High Court में वकील ने झूठ बोला तो जज ने क्लाइंट की याचिका कर दी खारिज

मध्यप्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट में एक केस की सुनवाई के दौरान जब अन्य अधिवक्ता ने पेशी की अगली तारीख देने की बात कही तो जज ने शर्त रख दी। जज ने कहा अगर अधिवक्ता बाहर गए हैं तो सिद्ध कीजिए। अधिवक्ता साबित नहीं कर पाए तो पढ़िए जज ने क्या किया...

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Jitendra Shrivastava
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नील तिवारी, JABALPUR. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ( High Court ) की जबलपुर बेंच में एक अधिवक्ता को कोर्ट के सामने शहर से बाहर होने का झूठा बहाना भारी पड़ गया। अमूमन यह देखने को मिलता है कि यदि वादी या प्रतिवादी पक्ष की ओर से अधिवक्ता शहर में नहीं होते हैं या किसी और कारण से पेशी को आगे बढ़ाने की मांग करते हैं तो हाईकोर्ट के द्वारा पेशी आगे बढ़ा दी जाती है। लेकिन अब कोर्ट इस तरह पेशी आगे बढ़ाने के तरीकों पर सख्त नजर आ रहा है।

अधिवक्ता जयपुर गए या नहीं जज ने सिद्ध करने को कहा

दरअसल केयर हेल्थ इंश्योरेंस गुरुग्राम ने जबलपुर की 71 वर्षीय महिला के खिलाफ याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मयंक जाट ने पक्ष रखा कि बहस करने वाले वकील जयपुर गए हैं। इस आधार पर उन्होंने पेशी के लिए अगली तारीख देने के लिए न्यायालय से निवेदन किया। न्यायालय को इस बात पर शक होने पर जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने शर्त रख दी। जज ने शर्त रखी की जयपुर गए अधिवक्ता के सफर का ट्रेन या फ्लाइट का टिकट अथवा रास्ते में पड़े टोल बूथ की रसीद कोर्ट में पेश कर यह सिद्ध किया जाए कि अधिवक्ता जयपुर गए हैं। इसके बाद मामले की सुनवाई 10 मिनट के बाद दोबारा की गई। दोबारा सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता समीर ब्यौहार ने कोर्ट को बताया की बहस करने वाले वकील कहीं नहीं गए हैं और अधिवक्ता मयंक के द्वारा झूठा बहाना कोर्ट को दिया गया था।

5 हजार की कास्ट के साथ याचिका खारिज

जस्टिस जीएस आहलूवालिया ने अपने आदेश में कहा कि यह चौंका देने वाला मामला है कि काउंसिल के द्वारा पेशी को आगे बढ़ाने के लिए झूठा बहाना बनाया गया। इस मामले में पहले कोई कास्ट नहीं लगाई गई थी पर अब जब अधिवक्ता समीर ब्यौहार के द्वारा यह तथ्य सामने आए हैं कि बहस करने वाले वकील कहीं नहीं गए हैं और घर पर ही हैं तो कोर्ट के सामने झूठा बहाना बनाने के आधार पर यह याचिका खारिज की जाती है एवं याचिकाकर्ता को एक माह के भीतर 5 हजार रुपए इस कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा करने के आदेश दिए जाते हैं। यदि याचिकाकर्ता एक माह के भीतर यह रकम जमा नहीं करते हैं तो रजिस्ट्रार जनरल को यह आदेश दिया गया कि इस रकम की वसूली के लिए कार्यवाही शुरू करने के साथ ही कोर्ट की अवमानना का मुकदमा भी याचिकाकर्ता के ऊपर दर्ज किया जाए।

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