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कांग्रेस से बीजेपी में भागकर आए डॉ. अक्षय बम के पिता कांतिलाल बम को इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह के फैसले ने 1000 करोड़ से ज्यादा का तगड़ा झटका दे दिया है। भंडारी मिल जिसे होप टेक्सटाइल मिल भी कहा जाता है, इसकी 1000 करोड़ से ज्यादा कीमत की 22.24 एकड़ जमीन (सर्वे नंबर 282/2) को सरकारी घोषित कर दिया गया है। साथ ही इस पर जिला प्रशासन ने गुरुवार (21 अगस्त) को मौके पर जाकर एसडीएम प्रदीप सोनी और उनकी टीम ने कब्जा भी ले लिया है।
बीजेपी के पाले में आने का बड़ा कारण जमीन भी
कहा जाता है कि इसी जमीन को बचाने के चक्कर में ही बम कांग्रेस से बीजेपी की ओर भागे थे और एक मंत्री के करीब आए थे। लेकिन यह दांव फेल हो गया है। बीजेपी के पाले में आने के बाद भी उनके पिता के हाथ से यह करोड़ों की जमीन निकल गई है, जिस पर वह सालों से कब्जा करके बैठे हुए थे।
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इस तरह केस कलेक्टर के पास गया
तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने अक्टूबर 2012 में इस जमीन को सरकारी घोषित कर दिया था। इस पर कांतिलाल बम ने 9766/2012 याचिका दायर की। इस पर एक अप्रैल 2025 को आदेश आया और कलेक्टर के आदेश को यह कहते हुए रद्द किया गया कि इसमें विधिवत सुनवाई नहीं हुई और कलेक्टर इसमें फिर से सुनवाई करे। इसके बाद कलेक्टर आशीष सिंह ने डीएम कोर्ट में इस पर केस रजिस्टर्ड कर कांतिलाल बम को नोटिस जारी किए और जवाब मांगा।
इसमें दो बार नोटिस जारी किए गए और विस्तृत जवाब लिया। इसके बाद 20 अगस्त को इसमें आदेश दिया और 21 अगस्त को जिला प्रशासन ने मौके पर जाकर कब्जा ले लिया। हालांकि जिला कोर्ट की पार्किंग के लिए 4.93 एकड़ जमीन की व्यवस्था बनी रहेगी, आदेश में इसे बनाए रखा गया है और बाकी जमीन प्रशासन के कब्जे में लेने के आदेश हैं।
इस तरह हुए नोटिस
कांतिलाल बम को पहले नोटिस हुए तो बम ने कलेक्टर कोर्ट के न्यायिक क्षेत्राधिकार को ही चुनौती दी और कहा कि उन्हें सुनने के अधिकार नहीं है। इस पर कलेक्टर कोर्ट ने लिखा कि राजस्व की जमीन, पट्टेदार की जमीन के मामले को सुनने के अधिकार उन्हें कानून से प्राप्त है। साथ ही हाईकोर्ट ने भी इस केस को फिर से कलेक्टर कोर्ट को सुनने के लिए भेजा है।
इसके बाद बम को फिर नोटिस हुआ। इसमें उन्होंने विस्तार से जवाब देकर कहा कि यह जमीन कंपनी को होलकर स्टेट से 1939 में 99 साल की लीज पर मिली थी। समय-समय पर शासन के आदेश हुए। 1982 में उनके पक्ष में सरकार से आदेश हुए। फिर बीआईएफआर में भी जमीन को बिक्री के अधिकार मिले।
कलेक्टर कोर्ट के आदेश
कलेक्टर कोर्ट ने कहा कि यह जमीन पूरी तरह से लीज पर थी और लीज शर्तों का उल्लंघन करते हुए इसे बेचा गया। सुप्रीम कोर्ट के एक केस के अनुसार लीज 99 साल की हो या 999 साल की, इससे किसी भी तरह भू-स्वामित्व अधिकार नहीं मिलता है। कंपनी को 1982 आदेश से जमीन के एक हिस्से के वाणिज्यिक उपयोग की मंजूरी सिर्फ इसलिए दी गई थी कि इससे वह मिल का नवीनीकरण करें और मजदूरों का पुनर्वास करें।
