वकील ने जज से कहा- इस कोर्ट में चल रहा तमाशा, चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत के पास पहुंचा मामला

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में न्यायपालिका की गरिमा और अनुशासन से संबंधित एक गंभीर मामला सामने आया, जब एक वकील ने सुनवाई के दौरान न्यायालय की कार्यवाही पर तीखी और असंतोषजनक टिप्पणी की।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में न्यायपालिका की गरिमा और अनुशासन से संबंधित एक महत्वपूर्ण मामला उस समय सामने आया जब एक वकील ने सुनवाई के दौरान न्यायालय की कार्यवाही पर कड़ी और असंतोषजनक टिप्पणी की। कोर्ट ने इस टिप्पणी को गंभीरता से लेते हुए इसे न्यायपालिका की अवमानना माना और इस पर उचित कार्रवाई के लिए मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेजने का आदेश दिया।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, यह विवाद क्रिमिनल अपील नंबर 14383/2024 (राजहंस बगाड़े एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य) से जुड़ा हुआ है, जिसमें पांढुर्णा में हुई एक मारपीट की घटना को लेकर हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी। इस केस में पूर्व में दिए गए आदेश के खिलाफ क्रिमिनल रिवीजन अपील दाखिल की गई थी, जिसकी सुनवाई हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला की एकल पीठ के समक्ष हो रही थी। सुनवाई के दौरान जब वकील की ओर से असंतोषजनक और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया, तब कोर्ट ने इसे अनुशासनहीनता और न्यायपालिका की गरिमा के विरुद्ध मानते हुए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया।

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वकील की तीखी टिप्पणी ने बढ़ाया विवाद

सुनवाई के दौरान, अपीलकर्ताओं के वकील ने न्यायालय की कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करते हुए बेहद तीखी और अनुचित भाषा का प्रयोग किया। उन्होंने कहा- "इस कोर्ट में 4 घंटे से तमाशा चल रहा है, मैं बैठा देख रहा हूं। हाईकोर्ट के जज दूसरी जगह जाकर कहते हैं कि नए जज का अपॉइंटमेंट करो, लेकिन जजेस का हाल तो देखो। जो दिल्ली में हुआ, वह भी देखा जाए। यहां पेंडेंसी बढ़ रही है और हमें परेशान किया जा रहा है। मैं आज शाम को जाकर मोहन यादव को बोलता हूं।"

इसके अलावा, वकील ने यह भी कहा कि उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन यादव से लगभग 20 बार संपर्क कर आग्रह किया कि यह मामला किसी अन्य पीठ को स्थानांतरित कर दिया जाए, क्योंकि वह वर्तमान पीठ के समक्ष बहस नहीं करना चाहते। इस प्रकार का बयान सीधे-सीधे न्यायालय की निष्पक्षता पर सवाल उठाने जैसा था, जिसे न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला ने गंभीरता से लिया।

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हाईकोर्ट की सख्त प्रतिक्रिया

न्यायालय ने वकील की उक्त टिप्पणियों को न्यायपालिका की अवमानना मानते हुए आदेश जारी किया। न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस प्रकार की भाषा न केवल अशोभनीय है, बल्कि यह न्यायालय की गरिमा के खिलाफ भी जाती है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस तरह के बयान अदालत की स्वायत्तता और न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता को प्रभावित करते हैं। किसी भी वकील द्वारा इस तरह की असंयमित भाषा का उपयोग करना न्यायपालिका पर सीधा प्रहार करने के समान है। इसलिए, न्यायालय ने निर्देश दिया कि इस आदेश की प्रमाणित प्रति मुख्य न्यायाधीश को उनकी कृपा दृष्टि और आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजी जाए।

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मामले की सुनवाई स्थगित, चीफ जस्टिस लेंगे फैसला

इस पूरे घटनाक्रम के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई स्थगित कर दी है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि चीफ जस्टिस इस पर क्या फैसला लेते हैं? क्या इस मामले में संबंधित वकील को न्यायपालिका की अवमानना के तहत नोटिस जारी होगा, या फिर किसी अन्य तरीके से इसे निपटाया जाएगा?

इस मामले ने न्यायिक प्रक्रियाओं के दौरान संयमित भाषा और आचरण बनाए रखने की आवश्यकता को एक बार फिर उजागर कर दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि हाईकोर्ट इस मामले में आगे क्या कार्रवाई करता है और न्यायालय की गरिमा बनाए रखने के लिए किस प्रकार के कदम उठाए जाते हैं।

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