मध्यप्रदेश में डकैत खत्म, लेकिन कानून जिंदा... पुलिस ने 3 साल में दर्ज कर लीं 922 एफआईआर

मध्यप्रदेश में डकैतों का सफाया होने के बावजूद, एक कड़े कानून का इस्तेमाल जारी है, जिसके तहत 922 FIR दर्ज की गई हैं। राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा और विधायक मेवाराम जाटव ने इस कानून को समाप्त करने की मांग की है।

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Manish Kumar
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Photograph: (The Sootr)

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BHOPAL. मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल अंचल में अब कोई डकैत नहीं बचा है। सरकार खुद यह बात विधानसभा में रिकॉर्ड पर ला चुकी है। फिर भी ऐसा कड़ा और दमनकारी कानून अब भी लागू है, जिसकी जरूरत खत्म हो चुकी है। हैरानी की बात यह है कि इसी कानून के तहत बीते तीन सालों में पुलिस ने 922 FIR दर्ज की हैं।

सवाल यह है कि जब न अपराध बचा, न अपराधी तो फिर यह कार्रवाई किसके खिलाफ? अब राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने इस कानून को खत्म करने की मांग की है। उन्होंने इसे लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को चिट्ठी लिखी है। इससे पहले भिंड विधायक मेवाराम जाटव भी विधानसभा में इसे निरस्त करने की मांग उठा चुके हैं।

1981 में बना था कानून

वर्ष 1981 में जब ग्वालियर-चंबल अंचल डकैतों के खौफ से थर्राता था, तब तत्कालीन सरकार ने 'मध्यप्रदेश डकैती और व्यापार प्रभाव क्षेत्र अधिनियम (MPDAA)' लागू किया था। उस वक्त यह कानून अपराध पर अंकुश का जरिया बना था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।

वर्ष 2007 के सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, प्रदेश में आखिरी लिस्टेड डकैत की मौत के बाद कोई नया डकैत नहीं दर्ज हुआ है। मार्च 2023 के विधानसभा दस्तावेज भी यही पुष्टि करते हैं। प्रदेश में अब कोई डकैत गैंग सक्रिय नहीं है। फिर भी यह कानून अस्तित्व में है। हैरानी की बात यह है कि वर्ष 2020 से 2023 तक चंबल क्षेत्र के छह जिलों में पुलिस ने 922 एफआईआर दर्ज की हैं। यह चौंकाने वाला तथ्य है। 

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MPDAA बन रहा संविधान विरोधी

राज्यसभा सांसद तन्खा के मुताबिक, यह कानून अब संविधान के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहा है। खासकर अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के खिलाफ जाता है।

MPDAA के 3 आपत्तिजनक प्रावधान

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👉  धारा 5: अग्रिम जमानत पर पूरी तरह प्रतिबंध।
👉  विशेष अदालतें: जिनकी प्रक्रिया निष्पक्षता को कमजोर करती है।
👉  संपत्ति की कुर्की: पुलिस को मनमानी की खुली छूट देती है।

सामाजिक समरसता का दुश्मन

देश के कई सामाजिक संगठनों, मानवाधिकार विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने MPDAA पर आपत्तियां उठाई हैं। उनका कहना है कि यह कानून जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देता है। विशेष समुदायों को टारगेट करने का औजार बन गया है। इससे लोगों के बीच डर और अविश्वास पैदा हो रहा है। यह सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय के खिलाफ खड़ा हो चुका औजार है।

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तन्खा ने अपनी ​चिट्ठी में लिखा...

राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने चिट्ठी में मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव को लिखा है, 'आपकी प्रशासनिक कुशलता और संवेदनशीलता से हम सब परिचित हैं। मुझे विश्वास है कि आप इस कानून की अप्रासंगिकता को समझेंगे और इसे समाप्त कर लोकतंत्र और संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सिद्ध करेंगे।'  

अब क्या? सरकार करेगी कार्रवाई?

मध्यप्रदेश में पिछले दो दशकों में बड़ी मात्रा में पुलिस बल, विशेष सशस्त्र बल, जनजागरूकता अभियानों और विकास योजनाओं के कारण अपराधों पर जबरदस्त लगाम लगी है। डकैतों की कहानियां अब इतिहास हैं, लेकिन MPDAA अब भी चल रहा है। यदि यह कानून बिना अपराध के भी लोगों को अपराधी बना रहा है तो यह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।

अब राज्य की जनता इस सवाल का जवाब चाहती है कि जब न डकैत हैं, न गिरोह तो 922 एफआईआर किसके खिलाफ और क्यों लिखी गई हैं।

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FAQ

एमपी में डकैती और व्यापार प्रभाव क्षेत्र अधिनियम (MPDAA) को क्यों निरस्त करने की मांग की जा रही है?
मध्यप्रदेश में डकैतों के खात्मे के बावजूद, MPDAA कानून का उपयोग जारी रखा गया है। इसे संविधान के खिलाफ, विशेषकर अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन मानते हुए, इसे समाप्त करने की मांग की जा रही है।
MPDAA के तहत क्या आपत्तिजनक प्रावधान हैं?
MPDAA के तीन मुख्य आपत्तिजनक प्रावधानों में अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध, विशेष अदालतों की प्रक्रिया की निष्पक्षता में कमी और संपत्ति की कुर्की में पुलिस को मनमानी की छूट देना शामिल हैं, जो कानून के दुरुपयोग का कारण बन सकते हैं।
मध्यप्रदेश में MPDAA के तहत कितनी एफआईआर दर्ज की गईं?
डकैत और गिरोह अब सक्रिय नहीं हैं, फिर भी MPDAA के तहत पुलिस ने पिछले तीन सालों में 922 एफआईआर दर्ज की हैं।

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