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JABALPUR. साइबर अपराध के जिन मामलों में हाईकोर्ट से भी आरोपियों को जमानत नहीं मिलती, उसी तरह की एक मामले में जिला कोर्ट से आरोपी को जमानत मिलने पर यह तथ्य सामने आया कि जबलपुर साइबर सेल ने पीड़ित को ही आरोपी बनाकर जेल भेज दिया था।
लाखों रुपए की धोखाधड़ी का मामला
दरअसल, इस मामले में शिकायतकर्ता दीपांशु गुप्ता के द्वारा साइबर सेल जबलपुर में शिकायत दर्ज करवाई गई थी कि उसके साथ अज्ञात लोगों के द्वारा सेबी के माध्यम से शेयर ट्रेडिंग के नाम पर 19 लाख 50 हजार रुपए की वित्तीय धोखाधड़ी की गई है। इस मामले में जांच के दौरान पाया गया कि जिस बैंक अकाउंट के जरिए इस ठगी को अंजाम दिया गया है वह खाता राजस्थान के अलवर में रहने वाले विकास यादव के नाम का है। जिसमे साइबर सेल जबलपुर में आरोपी के खिलाफ बीएनएस की धारा 419,420,120(बी) एवं आईटीए की धारा 66 डी के तहत मामला दर्ज किया गया। मामले में आरोपी विकास यादव को 1 दिसंबर 2024 को गिरफ्तार कर लिया गया।
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आरोपी खुद निकला पीड़ित
इस मामले में आरोपी की जमानत के लिए जिला एवं सत्र न्यायालय जबलपुर में जमानत के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया जिसमें आरोपी की पैरवी कर रहे अधिवक्ता थाडेश्वर गोले भदौरिया के द्वारा कोर्ट में बताया गया कि इस मामले आरोपी विकास यादव बतौर कंप्यूटर ऑपरेटर मुंबई में काम करता था, जिसमें 1 महीने काम करने के उसे सैलरी नहीं मिली, जिस वजह से वह काम छोड़कर वापस आ गया। उन्होंने यह भी बताया कि जिस बैंक अकाउंट को आरोपी का बताया जा रहा उसमें लगे दस्तावेज भी कूट रचित तरीके से खाता खोलने के लिए उपयोग में लिए गए हैं, क्योंकि आरोपी के पैनकार्ड में मौजूद हस्ताक्षर बैंक अकाउंट खोलते समय दिए जाने वाले फॉर्म मौजूद हस्ताक्षर से बिल्कुल अलग है।
इस मामले की जांच करने वाले अधिकारी ने ऐसा कोई भी दस्तावेज पेश नहीं किया गया जिससे यह प्रमाणित हो की आरोपी के द्वारा स्वयं बैंक जाकर खाता खुलवाया गया है। इसके अलावा बैंक अकाउंट में लगा हुआ मोबाइल नंबर भी आरोपी का नहीं है। सिर्फ आरोपी विकास यादव की फोटो का उपयोग किया गया है। इन सभी तर्कों के आधार पर इस मामले के मुख्य आरोपी के द्वारा जालसाजी करके विकास यादव के दस्तावेजों का उपयोग कर षड्यंत्र पूर्वक उसे फंसाया जाना उजागर हो रहा है।
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साजिश का शिकार बना तथाकथित आरोपी
वित्तीय धोखाधड़ी के मामले में आरोपी बनाए गए विकास यादव को षड्यंत्रकारियो की साजिश का शिकार बन गया उसे नौकरी का झांसा देकर मुंबई बुलाया गया जहां उसे 20 हजार रुपए प्रति माह पर ऑनलाइन सामग्री मूर्ति और सीनरी के पार्सल काम में रखा गया। लेकिन 1 महीने काम करने के बाद उसे सैलरी नहीं मिली जिसके बाद वह वापस घर लौट आया। 8-9 बाद उसे दिल्ली साइबर सेल के द्वारा फोन आता है और उसे दिल्ली बुलाया जाता है जहां उसे पता चलता है कि उसके नाम से 3 से 4 खातों का उपयोग वित्तीय धोखाधड़ी किए जाने के लिए किया जा रहा है। इसके बाद दिल्ली साइबर सेल के द्वारा उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है, लेकिन मामले में न्यायिक दण्डाधिकारी पटियाला हाउस दिल्ली के द्वारा उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाता है। पूरे मामले में विकास यादव की बिना जानकारी के बैंक खातों को खोलना ओर उनका दुरुपयोग जालसाजों के द्वारा करना नजर आ रहा है जैसा कि विकास यादव के बताए अनुसार स्पष्ट हो रहा है।
जिला कोर्ट से मिली जमानत
इस जमानत आवेदन पर सुनवाई पंचम सत्र न्यायाधीश मोहित कुमार की कोर्ट में हुई जिसमें सुनवाई के दौरान आरोपी के अधिवक्ता और पुलिस डायरी में मौजूद तथ्यों के आधार पर आरोपी विकास यादव को 50 हजार रुपए की जमानत पर रिहा कर दिया गया।
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