यहां पर 8 एकड़ जमीन पर मिल थी, लेकिन अब वहां कुछ नहीं है, यानी मिल के नवीनीकरण को लेकर कुछ नहीं किया गया। यह लीज टेक्सटाइल उद्योग के लिए थी, लेकिन जब मिल नहीं है तो साफ है कि लीज शर्त का आधार ही खत्म हो गया है। जब मेसर्स नंदलाल भंडारी एंड संस को जमीन लीज पर दी थी, तो सबलीज देने का प्रावधान ही नहीं था, लेकिन अक्टूबर 1955 में जमीन बेच दी गई, जो लीज शर्तों का उल्लंघन है। जबकि औद्योगिक उपयोग के लिए सबलीज के प्रावधान 1967 में हुए, इसके पहले ही जमीन बेच दी गई।
जमीन के लिए 1982 में तय हुए आदेश के अनुसार 22.24 एकड़ में से 8.24 एकड़ पर मिल है। 14 एकड़ में से 1.97 सड़क बनाने में गई। बाकी 12.03 एकड़ में 60 फीसदी यानी 7.2 एकड़ राज्य शासन की मानी गई और 40 फीसदी यानी 4.812 कंपनी वाणिज्यिक व आवासीय उपयोग के लिए की गई ताकि इससे मिल का नवीनीकरण हो और मजदूरों का पुनर्वास। लेकिन कंपनी ने मिल का कुछ नहीं किया और मौके पर 8.24 एकड़ जमीन पर मिल नाम की कोई संपत्ति नहीं है, खाली मैदान है। इसलिए इस जमीन पर संबंधित तहसीलदार को आदेश दिए जाते हैं कि तीन दिन में कब्जा लें।
क्या है जमीन का केसहोलकर काल में सितंबर 1939 में नंदलाल एंड भंडारी संस को सर्वे नंबर 148, 151/1654, 148/1653 की 3.18 एकड़ और सर्वे नंबर 282/2 की 22.24 एकड़ जमीन इंडस्ट्रियल यूज़ के लिए दी गई। यह जमीन 99 साल की लीज पर पांच लाख रुपए में दी गई। शर्त थी कि इंडस्ट्रियल यूज़ होगा, यह पांच लाख की राशि 50-50 हजार की किश्तों में चुकाई जाएगी और साथ ही 6000 रुपए प्रति साल का वार्षिक किराया होगा।
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जिला प्रशासन की जांच में यह चौंकाने वाली बात आई
तत्कालीन आईएएस आकाश त्रिपाठी द्वारा नजूल अधिकारियों से इसकी जांच कराई गई। कमेटी ने पाया कि मौके पर मिल है ही नहीं जो 8.24 एकड़ पर बताई गई थी, यानी इंडस्ट्रियल यूज़ जमीन का खत्म हो चुका था। वहीं 1982 के तय शासन शर्तों के अनुसार 4.5 एकड़ जमीन पर ही वाणिज्यिक व आवासीय न्यू सियागंज होना था, जो इसके विपरीत 10.21 एकड़ जमीन पर विकसित कर बेच दिया गया। बाकी 12 एकड़ जमीन रिक्त है और बाउंड्रीवाल से घिरी हुई है।
इस मामले में बम ने कलेक्टर कोर्ट में बताया कि 1996 के आदेश से सभी जमीन पर वाणिज्यिक उपयोग की मंजूरी मिली है और इस न्यू सियागंज विकास से 14.25 करोड़ मिले, जिससे पूरी देनदारी खत्म की गई। लेकिन इन तर्कों से कलेक्टर कोर्ट सहमत नहीं हुई और उन्होंने लीज उल्लंघन मानते हुए सभी जमीन को शासकीय घोषित करते हुए कब्जे में लेने के आदेश दिए।
इस मिल में कैसे आए कांतिलाल बम
इसमें चौंकाने वाली बात कांतिलाल बम की इंट्री रही। बम साल 2003 से पहले कहीं भी नहीं थे। लेकिन जब मिल का बीआईएफआर में केस चला, तब मार्च 2003 में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग हुई। इसमें बीके पोद्दार चेयरमैन, डायरेक्टर में बीआईएफआर के नामिनी डीआर गंगोपाध्याय और डायरेक्टर वीके भूस्सरे मौजूद थे। सभी ने एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के तौर पर कांतिलाल बम को नियुक्त किया। इसके साथ ही बम को सभी तरह के कार्यकारी अधिकार भी जारी कर दिए गए। इसके बाद से ही बम ही अब इस मिल के सभी मामलों में औपचारिक चेहरा हैं। कलेक्टर कोर्ट में पहले चले केस में और अभी भी कांतिलाल बम ही इस मामले में सामने आए हैं।
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