जबलपुर निवासी ज्योति श्यामदासानी बहुचर्चित हत्याकांड में यूपी हाईकोर्ट का फैसला आ गया है। ज्योति श्यामदासानी हत्याकांड में हाईकोर्ट ने पति की गर्लफ्रेंड मनीषा मखीजा को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया, जबकि मुख्य आरोपी यानी पति पीयूष श्यामदासानी समेत अन्य पांच आरोपियों की सजा बरकरार रखी। मनीषा की अपील को स्वीकारते हुए कोर्ट ने उसे निर्दोष घोषित कर दिया।
2014 में हुई थी हत्या
रात का सन्नाटा और कानपुर की सड़कों पर दौड़ती तेज रफ्तार कार। 27 जुलाई 2014 की वह काली रात, जब एक हाई प्रोफाइल क्राइम की शुरुआत हुई। ज्योति श्यामदसानी, एक खुशहाल और संभ्रांत परिवार की महिला, अचानक गायब हो जाती हैं। उनके पति, पीयूष श्यामदसानी, स्वरूप नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराते हैं, जिसमें वह दावा करते हैं कि बाइक सवार हमलावरों ने उनकी कार को रोका, उन्हें पीटा, और उनकी पत्नी को अपहरण कर लिया।
एक गलती ने बदल दी केस की दिशा
ज्योति की कार अगले कुछ घंटों में मिल जाती है। कार में वह मरणासन्न अवस्था में पाई जाती हैं। डॉक्टर उन्हें मृत घोषित कर देते हैं। लेकिन पुलिस की नजर में एक चीज अटपटी लगती है, पीयूष के कपड़े। घटना के कुछ घंटों बाद थाने में पहुंचे पीयूष ने नए कपड़े पहन रखे थे। जैसे-जैसे पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई, कई ऐसे तथ्य सामने आए, जो इस मामले को अपहरण और लूटपाट से कहीं ज्यादा बड़ा बना देते हैं। सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल लोकेशन, और कॉल रिकॉर्ड्स से धीरे-धीरे कहानी की असली परतें उघड़ने लगीं।
प्रेम, षड्यंत्र और हत्या
पुलिस ने विवेचना में पाया कि पीयूष का अपनी पड़ोसी मनीषा मखीजा के साथ गहरा प्रेम संबंध था। यह रिश्ता उनकी पत्नी ज्योति के लिए एक बाधा बन गया था। इस रिश्ते को खुला रास्ता देने के लिए पीयूष और मनीषा ने मिलकर ज्योति को रास्ते से हटाने का खतरनाक षड्यंत्र रचा। मनीषा ने अपने ड्राइवर अवधेश से संपर्क किया, जिसने 50 हजार रुपए में यह काम सोनू, रेनू, और आशीष को सौंपा। एक जाल बुना गया- ज्योति का अपहरण, हत्या, और सबूतों को मिटाने का।
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हत्या की रात का सच
पीयूष और ज्योति 27 जुलाई की रात खाना खाने के बाद घर लौट रहे थे। जैसे ही उनकी कार एक सुनसान जगह पर पहुंची, बाइक सवारों ने कार रोकी। योजना के अनुसार, ज्योति का अपहरण किया गया। उनका शव कार में छोड़ दिया गया ताकि इसे सामान्य अपराध दिखाया जा सके, लेकिन पुलिस की सख्त पूछताछ और सबूतों की कड़ियों ने इस साजिश को उजागर कर दिया।
सेशन कोर्ट का फैसला
विवेचना पूरी होने के बाद पुलिस ने कोर्ट में 2 हजार 700 पन्नों की केस डायरी दाखिल की। 109 गवाहों और तमाम सबूतों के आधार पर सेशन कोर्ट ने पीयूष समेत छह आरोपियों- मनीषा, अवधेश, सोनू, रेनू, और आशीष को दोषी ठहराया। 20 अक्टूबर 2022 को इन सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
हाईकोर्ट का फैसला और मनीषा की रिहाई
2024 में, जब यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा, तो न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान और अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने सभी सबूतों की समीक्षा की। कोर्ट ने पाया कि मनीषा के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं जो साबित करें कि वह षड्यंत्र में प्रत्यक्ष रूप से शामिल थीं। उसे संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। हालांकि, पीयूष और बाकी पांच आरोपियों की सजा बरकरार रही।
पीड़ित परिवार की लड़ाई जारी
ज्योति के पिता, शंकर नागदेव, ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि मनीषा का इस साजिश में हाथ था, और वह तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक न्याय नहीं मिलता।
पुलिस पर उठे सवाल
इस मामले ने कानपुर पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े किए। घटना के दौरान पुलिस ने तत्परता नहीं दिखाई, और कई बार ऐसा लगा कि अपराधियों ने पुलिस को चकमा देने की कोशिश की।
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