MPPSC ने सील बंद लिफाफे में पेश की कट ऑफ लिस्ट, हाईकोर्ट ने किया सार्वजनिक

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एमपीपीएससी राज्य सेवा परीक्षा 2025 से जुड़े मामले में महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि एमपीपीएससी की मुख्य परीक्षा निर्धारित तारीख पर होगी, लेकिन आयोग को पारदर्शिता सुनिश्चित करने की चेतावनी दी।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिविजनल ने एक बार फिर राज्य सेवा परीक्षा-2025 से जुड़े मामले में महत्त्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने पूर्व में जारी की गई उस अंतरिम रोक को यथावत रखा है, लेकिन हाईकोर्ट में मौखिक टिप्पणी करते हुए यह आश्वासन भी दे दिया है कि संभवतः MPPSC (मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग) की मुख्य परीक्षा तय तारीख पर ही होगी।

कोर्ट ने साफ संकेत दिया है कि जब तक आयोग परीक्षा प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता नहीं अपनाता और अभ्यर्थियों के हितों की रक्षा सुनिश्चित नहीं करता, तब तक इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना न्यायसंगत नहीं होगा। लेकिन एमपीपीएससी की ओर से इस मामले में स्थगन आदेश को हटाने को लेकर कोर्ट ने यह कहा कि अगली सुनवाई 6 मई को है और MPPSC की मुख्य परीक्षा 9 जून को है, तो अपनी परीक्षा की तैयारियां शुरू रखिए। तो एक तरह से कोर्ट ने क्या संकेत दे दिए हैं कि सरकार और एमपीपीएससी के जवाब देने के बाद एमपीपीएससी के तय किए गए समय पर ही मुख्य परीक्षा होने वाली है।

आयोग ने सीलबंद लिफाफे में कट-ऑफ मार्क्स सौंपे

हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई में यह स्पष्ट निर्देश दिया था कि मप्र लोक सेवा आयोग प्रारंभिक परीक्षा के वर्गवार कट-ऑफ अंक सार्वजनिक करे और यह बताए कि किस वर्ग के कितने उम्मीदवारों को किस श्रेणी में चयनित किया गया है। आयोग ने कोर्ट के आदेश पर आज दिनांक 15 अप्रैल को कट-ऑफ मार्क्स एक सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किए। लेकिन जब अदालत ने लिफाफा खोला, तो यह स्पष्ट हुआ कि इसमें कोई गोपनीय जानकारी नहीं है, जिससे यह सवाल खड़ा हुआ कि इसे लिफाफे में सील करके क्यों पेश किया गया। कोर्ट ने इसे तुरंत सार्वजनिक करने का आदेश दिया और एक प्रति याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं को भी सौंपी जाने के निर्देश दिए। इस घटना से आयोग की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है, और न्यायालय ने यह संकेत दिया है कि पारदर्शिता के नाम पर कोई समझौता स्वीकार नहीं होगा। 

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एमपीपीएससी ने की स्टे आर्डर को हटाने की मांग

एमपीपीएससी की ओर से अधिवक्ता के द्वारा कोर्ट से यह निवेदन किया गया कि हाईकोर्ट के स्थगन आदेश के चलते एमपीपीएससी की मुख्य परीक्षाएं संचालित नहीं हो पाएंगे जिससे बड़ी संख्या में छात्रों का नुकसान होगा। एमपीपीएससी ने बताया कि मुख्य परीक्षा का शेड्यूल 9 जून तय किया गया है। हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश को हटाया तो नहीं लेकिन मौखिक रूप से आश्वासन देते हुए कहा कि मामले की अगली सुनवाई 6 मई को रखी जा रही है और उसके एक माह बाद 9 जून को परीक्षाएं हैं तो आप अपनी तैयारी शुरू रखिए।

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आरक्षित वर्ग के मेधावी अभ्यर्थियों के साथ अन्याय

