जातीय जनगणना : भारत के सामाजिक ढांचे की नई तस्वीर , हमेशा से रहा राजनीतिक मुद्दा

2021 की जनगणना के लिए जनवरी 2020 में अधिसूचना जारी हुई। इसमें हर घर से 31 सवाल पूछे जाने थे, जैसे मोबाइल, टीवी, कार की उपलब्धता। लेकिन कोविड-19 महामारी ने इस प्रक्रिया को रोक दिया गया।

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भारत में जातीय जनगणना का इतिहास ब्रिटिश काल से शुरू होता है। 1872 में लॉर्ड मेयो ने पहली जनगणना करवाई थी। 1881 में यह प्रक्रिया पूरी तरह व्यवस्थित हुई, जिसमें जाति के आधार पर आंकड़े जुटाए गए। लेकिन 1931 के बाद जातीय जनगणना धीरे-धीरे बंद हो गई। आजादी के बाद सिर्फ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आंकड़े ही दर्ज किए जाने लगे।

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आजादी के बाद जनगणना में बदलाव….

आजादी के बाद 1951 से जनगणना का तरीका बदला। अब सिर्फ SC और ST की गिनती होने लगी। यह बदलाव आरक्षण को मजबूत करने के लिए था, लेकिन पूर्ण जातीय जनगणना न होने से कई वर्गों की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई। यह आज भी बहस का बड़ा मुद्दा है।

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2021 की जनगणना और रुकावटें….

2021 की जनगणना के लिए जनवरी 2020 में अधिसूचना जारी हुई। इसमें हर घर से 31 सवाल पूछे जाने थे, जैसे मोबाइल, टीवी, कार की उपलब्धता। लेकिन कोविड-19 महामारी ने इस प्रक्रिया को रोक दिया।  हालाँकि अब केबिनेट में मंजूरी मिलने के बाद सरकार इस पर जल्द काम शुरू करेगी। 

जनसंख्या वृद्धि देश के लिए एक बड़ी चुनौती…

रिपोर्ट्स कहती हैं कि 2050 तक भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा, चीन को पीछे छोड़कर। उत्तर प्रदेश, बिहार और दक्षिणी राज्यों में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। यह भविष्य में संसाधनों और विकास के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है।

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जनगणना दुनिया का सबसे बड़ा प्रशासनिक कार्य…

भारत की जनगणना को जनगणना अधिनियम 1948 के तहत किया जाता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा शासकीय कार्य है। लाखों कर्मचारी समय पर आंकड़े जुटाते हैं, और सवाल सरकार के राजपत्रों में प्रकाशित होते हैं। यह प्रक्रिया भारत की नीतियों को दिशा देती है।
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राजनीति में जातीय जनगणना का रंग…

जातीय जनगणना भारतीय राजनीति में बड़ा मुद्दा है। खासकर ओबीसी और अन्य वर्गों के लिए यह महत्वपूर्ण है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जातियां वोटों को प्रभावित करती हैं। इसीलिए बिहार के 10 दलों ने प्रधानमंत्री से इसकी मांग की थी।

जातीय जनगणना के फायदे और चुनौतियां…

जातीय जनगणना से ओबीसी, SC, और ST के लिए बेहतर आरक्षण नीतियां बन सकती हैं। लेकिन सही आंकड़े जुटाना और राजनीतिक दबावों से बचना आसान नहीं। फिर भी, यह सामाजिक बदलाव का रास्ता खोल सकती है।

बिहार चुनाव से पहले जाति जनगणना

देश में इसी साल के आखिर में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं। उसके पहले केंद्र सरकार ने जाति जनगणना कराने को लेकर ऐलान कर दिया है। हालांकि पहले बीजेपी जाति जनगणना के पक्ष में नहीं थी। NDA ने कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगाए थे कि ये जातिगत जनगणना के जरिए देश को बांटने की कोशिश कर रही हैं। बिहार में बीजेपी ने ही जातिगत जनगणना का सपोर्ट किया था। बिहार ने अक्टूबर 2023 में जातिगत जनगणना (सर्वे) के आंकड़े जारी किए थे। ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बना था।

नीतीश कुमार ने की केंद्र सरकार की तारीफ

जाति जनगणना कराने के फैसले का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गर्मजोशी से स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि यह कदम लंबे समय से लंबित एक जरूरी मांग को पूरा करता है और देश के विकास में अहम भूमिका निभाएगा। नीतीश कुमार ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर लिखा, “जाति जनगणना कराने का केंद्र सरकार का फैसला स्वागतयोग्य है।  जाति जनगणना कराने की हमलोगों की मांग पुरानी है।  यह बेहद खुशी की बात है कि केन्द्र सरकार ने जाति जनगणना कराने का निर्णय किया है। 

जातिगत जनगणना को लेकर क्या बोला विपक्ष

सरकार की घोषणा के बाद कांग्रेस समेत विपक्षी नेताओं की भी प्रतिक्रिया आई। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि सरकार तो राहुल गांधी पर समाज को जातियों में बांटने का आरोप लगा रही थी, तो क्या सरकार अब समाज को जातियों में बांटेगी? उन्होंने कहा, "जब सरकार को मानना ही है राहुल गांधी की बात तो विरोध ही क्यों करते हैं। ये चौथी-पांचवीं बार है जब राहुल गांधी की बात का पहले इन्होंने विरोध किया और फिर मान गए। वहीं आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने सरकार के इस फैसले को अपनी जीत करार दिया। उन्होंने कहा, "यह हमारी 30 साल पुरानी मांग थी। यह हमारी, समाजवादियों और लालू यादव की जीत है। 

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