मानसून सत्र से पहले MP विधानसभा के नियमों में बड़ा बदलाव, हो-हल्ला पर लगी रोक, कांग्रेस आगबबूला

मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रदर्शन और नारेबाजी पर रोक लगाई गई है। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की आवाज को दबाने वाला कदम बताया है। जानें क्यों लगाई गई रोक...

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Amresh Kushwaha
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मध्य प्रदेश विधानसभा में आगामी मानसून सत्र के पहले एक बड़ा निर्णय लिया गया है। इसके तहत विधानसभा परिसर में किसी भी प्रकार की नारेबाजी या प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस आदेश का उद्देश्य सदन में अनुशासन बनाए रखना और सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को रोकना बताया जा रहा है। हालांकि, इस फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी ने कड़ा विरोध दर्ज किया है, और इसे लोकतंत्र के खिलाफ एक कदम बताया है।

विधानसभा अध्यक्ष का आदेश

मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के जरिए जारी किए गए आदेश के तहत, विधानसभा परिसर में विधायकों के जरिए प्रदर्शन, नारेबाजी, या किसी भी प्रकार की भीड़-भाड़ वाली गतिविधि पर पूर्ण रोक लगाई गई है। यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 94(2) के तहत जारी किया गया है। विधानसभा अध्यक्ष ने इसे सत्र के दौरान शांति और अनुशासन बनाए रखने के लिए जरूरी बताया है।

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कांग्रेस ने किया विरोध

कांग्रेस ने इस आदेश का विरोध करते हुए इसे सरकार के दबाव में लिया गया फैसला बताया है। पार्टी के नेता और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने इस फैसले को संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि विपक्ष के जरिए बार-बार यह मांग की जा रही थी कि विधानसभा की कार्यवाही को लाइव किया जाए ताकि जनता देख सके कि सदन में उनके मुद्दों को कैसे उठाया जाता है। लेकिन सरकार और विधानसभा अध्यक्ष ने इन मांगों को नजरअंदाज करते हुए, नारेबाजी और प्रदर्शन पर रोक लगा दी है।

MP विधानसभा में नारेबाजी पर रोक मामले पर एक नजर...

  • मध्य प्रदेश विधानसभा में किसी भी प्रकार की नारेबाजी या प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है, जिसका उद्देश्य शांति और अनुशासन बनाए रखना है।

  • कांग्रेस ने इस फैसले का विरोध करते हुए इसे लोकतंत्र के खिलाफ और सरकार के दबाव में लिया गया कदम बताया है।

  • कांग्रेस का कहना है कि यह आदेश संविधान की धारा 194 का उल्लंघन है, जो विधायकों को सदन में जनता के मुद्दे उठाने का अधिकार देता है।

  • नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस आदेश को "डर का दस्तावेज" और लोकतंत्र का गला घोंटने वाला कदम बताया है।

  • विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि यह कदम विधानसभा में हंगामे और नारेबाजी से होने वाले व्यवधान को रोकने के लिए लिया गया है।

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उमंग सिंघार का बयान

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा, यह आदेश सरकार के दबाव में लिया गया है। हम विधानसभा के सत्र में जनहित के मुद्दे उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और यह प्रतिबंध हमारे अधिकारों का हनन करता है।

जीतू पटवारी का बयान

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने जारी आदेश पर कहा, ये आदेश नहीं, डर का दस्तावेज है! क्योंकि सरकार जानती है कि कांग्रेस के सवाल सबूतों के साथ हैं!

संविधान का उल्लंघन?

कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यह आदेश संविधान की धारा 194 का उल्लंघन है, जो विधायकों को विशेषाधिकार देती है कि वे जनता के मुद्दों को सदन में उठा सकें। नारेबाजी, प्रदर्शन, और सवाल पूछना लोकतंत्र का हिस्सा हैं, लेकिन सरकार इन सभी माध्यमों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस का कहना है कि यह कदम लोकतंत्र के लिए एक खतरा साबित हो सकता है क्योंकि विपक्ष की आवाज को दबाया जा रहा है।

कांग्रेस करेगी खुलकर विरोध

कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वह इस आदेश का खुलकर विरोध करेगी और आगामी सत्र में भी जनहित के मुद्दों को उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। पार्टी ने यह भी कहा कि वह विधानसभा में सत्र के दौरान सभी लोकतांत्रिक तरीके अपनाएंगे, ताकि सरकार की नीतियों का सही तरीके से विरोध किया जा सके।

लोकतंत्र की रक्षा: कांग्रेस की प्रतिक्रिया

कांग्रेस का यह भी कहना है कि विधानसभा में प्रदर्शन और नारेबाजी लोकतंत्र की अभिव्यक्ति के रूप में हो सकती है। यदि विपक्ष को अपनी बात रखने का अधिकार नहीं मिलेगा तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा होगा। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र का गला घोंटने वाला निर्णय करार दिया है।

जानें क्यों लिया गया फैसला?

विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि यह फैसला शांति और अनुशासन बनाए रखने के लिया गया है। उनका मानना है कि विधानसभा परिसर में हंगामा और नारेबाजी से कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। इसके अलावा, इसका असर जनता की नजरों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गरिमा पर पड़ सकता है।

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