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जबलपुर हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की हड़ताल को गैरकानूनी करार देने वाले मामले में डॉक्टरों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर डॉक्टर सरकार के किसी फैसले से असंतुष्ट होते हैं, तो वे हड़ताल और आंदोलन कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें पहले कोर्ट को जानकारी देना होगा।
हाईकोर्ट का आदेश
बता दें कि यह आदेश चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत की बेंच ने सरकारी डॉक्टरों की हड़ताल से संबंधित मामले में दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देशित किया है कि वह डॉक्टरों की लंबित मांगों को हल करने के लिए अगले दो सप्ताह में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करे।
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क्या है मामला?
इसके अलावा, हाईकोर्ट ने चिकित्सक महासंघ को एक सप्ताह का समय दिया है, ताकि वे अपनी सभी लंबित मांगों और सुझावों को राज्य सरकार तक पहुंचा सकें। दरअसल, यह मामला 2023 में प्रदेशभर के डॉक्टरों की हड़ताल से जुड़ा हुआ है, जब 3 मई को चिकित्सक महासंघ के आह्वान पर राज्य के सभी मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल, सीएससी और पीएचसी के डॉक्टर हड़ताल पर चले गए थे।
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डॉक्टरों की क्या थी मांग
चिकित्सक महासंघ ने राज्य सरकार से डॉक्टरों के कार्यकाल, वेतन और सुविधाओं को लेकर कई अहम मांगें की थीं। इन मांगों का समाधान न होने पर डॉक्टर लगातार हड़ताल और विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। शासकीय-स्वशासी चिकित्सा महासंघ मध्यप्रदेश के मुख्य संयोजक डॉक्टर राकेश मालवीय के अनुसार, पहले हाईकोर्ट ने प्रदेश के डॉक्टरों की हड़ताल को गैरकानूनी करार दिया था और भविष्य में किसी भी टोकन स्ट्राइक के लिए कोर्ट की अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया था। इसके बाद डॉक्टरों ने अपनी आवाज उठाने के लिए अन्य तरह के उपायों की तलाश शुरू की।
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