जातिवाद को लेकर पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह बोले- कास्टिज्म के कारण छात्र कर रहे सुसाइड

एमपी के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह ने जातिवाद के कारण छात्रों की आत्महत्या के मामले बढ़ने की चिंता जताई। कांग्रेस ने इसे निजी विचार बताया, जबकि बीजेपी ने पलटवार किया।

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Sandeep Kumar
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एमपी के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह एक बार फिर अपने बयानों के कारण सुर्खियों में हैं। इस बार उन्होंने जातिवाद (casteism) को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने जातिवाद और जाति सूचक शब्दों के इस्तेमाल के कारण छात्रों की आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी होने का दावा किया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, "छात्रों में आत्महत्या के प्रकरण बढ़ रहे हैं जो चिंता का विषय है। एक सर्वेक्षण के अनुसार मुख्य कारण जातिवाद है या जाति सूचक शब्दों का अनावश्यक प्रयोग है।

लक्ष्मण सिंह के बयान से कांग्रेस ने झाड़ा पल्ला 

पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह के बयान के बाद कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि यह उनका व्यक्तिगत विचार है। पार्टी इसका समर्थन नहीं करती है। कांग्रेस के पूर्व विधायक शैलेंद्र पटेल ने कहा, "पोस्ट में लिखी बातें लक्ष्मण सिंह के निजी विचार हो सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान में बीजेपी सरकार के तहत बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा बन गया है, और युवा रोजगार की चिंता से परेशान हैं। उन्होंने सरकार से इस दिशा में कदम उठाने की अपील की है।

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बीजेपी का पलटवार

लक्ष्मण सिंह के बयान पर बीजेपी ने पलटवार किया है। बीजेपी के मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा, "यह पोस्ट केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए की गई है। कांग्रेस के पास अब मुद्दे नहीं बचे हैं, इसलिए वे समाज में अलगाव पैदा करना चाहते हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी और उनकी सरकार हमेशा समाज को जोड़ने का काम करती है, और कभी भी जाति और भाषा में भेद नहीं करती है।

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क्या नेता इस पर चिंतन करेंगे?

पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह का बयान इस समय एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। क्योंकि यह जातिवाद और समाज में बढ़ते भेदभाव को लेकर एक गंभीर प्रश्न उठाता है। यह सवाल खड़ा होता है कि क्या जातिवाद के कारण छात्रों में मानसिक दबाव बढ़ रहा है, जिससे वे आत्महत्या (suicide) करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। यह मुद्दा समाज के विभिन्न वर्गों में व्याप्त असमानताओं को भी उजागर करता है, जिसे राजनीतिक दलों को सुलझाने की आवश्यकता है। सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या नेता जातिवाद और जातिसूचक जैसे शब्दों को लेकर चिंतन करेंगे।

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