BHOPAL. पांच साल से जारी कवायद के बावजूद जल जीवन मिशन अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाया है। केंद्र सरकार की इस योजना को प्रदेश में अमलीजामा पहनाने में सरकारी सिस्टम लापरवाह साबित हुआ है। इसका खामियाजा अब प्रदेश के ग्रामीणों को उठाना पड़ रहा है। पांच हजार से ज्यादा गांवों में योजना पूरी ही नहीं हो सकी है। कहीं पानी की टंकी अधूरी है, कहीं ट्यूबवेल से पानी नहीं आ रहा तो कहीं केवल लाइन ही बिछाकर छोड़ दी गई है। जिम्मेदार जलापूर्ति की वैकल्पिक व्यवस्था करना ही भूल गए, नतीजा भीषण गर्मी के दौर में लोग जल संकट से जूझ रहे हैं।
साल 2019 से मध्यप्रदेश में जल जीवन मिशन पर काम चल रहा है। मिशन का रिकॉर्ड बताता है कि प्रदेश में बुरहानपुर और निवाड़ी जिलों में शत_प्रतिशत घरों में नल से जल पहुंच रहा है। जबकि प्रदेश की 23 हजार पंचायतों के 1 करोड़ 11 लाख 76 हजार घरों में से 77 लाख 39 हजार से ज्यादा घरों में नल से जल की सप्लाई होने लगी है। यानी अब केवल 34 लाख 37 हजार घर ही शेष रह गए हैं। वहीं केंद्र सरकार से मिले 10 हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
अंचल में हर तरफ जल संकट की आहट
निवाड़ी जिले के तरिचरकलां में पानी की गंभीर समस्या ने लोगों का जीवन मुश्किल कर दिया है। जिला मुख्यालय से मात्र 10 किलोमीटर दूर स्थित इस बस्ती में लगातार पेयजल संकट बना हुआ है। इससे भी खराब हालत बुंदेलखंड अंचल के टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह, पन्ना और सागर जिले के सैकड़ों गांवों की है। सागर के बरखेड़ा खुमान एक उदाहरण है जहां जल जीवन मिशन की टंकी दो साल से बनकर तैयार है लेकिन इसे भरकर जलापूर्ति करने वाला ट्यूबवेल ही सूखा पड़ा है। प्रदेश में 5 हजार से ज्यादा गांव तरिचर कलां और बरखेड़ा खुमान जैसे हैं जहां जल जीवन मिशन पर लाखों खर्च करने के बाद भी ग्रामीण प्यासे हैं।
केंद्र के सर्वे और समीक्षा में खुली पोल
जल जीवन मिशन के तहत प्रदेश में 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च की जा चुकी है। योजना की प्रगति और जमीनी हकीकत की समीक्षा के लिए बीते महीनों में हो गई है। अब केंद्र सरकार की रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा हुआ है। मिशन के तहत कई अब तक ना तो कई गांवों में नल कनेक्शन लगाए गए और न ही पानी की सप्लाई शुरू हो सकी है। इसके बावजूद कार्य पूरा होने की रिपोर्ट दे दी गई। यहीं नहीं जहां पानी की सप्लाई हो रही है, वहां पानी की गुणवत्ता मानकों के अनुसार ठीक नहीं है।
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काम की गति धीमी, गुणवत्ता भी गायब
प्रदेश में घर-घर पीने का शुद्ध पानी पहुंचाने के उद्देश्य से 2019 को शुरू की गई जल जीवन मिशन योजना अधर में लटकी है। 2024 में मिशन का कार्य अधूरा होने के बाद केंद्र सरकार ने जुलाई में मप्र के 1271 सर्टिफाइड गांवों में सर्वे कराया। एक निजी एजेंसी द्वारा किए गए इस सर्वे में केवल 209 गांव ही मानकों पर खरे उतरे। वहीं, 217 गांवों में नल कनेक्शन तो लगाए गए, लेकिन पानी की सप्लाई शुरू नहीं हुई। 13 गांवों में नल कनेक्शन तक नहीं लगाए गए, बावजूद इसके कार्य पूरा दिखा दिया गया। 778 गांवों में जल गुणवत्ता की जांच में 390 सैंपल अमानक पाए गए। रिपोर्ट के अनुसार सबसे खबरा स्थिति अलीराजपुर और सिंगरौली के गांवो में है। यहां पर जल जीवन मिशन की स्थिति बहुत खराब है।
पीएचई_पंचायत और प्रशासन लापरवाह
जल जीवन मिशन को मार्च 2024 तक पूरा करना था लेकिन प्रदेश में मिशन के क्रियान्वयन का जिम्मा संभालने वाले विभाग, पंचायतें और प्रशासनिक अधिकारी ठेकेदारों पर कसावट नहीं कर सके। इस वजह से योजना के तहत बनी पानी की टंकी, जलापूर्ति लाइन की गुणवत्ता पर भी लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं। जल जीवन मिशन की गुणवत्ता, लगातार हो रहे विलम्ब को लेकर मध्यप्रदेश विधानसभा में न केवल विपक्ष बल्कि बीजेपी विधायक भी अपनी सरकार को घेर चुके हैं। वहीं केंद्रीय एजेंसियों की पड़ताल में जल जीवन मिशन का काम संतोषजनक न मिलने पर हजारों करोड़ का भुगतान रोक दिया गया है।
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किसान संघ भी तैयार कर रहा रिपोर्ट
किसान संघ के राहुल धूत के अनुसार प्रदेश के पांच हजार से अधिक गांवों में भीषण जल संकट है। कृषि का पूरा काम जल पर ही आधारित है, यह बड़ी समस्या और चिंता का विषय है। ग्रामीण संरचना या पूरे प्रदेश की संरचना सिंचाई पर निर्भर होती है। मवेशी से लेकर खेती और सभी को पानी चाहिए, स्थिति गंभीर होती जा रही है। किसान संघ ऐसे गांवों की रिपोर्ट तैयार कर सराकर तक पहुंचाएगा। उन्होंने जलापूर्ति योजनाओं में हुई गड़बड़ियों को संकट की वजह बताया है।
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