रसूखदारों के सामने कानून की प्रक्रिया कैसे कमजोर पड़ जाती है। मजबूर होकर शशिकांत को अपनी लड़ाई अदालत में लड़नी पड़ी, जहां उन्हें प्रारंभिक न्याय मिला।

अब कोर्ट की आगे की कार्यवाही पर सबकी नजरें 

अदालत द्वारा मामले को गंभीरता से लेने के बाद अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पुलिस और प्रशासन की भूमिका क्या रहती है। क्या आरोपीगण के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई होगी? या फिर यह मामला भी रसूख और राजनीतिक संबंधों के चलते धूल फांकता रहेगा? शशिकांत की इस जंग ने यह प्रश्न समाज और व्यवस्था दोनों के सामने ला खड़ा किया है।

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