सरकारी जमीन घोटाला:पटवारी से शुरू हुआ खेल,तहसीलदार तक पहुँचा-जाँच की जद में पूरा सिस्टम

मध्य प्रदेश में राजस्व नामांतरण प्रकरण में आवेदक की चप्पल घिस जाती है। इसके उलट तंत्र की मिलीभगत से सरकारी जमीन की बंदरबांट आसानी से हो रही है। यह प्रकरण इसकी बानगी है।

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Ravi Awasthi
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रूपेश जैन,टीकमगढ़|
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले की खरगापुर तहसील में सरकारी जमीन की फर्जी रजिस्ट्री का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जो न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि इस बात का भी सबूत है कि किस तरह राजस्व विभाग की निचली से ऊपरी स्तर तक की मशीनरी में भ्रष्टाचार की जड़ें फैली हुई हैं।

मामला तब प्रकाश में आया जब एक पुराना वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ। जिसमें खरगापुर के पटवारी प्रीतम लाल को कुछ स्थानीय लोगों के साथ शराब पार्टी करते हुए देखा गया। दावा है कि इसी पार्टी में 60 एकड़ सरकारी जमीन, जिसकी बाजार कीमत करीब 9 करोड़ रुपये आंकी जा रही है, को 27 निजी व्यक्तियों के नाम पर रजिस्ट्री कराने की योजना बनी। यह जमीन कालांतर में ग्राम रमसगरा की सहकारी समिति को एक योजना के तहत सरकार ने आवंटित की थी।


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न कलेक्टर, न एसडीएम के आदेश की जरूरत

शराब पार्टी में बैठे कुछ लोग खुलेआम पटवारी से कहते सुने जा रहे हैं कि जमीन की रजिस्ट्री के लिए न कलेक्टर के आदेश की जरूरत है, न ही एसडीएम के। इस पूरे घटनाक्रम से संकेत मिलता है कि स्थानीय स्तर पर पटवारी की भूमिका महज निचले स्तर की नहीं, बल्कि वह प्रशासनिक निर्णयों को प्रभावित करने में भी सक्षम हो गए हैं।

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रजिस्ट्री से नामांतरण तक: प्रशासनिक प्रक्रिया पर सवाल

शराब पार्टी के बाद पटवारी ने एक रिपोर्ट बनाकर तहसीलदार मंगलेश्वर सिंह को भेजी, जिन्होंने बिना पर्याप्त जांच के उस पर मुहर लगा दी। इस आदेश के आधार पर जमीन की रजिस्ट्री कर दी गई, और फिर कुछ ही समय में नामांतरण भी करा लिया गया। यह प्रक्रिया इतनी तेज़ी से हुई कि राजस्व विभाग की सामान्य सुस्त कार्यप्रणाली के उलट नजर आई-जिसे अक्सर नामांतरण में महीनों लग जाते हैं।

बिक भी गई नामांतरित जमीन !

जिन 27 लोगों के नाम जमीन दर्ज की गई, उनमें से कुछ ने 14.60 एकड़ जमीन को 24 मार्च 2024 को आगे भी बेच दिया। जमीन खरीदने वालों में क्रांति देवी दीक्षित और राम देवी दीक्षित के नाम सामने आए हैं। यह घटनाक्रम इस बात का भी प्रमाण है कि सिर्फ रजिस्ट्री ही नहीं, बल्कि आगे के लेनदेन भी संपन्न हो चुके हैं।

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एफआईआर पर पटवारी की पत्नी का बड़ा खुलासा

मामला सामने आने के बाद प्रशासन ने पटवारी प्रीतम लाल पर एफआईआर दर्ज कराई। हालांकि, पटवारी की पत्नी नन्नी बाई सौर ने कलेक्टर को पत्र लिखकर दावा किया है कि उनके पति को इस पूरे मामले में फंसाया गया है। उनका आरोप है कि बड़े राजस्व अधिकारी भी इस बंदरबांट में शामिल हैं, और जांच का दायरा केवल निचले अधिकारियों तक सीमित नहीं होना चाहिए।

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व्यवस्था पर उठे सवाल

मुख्यमंत्री मोहन यादव स्वयं कई मंचों से यह कह चुके हैं कि आजकल "पटवारी कलेक्टर के बाप बन गए हैं"। इस बयान के आलोक में यह प्रकरण और भी गंभीर हो जाता है। ऐसे में यह मामला कई बड़े सवाल उठाता है।
1.क्या बिना उच्च अधिकारियों की मिलीभगत के 60 एकड़ जमीन की रजिस्ट्री संभव थी?
2.क्या तहसीलदार ने जांच किए बिना रिपोर्ट पर दस्तखत किए?
3.क्या यह एक अकेले पटवारी का कृत्य था या पूरी व्यवस्था इसमें शामिल है?
4.क्या राजस्व विभाग की डिजिटल प्रणाली इतनी असुरक्षित है कि कोई भी उसमें छेड़छाड़ कर सकता है?