याचिकाकर्ता सुनीत यादव एवं अन्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने कोर्ट के समक्ष यह गंभीर आरोप प्रस्तुत किया कि मप्र लोक सेवा आयोग ने अनारक्षित पदों पर केवल सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को ही चयनित किया है, जबकि आरक्षित वर्ग के कई मेधावी अभ्यर्थी, जिनके अंक सामान्य वर्ग से अधिक थे, उन्हें इस वर्ग में स्थान नहीं दिया गया। इससे न केवल योग्य अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन हुआ है, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त समान अवसर के सिद्धांत का भी सीधा उल्लंघन हुआ है।

अधिवक्ताओं ने यह भी बताया कि पहले के वर्षों की सभी परीक्षाओं में आयोग द्वारा वर्गवार कट-ऑफ अंक प्रकाशित किए जाते रहे हैं, लेकिन इस बार जानबूझकर यह कट ऑफ अंक छुपाए गए और इसके पीछे आयोग का यह तर्क है कि कट ऑफ अंक सामने आने के बाद यह मामले कोर्ट में पहुंचते हैं तो एक तरह से अपनी गलतियों को छुपाने के लिए आयोग इस तरह से कम कर रहा है। 

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि एमपीएससी, यूपीएससी की तर्ज पर नियम बना रही है लेकिन यदि देखा जाए तो यूपीएससी के एक भी प्रश्न पर कोर्ट में सवाल नहीं खड़े होते और एमपीपीएससी की हर परीक्षा में प्रश्नों पर हाईकोर्ट में सवाल खड़े हो रहे हैं। इसके साथ ही आरक्षित वर्ग का कोई भी अभ्यर्थी यदि एज रिलैक्सेशन या अन्य आरक्षण का लाभ लेता है तो मेधावी होने पर भी उसे अनारक्षित वर्ग का लाभ नहीं दिया जाता। इस दौरान चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने यह संकेत दिए हैं कि इस मामले के फाइनल ऑर्डर में इन मुद्दों से भी राहत मिल सकती है।

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हाईकोर्ट ने गोपनीय ना बताते हुए कटऑफ लिस्ट को किया सार्वजनिक

राज्य सेवा परीक्षा 2025 से ही आयोग ने नियम लागू किया था कि वह अब कटऑफ अंक जारी नहीं करेगा और यूपीएससी की तर्ज पर अंतिम रिजल्ट के साथ ही कटआफ जारी किए जाएंगे। इसके पहले आयोग कटआफ जारी करता रहा है हालांकि याचिका करता हूं के द्वारा इस नियम को भी चुनौती दी गई है। मंगलवार, 15 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान कट ऑफ की सूची आयोग ने कोर्ट को दी थी, जिसे खुद हाईकोर्ट चीफ जस्टिस ने गोपनीय ना बताते हुए इसका खुलासा कर दिया।

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यह रहा कट ऑफ

  • अनारक्षित- 158 अंक (यानी 79 फीसदी)
  • ओबीसी- 154 अंक (77 फीसदी)
  • ओबीसी महिला- 152 अंक (76 फीसदी)
  • ईडब्ल्यूएस- 152 (76 फीसदी) अंक
  • एससी- 142 अंक (71 फीसदी अंक)
  • एसटी- 128 अंक (64 फीसदी अंक)

(पीएससी प्री का प्रश्नपत्र 200 अंकों का होता है और सौ कुल प्रश्न होते हैं, 2-2 अंकों के) सुनवाई में यह भी सामने आया कि अनारक्षित में उम्मीदवार कैटेगरी के कुल 1140 उम्मीदवार चयनित हुए हैं, इसमें से एससी के 42, एसटी के 5, ओबीसी के 381 और ईडब्ल्यूएस के 262 उम्मीदवारों ने मेरिट के चलते इसमें जगह बनाई हैं। 13 फीसदी प्रोवीजनल रिजल्ट वालों का कट ऑफ 152 अंक रहा है।

