प्रकाशकों ने जबलपुर कलेक्टर की कार्रवाई को बताया गलत , 100 करोड़ हर्जाने की मांग

भारतीय शैक्षिक प्रकाशक संघ ने जबलपुर कलेक्टर की कार्रवाई को गलत बताया है। साथ ही कलेक्टर से 100 करोड़ रुपए हर्जाने के रूप में वसूलने की बात कर रहा है, जबकि निजी स्कूलों और प्रकाशकों पर कार्रवाई की चारों तरफ चर्चा रही...

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Jitendra Shrivastava
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मध्यप्रदेश के जबलपुर में निजी स्कूल और प्रकाशकों पर कार्रवाई की चारों तरफ चर्चा रही। अभिभावकों से लेकर आम नागरिकों तक ने दिल खोलकर जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना की प्रशंसा के पुल बांधे। इस कार्रवाई में कई लोगों पर FIR हुई और जमानत नहीं मिलने पर वो अभी भी जेल में हैं। प्रकाशक संघ जबलपुर कलेक्टर की इस कार्रवाई को गलत बता रहा और कलेक्टर से 100 करोड़ रुपए हर्जाने के रूप में वसूलने की बात कर रहा है। जबलपुर कलेक्टर के 30 मई को प्रेषित पत्र के जवाब में पत्र लिखकर कुछ महत्वपूण बिंदुओं पर ध्यान दिलवाया है।

प्रकाशक अपने स्तर पर आईएसबीएन नंबर नहीं छाप सकते

संघ के भेजे पत्र के अनुसार किताबों के आईएसबीएन (इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बुक नम्बर ) राजा राममोहन रॉय नेशनल एजेंसी मॉनिटर करती है। इस नम्बर को प्रकाशक अपने स्तर पर नहीं छाप सकते हैं। आईएसबीएन का ऑनलाइन पोर्टल पर अप्रैल 2016 से रिकॉर्ड मौजूद है। जब आईएसबीएन का ऑनलाइन पोर्टल सुचारू रूप से संचालित होता था। अप्रैल 2016 से पहले आईएसबीएन नम्बर मैनुअल इश्यू किया जाता था। जो पूरी तरह वैद्य था। दरअसल आईएसबीएन अथॉरिटी नियमानुसार नम्बर आवंटित करता था। किताबों पर अंकित आईएसबीएन नम्बरों को लेकर बड़ी गलतफहमी है कि ये क्वालिटी और कीमत के लिए अधिकृत हैं और अगर पोर्टल पर न दिखे तो ये फर्जी और डुप्लीकेट हैं, जबकि सच तो ये है कि ये आईएसबीएन नम्बर सिर्फ पहचान, सूची बनाने और सहेजने में मदद करता है। इसके अलावा ये आईएसबीएन नम्बरों को कोई एक्पायरी डेट नहीं होती। ये तमाम जानकारियां सच हैं इसके लिए भारत शासन के उच्च शिक्षा विभाग की वेबसाइट का अवलोकन किया जा सकता है।

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क्या आईएसबीएन नम्बर जरूरी है...?

इस सवाल के जवाब में संघ ने पत्र में बताया कि किताबों में आईएसबीएन नम्बर डालना ही है, ऐसा अंतर्राष्ट्रीय आईएसबीएन सिस्टम का कोई नियम नहीं है। इसके अलावा आईएसबीएन नम्बर राजा राममोहन रॉय नेशनल एजेंसी के पोर्टल में आसानी और निशुक्ल उपलब्ध हैं। इसलिए प्रकाशन इतनी बड़ा निवेश कर ऐसे फर्जी नम्बरों को लेने में इतने उत्साहित नहीं रहते। अंतर्राष्ट्रीय आईएसबीएन प्रणाली आईएसबीएन रखने के लिए कोई कानूनी आवश्यकता नहीं लगाती है, और आईएसबीएन कोई कानूनी या कॉपीराइट सुरक्षा नहीं देता है। इसके अलावा, आईएसबीएन राजा राम मोहन रॉय राष्ट्रीय एजेंसी के पोर्टल से आसानी से और मुफ्त उपलब्ध हैं। इसलिए, पुस्तक के निर्माण और प्रकाशन पर बड़ी राशि खर्च करने के बाद प्रकाशक के पास डुप्लिकेट आईएसबीएन बनाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है।

आईएसबीएन किसी भी कानून में अनिवार्य नहीं 

आईएसबीएन केवल पुस्तकों की पहचान और ऑनलाइन पद्धति के माध्यम से इसकी बिक्री और निर्यात के उद्देश्यों के लिए है। यह जरूरी है कि प्रकाशक के पास उल्लेखित आईएसबीएन हो। हालांकि, कहा गया कि आईएसबीएन किसी भी कानून में अनिवार्य आवश्यकता नहीं है। इसलिए यह स्पष्ट है कि शैक्षिक पुस्तकों के प्रकाशकों के खिलाफ आईएसबीएन नंबरों की पूरी गलतफहमी पर पूरी जांच शुरू की जा रही है। जिस उद्देश्य के लिए इन्हें पेश किया गया था। इसलिए हम अनुरोध करेंगे कि कलेक्टर जबलपुर द्वारा शुरू की गई पूरी जांच और पुस्तकों के प्रकाशकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना आईएसबीएन संख्याओं के अर्थ और उद्देश्य की गलत समझ पर आधारित है। अत: शैक्षिक प्रकाशकों के विरुद्ध कार्रवाई बंद करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करने का अनुरोध है।

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