संजय शर्मा, BHOPAL. लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Election ) तीसरे चरण में पहुंच गया है। 7 मई को प्रदेश की ग्वालियर, मुरैना, भिंड, गुना, राजगढ़, विदिशा, सागर, भोपाल और बैतूल में वोटिंग है। वोटिंग से पहले लोकसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार अपनी पूरी ताकत झौंक चुके हैं। अब प्रचार बंद होने के बाद खंदक की लड़ाई यानी गुरिल्ला वॉर का दौर शुरू होगा। गुना, राजगढ़ और विदिशा लोकसभा सीट पर खंदक की ये लड़ाई सबसे खास होने जा रही है। खास इसलिए क्योंकि इन तीनों ही सीटों पर मुकाबले में उतरे बीजेपी- कांग्रेस के उम्मीदवार भी प्रदेश की राजनीति के सबसे बड़े दिग्गजों में शामिल हैं। यह भी कह सकते हैं की लोकसभा के पिछले दो चरणों में सबसे ज्यादा चर्चा तीसरे चरण की है। क्योंकि इस चरण में प्रदेश के दो पूर्व सीएम और ग्वालियर-चंबल के पावर सेंटर केंद्रीय मंत्री की किस्मत का फैसला जनता जनार्दन करने वाली है।
जीत तय पर शिव के सामने रिकॉर्ड वोटिंग बड़ी चुनौती
विदिशा सीट पर पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ( Shivraj Singh Chauhan ) मुकाबले में उतरे हैं। यहां उनके सामने पूर्व प्रतिद्वंद्वी और कांग्रेस उम्मीदवार प्रतापभानु शर्मा हैं। वे दो बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं और लोकसभा क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। कांग्रेस भी दो दशक बार यहां शिवराज के खिलाफ ज्यादा मजबूत दिख रही है। हालांकि, शिवराज सिंह की जीत तय मानी जा रही है पर शिवराज जीत का अंतर बढ़ाने पर पूरा जोर लगा रहे हैं। अब तक वे विदिशा-रायसेन संसदीय क्षेत्र के हर छोटे कस्बे में सभा और शहरों में रोड शो कर चुके हैं। उनकी पत्नी, पुत्र सहित पूरी टीम भी दिन-रात अंचल में सक्रिय है। बावजूद शिवराज खेमा जीत के अंतर को लेकर बहुत कॉन्फिडेंट नजर नहीं आ रहा। बीजेपी संगठन के अलावा शिवराज व्यक्तिगत रूप से भी कार्यकर्ता और वोटर्स से वोटिंग बढ़ाने की अपील कर रहे हैं। पहले दो चरणों में हुई काम वोटिंग भी उनकी चिंता बनी हुई है। अब तक हर मोर्चे पर कामयाब रहे शिवराज इस बार भी संसदीय क्षेत्र में रिकॉर्ड वोटिंग कराते हुए खुद को फिर साबित करना चाहते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बंपर वापसी का सेहरा महिलाओं से सिर पर ही बंधा था। ऐसे में भैया और मामा के रूप में पहचान बना चुके शिवराज महिला वर्ग से भावनात्मक अपील भी कर रहे हैं।
ये खबर भी पढ़ें...
व्यूह में फंसे दिग्गी बांच रहे हिंदुत्व में आस्था की चिट्ठी
राजगढ़ लोकसभा सीट पर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ( Digvijay Singh ) और उनके परिवार की साख दांव पर है। इस चुनाव में दिग्विजय को चुनाव प्रचार का तरीका भी बदलना पड़ा है। दिग्गी अपने बयानों को लेकर विवादों में बने रहते हैं। वे अब तक धर्म और हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने के लिए बीजेपी का विरोध करते रहे हैं। इस बार वही दिग्विजय गांव-गांव घूमकर मंदिरों-देव स्थलों पर पूजा और दंडवत होते दिख रहे हैं। इस सीट पर दिग्विजय सिंह का प्रभाव रहा हैं, लेकिन मुकाबला तगड़ा होने से दिग्विजय अपने ही मतदाता की नब्ज नहीं भांप पा रहे हैं। हाल ही में उन्हें वोटर्स के बीच एक परचा बांटकर हिंदुत्व में आस्था का प्रमाण भी देना पड़ा है। दिग्गी का मुकाबला इस सीट पर बीजेपी के सिटिंग सांसद रोडमल नागर से है। वे यहां दो बार सांसद बन चुके हैं। दिग्गी के लिए उनके विधायक पुत्र जयवर्धन सिंह भी चिलचिलाती धूप में महीने भर से भटक रहे हैं। दिग्विजय इसे अपना आखिरी चुनाव भी घोषित कर चुके हैं और राघौगढ़ किले की साख बचाने में पूरा जोर लगा रहे हैं। प्रचार थमने के बाद संसदीय क्षेत्र में किले से खंदक का मुकाबला यानी गुपचुप जोर आजमाइश की रणनीति भी बन चुकी है।
जातिगत फैक्टर को साधने पर सिंधिया का फोकस
सिंधिया घराने की सियासत संभाल रहे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindia ) पिछले लोकसभा में मिली मात के बाद बहुत सधे नजर आ रहे हैं। गुना में इस बार फिर उनका मुकाबला बड़े और प्रभावी वोट बैंक वाले राव यादवेंद्र सिंह यादव से हैं। वे मुंगावली के खांटी दिवंगत विधायक राव देशराज यादव के पुत्र हैं। राव देशराज यादव, इस अंचल में सिंधिया परिवार के धुर विरोधी थे और अब उनके पुत्र यादवेंद्र उनकी जगह ले चुके हैं। सिंधिया और राव परिवार के बीच विरोध तो जस का तस है पर खेमे बदल गए हैं। मतलब कि पुराने कांग्रेसी सिंधिया अब बीजेपी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं तो कभी बीजेपी के धाकड़ विधायक के पुत्र कांग्रेस के टिकट पर सिंधिया के सामने मैदान में हैं। पिछली बार यहां बीजेपी के केपी यादव से ज्योतिरादित्य पटखनी खाने के बाद इस बार सतर्क और सध कर चल रहे हैं। गुना-अशोकनगर और शिवपुरी बेल्ट में न केवल वोटों की संख्या बल्कि, क्षेत्र पर पकड़ के लिहाज से भी यादव समाज प्रभावशाली है। केपी यादव के टिकट कटने के गलत असर को संभालने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद यहां मोर्चा संभाल चुके हैं। सिंधिया भी अपने परिवार की साख कायम रखने जाति के फैक्टर को साध रहे हैं।