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Photograph: (thesootr)
JABALPUR.मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने बुधवार को रिटायर्ड न्यायाधीशों की पेंशन और भत्तों से जुड़े नियमों पर कड़ी आपत्ति जताई है। कोर्ट ने कहा कि पेंशन के लिए डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट स्वीकार किया जाना और उससे जुड़े भत्तों के लिए रिटायरमेंट जिले में जाकर फिजिकल लाइफ सर्टिफिकेट जमा करने की शर्त “बेहद अव्यावहारिक” है। अदालत ने इस पूरे नियम को असंगत बताते हुए राज्य सरकार से इस पर ठोस कदम उठाने को कहा।
न्यायिक कर्मचारियों के लिए अलग-अलग नियम
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि पेंशन के लिए डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट जमा करने का प्रावधान है। पेंशन से जुड़े मेडिकल भत्ते जैसी सुविधाओं के लिए रिटायर्ड न्यायिक अधिकारियों को उसी जिले में जाकर प्रमाणपत्र जमा करना होता है, जहां से वे सेवानिवृत्त हुए थे।
इस पर चीफ जस्टिस ने सरकार से सवाल किया कि क्या यही नियम राज्य के अन्य कर्मचारियों पर भी लागू है। सरकार की ओर से जवाब मिला कि राज्य के सभी कर्मचारियों को डिजिटल लाइफ सर्टिफिकेट देने की अनुमति है। इस पर कोर्ट ने कहा कि ऐसे में न्यायिक अधिकारियों के लिए अलग नियम बनाना न केवल असंगत बल्कि वृद्ध जजों को परेशान करने वाला भी है।
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नियम में सुधार सोच-समझकर करें
सरकार ने इस मामले में सुधार पर विचार करने के लिए समय मांगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जो भी बदलाव किए जाएं। वे न्यायिक अधिकारियों के साथ-साथ राज्य के अन्य कर्मचारियों पर भी समान रूप से लागू होंगे। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि यह ध्यान रखा जाए कि जो नियम रिटायर्ड जजों के लिए बनेंगे, वही नियम आपके सभी स्टेट एम्पलाइज पर भी लागू होंगे।
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चीफ सेक्रेटरी देंगे कोर्ट में जवाब
जस्टिस संजीव सचदेवा की बेंच ने मुख्य सचिव को तलब किया। कोर्ट ने पूछा कि इस नियम में क्या बदलाव संभव हैं। शासन ने कहा कि मुख्य सचिव को न तलब किया जाए। कोर्ट ने कहा, हम उन्हें केवल निवेदन कर रहे हैं।” कोर्ट ने मुख्य सचिव से अव्यावहारिक व्यवस्था सुधारने का पूछा।
मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि रिटायर्ड न्यायिक कर्मचारी भोपाल या सागर जा सकते हैं। उन्होंने कहा, “मुख्य सचिव को भी जबलपुर आना असुविधाजनक नहीं होना चाहिए।
भत्ते की मंजूरी के लिए हर साल भटकना पड़ रहा
पूर्व न्यायाधीश कल्याण एसोसिएशन की ओर से याचिका दायर की गई। अधिवक्ता हितेश शर्मा ने यह याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया कि 2005 से पहले जिला न्यायाधीशों को पेंशन और भत्ते मिलते थे। बाद में नियुक्त न्यायाधीशों ने भी भत्ते मांगे। सरकार ने आदेश जारी किए लेकिन हर साल अनुमोदन की शर्त जोड़ दी।
याचिकाकर्ता के अनुसार, 80 वर्ष से अधिक आयु के जजों को हर साल सर्टिफिकेट जमा करने के लिए अपने जिले जाना पड़ता है। पहले यह प्रक्रिया बैंक के माध्यम से डिजिटल रूप में होती थी। अदालत ने इस नियम को पुनः समीक्षा के लिए लिया है। अगली सुनवाई 4 नवंबर को होगी।
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