लोकायुक्त ने पूर्व कार्यपालन यंत्री पीडब्ल्यूडी मिश्रा के 6.50 लाख रिश्वत में दर्ज अपने केस में ही लगाया खात्मा

लोकायुक्त ने 6.50 लाख रुपए रिश्वत के मामले में खात्मा रिपोर्ट लगाई, जो इंदौर में आठ साल पहले दर्ज किया गया था। 2017 में, धर्मेंद्र सोनी ने शिकायत की थी कि तत्कालीन पीडब्ल्यूडी कार्यपालन यंत्री रामनाथ मिश्रा ने उनसे...

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Sanjay Gupta
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ईओडब्ल्यू इंदौर ने हाल ही में नौ करोड़ के बैंक लोन गबन केस में खात्मा रिपोर्ट लगा दी थी, जिसे जिला कोर्ट ने खारिज कर दिया और लौटा दिया। अब इस तरह का कांड लोकायुक्त इंदौर ने किया है, जिसमें उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी है। इंदौर लोकायुक्त ने अपने खुद के द्वारा 8 साल पहले दर्ज किए गए 6.50 लाख रुपए के रिश्वत कांड में खात्मा रिपोर्ट लगा दी।

यह है केस

चार जुलाई 2017 को धर्मेंद्र सोनी ने लोकायुक्त में शिकायत की थी कि रामनाथ मिश्रा पिता देशनाथ मिश्रा, तत्कालीन कार्यपालन यंत्री पीडब्ल्यूडी सेतु संभाग इंदौर द्वारा उनसे 1.5 लाख रुपए की रिश्वत ली गई है और पांच लाख और मांग रहे हैं। इसके बाद लोकायुक्त ने उन्हें वाइस रिकॉर्डर दिया और इसमें रिकॉर्ड हुआ जिसमें मिश्रा ने कहा कि पांच लाख रुपए ओएसडी अग्रवाल को दे दें। इसके बाद ट्रैप कार्रवाई हुई लेकिन मिश्रा को पता लग गया तो वह ऑफिस से भाग गए। बाद में लोकायुक्त ने उन्हें गिरफ्तार कर मुचलके पर छोड़ा। वाइस सैंपल भी लिया।

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क्या बोलकर लोकायुक्त ने लगा दिया खात्मा

इस पूरे केस की जांच तत्कालीन लोकायुक्त डीएसपी शिवसिंह यादव और डीएसपी दिनेशचंद्र पटेल ने की। पूरी जांच रिपोर्ट बनी। इसमें वाइस सैंपल रिपोर्ट भी मिश्रा की पॉजिटिव आई यानी उन्होंने रिश्वत मांगी थी। लेकिन बाद में जिला कोर्ट में यह कहते हुए खात्मा लगा दिया कि कोई ठोस सबूत रिश्वत मांगने के नहीं हैं और वाइस रिकॉर्डिंग में भी मांग स्पष्ट नहीं है। इसके चलते लोकायुक्त महोदय की अनुशंसा से यह खात्मा मुख्यालय की मंजूरी से लगाया जा रहा है।

जिला कोर्ट ने यह कहकर खारिज किया खात्मा

वहीं विशेष न्यायाधीश ने इस खात्मा रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के विविध आदेशों का संज्ञान लेते हुए खारिज कर दिया। इसमें कहा गया है पुष्टिकारण साक्ष्य नहीं होने के चलते केस से हटाया जाना उचित नहीं है, जब तक कि अपराध नहीं हुआ है इसके निश्चित साक्ष्य नहीं मिले हों। अपराध नहीं हुआ इसके मजबूत साक्ष्य चाहिए जो इसमें नहीं हैं। कथनों और वाइस रिकॉर्डिंग से साफ है कि पांच लाख की रिश्वत मांगी गई थी। भ्रष्टाचार निवारण एक्ट 1988 की धारा सात के तहत यह दंडनीय अपराध है। जो प्रथमदृष्टया दिख रहा है। इसलिए अंतिम प्रतिवेदन को खारिज किया जाता है। अभियोजन मंजूरी के लिए सक्षम अधिकारी के पास दस्तावेज पेश करें और तीन माह के अंदर कोर्ट को सूचित करें।

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इसके पहले लोकायुक्त ने मिश्रा को हटाने तक के पत्र लिखे थे

उल्लेखनीय है कि साल 2017 में रिश्वत कांड सामने आने के बाद भी जब मिश्रा को विभाग ने पद से नहीं हटाया था, तब लोकायुक्त ने भारी नाराजगी जाहिर की थी और उन्हें भ्रष्टाचार का आरोपी बताते हुए पद से हटाने के लिए एक नहीं तीन-तीन पत्र विभाग को भेजे थे। विभाग के प्रमुख सचिव को तीसरा पत्र भेजते हुए कहा लोकायुक्त ने कहा था कि- मिश्रा ने एक कंस्ट्रक्शन कंपनी से साढ़े छह लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी। वह डेढ़ लाख रुपए ले चुका था। बाकी पैसे देने के लिए फरियादी मिश्रा के पीडब्ल्यूडी स्थित ऑफिस पहुंचा था, किंतु लोकायुक्त पुलिस के आने की भनक लगने के कारण वह वहां से चुपचाप भाग गया था। उन पर 13 जुलाई को भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया। यह पत्र लोकायुक्त के तत्कालीन एसपी दिलीप सोनी ने विभाग के प्रमुख सचिव को लिखा था।

पुल की राशि जारी करने के लिए मांगी थी रिश्वत

मिश्रा के खिलाफ सेट इंडिया इंजीनियरिंग प्रा. लि. के मालिक धर्मेंद्र सोनी की शिकायत पर कार्रवाई की गई। कंपनी पीडब्ल्यूडी से टेंडर लेकर दर्जी कराड़िया में दो करोड़ 77 लाख रुपए का पुल बना रही थी। मिश्रा ने कंपनी से तीन प्रतिशत कमीशन में रिश्वत मांगी। इनमें से डेढ़ लाख रुपए कंपनी का मालिक दे चुका था। बाद में पांच लाख और मांगे। केस दर्ज होने के बाद आरोपी लापता हो गया था। बाद में पकड़ा गया। मिश्रा के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने गत 13 जुलाई को भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज किया था।

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