PSC के अधिवक्ता के विरोधाभाषी तर्कों पर कोर्ट की नाराजगी

सुनवाई के दौरान आयोग के अधिवक्ता द्वारा दिए गए तर्कों में स्पष्ट रूप से विरोधाभास पाया गया। कभी वे आरक्षित वर्ग के मेधावी अभ्यर्थियों को अनारक्षित पदों पर चयन न करने की बात कहते रहे, तो कभी इस नियम की वैधता को ही अस्वीकार करते दिखे। इसके साथ ही पीएससी की ओर से अधिवक्ता ने पहले को कोर्ट को बताया था कि वैकेंसी के मुकाबले चयनित हुए अभ्यर्थियों की संख्या 15 गुना है, जबकि अब उन्होंने बताया कि यह संख्या 20 गुना है। कोर्ट ने इन विरोधाभाषी बयानों पर गहरी असहमति जताई और आयोग को स्पष्ट निर्देश दिए कि अगली सुनवाई में ऐसा सक्षम अधिकारी उपस्थित हो, जिसे इस पूरे मामले की विस्तृत जानकारी हो। इसके अतिरिक्त कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि आयोग अगली सुनवाई से पहले अपना विस्तृत और सुसंगत जवाब दाखिल करे ताकि अदालत सही निर्णय पर पहुंच सके। अदालत का यह रुख आयोग की कार्यप्रणाली में व्याप्त असंतुलन और अस्पष्टता की ओर इशारा करता है।

सरकार से उनकी मंशा पर दो टूक सवाल

हाईकोर्ट ने सिर्फ आयोग ही नहीं, बल्कि राज्य सरकार से भी तीखे सवाल पूछे हैं। कोर्ट ने पूछा कि आखिर सरकार किस उद्देश्य से ऐसा नियम बनाना चाहती है, जिससे आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों को मेरिट के आधार पर अनारक्षित पदों पर चयनित होने से रोका जाए? क्या यह नीति संविधान के समानता सिद्धांत के खिलाफ नहीं जाती? कोर्ट ने सरकार से दो सप्ताह के भीतर स्पष्ट और कानूनी रूप से संतुलित जवाब दाखिल करने को कहा है।

साथ ही यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि सरकार नियत समय सीमा में जवाब दाखिल नहीं करती है, तो 15 हजार रूपए का जुर्माना भरना होगा। यह निर्णय इस बात का संकेत है कि कोर्ट इस मामले को केवल तकनीकी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि न्याय और सामाजिक संतुलन की दृष्टि से भी देख रहा है।

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अगली सुनवाई 6 मई को, PSC के जवाब पर टिकी निगाहें

मामले की अगली सुनवाई 6 मई 2025 को निर्धारित की गई है। इस दिन कोर्ट में यह देखा जाएगा कि आयोग और शासन ने अपने-अपने जवाब कितनी गंभीरता और पारदर्शिता से प्रस्तुत किए हैं। अगर तब तक भी स्पष्ट जवाब दाखिल नहीं होते, तो यह मामला और भी गंभीर रुख ले सकता है। यह दिन प्रदेश भर के उन अभ्यर्थियों के लिए निर्णायक हो सकता है जो न्याय की उम्मीद में अदालत की ओर देख रहे हैं। इस सुनवाई में आयोग की नियत, नीति और पारदर्शिता की असल परीक्षा होगी।

न्याय के लिए एकजुट हुए अभ्यर्थी

राजधानी भोपाल निवासी याचिकाकर्ता सुनीत यादव के साथ-साथ कई अन्य अभ्यर्थी भी इस मामले में न्याय की आस लेकर हाईकोर्ट पहुंचे हैं। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं की एक मजबूत टीम रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, आरजी वर्मा, पुष्पेंद्र शाह, विद्याराज शाह, शिवांशु कोल और अखिलेश प्रजापति कोर्ट में उपस्थित रहे। इन अधिवक्ताओं ने न केवल याचिकाकर्ताओं की बात प्रभावी ढंग से रखी, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि यह लड़ाई सिर्फ कुछ उम्मीदवारों की नहीं, बल्कि पूरे चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता की है। इनकी एकजुटता और वकालत ने यह संदेश दिया कि यदि संगठित रूप से आवाज उठाई जाए, तो व्यवस्था को जवाब देना ही पड़ता है।

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