हाईकोर्ट के जज को समय पर नहीं ले जाने से छूटी ट्रेन, ड्राइवर की गई नौकरी, अब मिला न्याय

जबलपुर हाईकोर्ट ने जज साहब की गाड़ी लेट पहुंचाने वाले ड्राइवर विजय सिंह भदौरिया को बर्खास्त करने का आदेश रद्द करते हुए नौकरी पर बहाल करने के निर्देश दिए।

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Rohit Sahu
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इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक तत्कालीन जज की ट्रेन छूट जाने के कारण नौकरी से निकाले गए ड्राइवर विजय सिंह भदौरिया को आखिरकार 17 साल बाद न्याय मिला है। जबलपुर हाईकोर्ट ने ड्राइवर की बर्खास्तगी को कठोर सजा मानते हुए आदेश रद्द कर दिया और उसे तत्काल नौकरी बहाल करने का निर्देश दिया है।

जबलपुर हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने सुनाया फैसला

जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डबल बेंच ने अपने निर्णय में कहा कि याचिकाकर्ता की गलती इतनी बड़ी नहीं थी कि उसे नौकरी से निकाला जाए। कोर्ट ने विभागीय कार्रवाई को असंगत बताते हुए पुनर्विचार का आदेश भी जारी किया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि बहाली तो होगी, लेकिन ‘नो वर्क, नो पे’ के सिद्धांत के तहत कोई बैकवेजेस नहीं मिलेंगे।

साइकिल पंचर से हुई देरी

भोपाल निवासी विजय सिंह भदौरिया ने अपनी याचिका में कहा था कि वह जिला कोर्ट भोपाल में पदस्थ था और नवंबर 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन जज एस.के. सिंह की सेवा में नियुक्त था। 19-20 नवंबर की रात उसे जज को रेलवे स्टेशन पहुंचाना था, लेकिन रास्ते में उसकी साइकिल पंचर हो गई, जिससे वह देरी से पहुंचा और ट्रेन छूट गई।

शराब के नशे के आरोप पर नहीं हुई जांच

जज की नाराजगी के बाद शिकायत में भदौरिया के शराब के नशे में होने का आरोप भी लगाया गया, लेकिन याचिकाकर्ता ने दावा किया कि न तो उसे मेडिकल जांच के लिए भेजा गया और न ही किसी गवाह ने यह पुष्टि की कि वह नशे में था।

कोई गवाह नहीं, फिर भी दी गई सख्त सजा

कोर्ट ने पाया कि जांच के दौरान किसी गवाह से न पूछताछ की गई और न ही ड्राइवर की नशे की स्थिति की पुष्टि हुई। इसके बावजूद फरवरी 2007 में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, जिसे याचिकाकर्ता ने अनुचित बताया।

होमगार्ड ने भी दी ड्राइवर के पक्ष में गवाही

श्यामला हिल्स जजेज एन्क्लेव में ड्यूटी पर तैनात होमगार्ड सुनील कुमार ने भी यह स्वीकार किया कि विजय सिंह की साइकिल पंचर हो गई थी। इस गवाही को कोर्ट ने अहम मानते हुए बर्खास्तगी के फैसले को कठोर करार दिया।

जांच अधिकारी और रेलवे मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट से सामने आए तथ्य

रेलवे मजिस्ट्रेट सुरेश सिंह और अन्य अधिकारियों के बयान भी इस केस में दर्ज किए गए, जिसमें यह तो स्वीकार किया गया कि विजय सिंह देरी से वीआईपी गेस्ट हाउस पहुंचा था, लेकिन नशे में होने की पुष्टि नहीं हो सकी।

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तीन महीने में नौकरी बहाल करने का दिया आदेश

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायालय तभी दंड में हस्तक्षेप करता है जब नियमों या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। इस मामले में जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता और तर्कसंगतता की कमी पाई गई। अदालत ने सक्षम प्राधिकरण को निर्देश दिए हैं कि वे तीन माह के भीतर सजा पर दोबारा विचार करें और निष्पक्ष निर्णय लें। याचिकाकर्ता को "नो वर्क, नो पे" के सिद्धांत पर तत्काल सेवा में बहाल किया जाए।

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