मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट समेत मध्य प्रदेश में आगामी सभी भर्ती परीक्षाओं में अनारक्षित पदों पर मेरिट के आधार पर अभ्यर्थियों का चयन किया जाएगा। बुधवार को कोर्ट ने सिविल जज भर्ती परीक्षा 2022 समेत अन्य सभी चयन परीक्षाओं को याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन कर दिया था, वहीं आज फैसला सुनाया गया।
प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को मिलेगा मौका
दोपहर 12 बजे हाईकोर्ट में याचिका पर सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन ने हाईकोर्ट और सरकार के अधिवक्ता को बताया कि इस याचिका में उठाए गए मुख्य बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई 2024 को अपना फैसला सुनाया है। इसमें कहा गया है कि हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा 7 अप्रैल 2022 को पारित निर्णय को बरकरार रखा गया है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चयन परीक्षा के प्रत्येक चरण में अनारक्षित पदों को सभी श्रेणियों के प्रतिभाशाली उम्मीदवारों से ही भरा जाएगा।
देश के कई हाईकोर्ट ने फैसला रेखांकित किया
हाईकोर्ट ने निर्णय पारित करते हुए न्यायमूर्ति शील नागू एवं न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह की खंडपीठ द्वारा पारित निर्णय 02 जनवरी 2023 को विधि एवं सामाजिक न्याय के अनुरूप नहीं पाया है। तत्कालीन मुख्य न्यायमूर्ति रवि मलिमथ एवं विशाल मिश्रा की खंडपीठ द्वारा 01 अप्रैल 2024 को पारित निर्णय को भी सर्वोच्च न्यायालय एवं विधि के अनुरूप नहीं पाया तथा उसका निराकरण कर दिया। इसमें कहा कि उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई निर्णयों में रेखांकित किया है तथा दीपेन्द्र यादव बनाम मध्य प्रदेश सरकार में इसे बरकरार रखा है। गुजरात, कलकत्ता, बॉम्बे, दिल्ली, तेलंगाना सहित कई उच्च न्यायालयों ने अपने निर्णयों में इन निर्णयों को रेखांकित किया गया है।
साल 2022 में लड़ रहा है अजाक्स संघ
साल 2022 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के द्वारा जो सिविल जज की भर्ती परीक्षा हुई थी उसमें चयन के दौरान एसटी वर्ग के कुछ पद रिक्त रह गए थे। इसके बाद हाई कोर्ट के द्वारा इन पदों को बैकलॉग दिखाकर सरकार से यह निवेदन किया गया था कि इन आरक्षित पदों पर भी अनारक्षित वर्ग की भर्तियों की अनुमति दी जाए। इसके बाद आजाद के द्वारा राष्ट्रपति को पत्र लिखने के साथ ही रजिस्ट्रार जनरल से निवेदन एवं याचिका दायर की गई थी। लेकिन इस समय अजाक्स संघ को लाभ नहीं मिल पाया था। इसके बाद संघ के द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिस याचिका की सुनवाई के जस्टिस की डबल बेंच में हुई। मामले में अजाक्स संघ की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने बताया कि जी इस मामले से जुड़ा एक फैसला जबलपुर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने भी दिया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कोट किया था। जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने यह स्पष्ट किया है कि अब केवल हाईकोर्ट ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश में होने वाली सभी भर्तियों एवं परीक्षाओं के हर चरण में अनारक्षित पदों पर उन कैंडिडेट्स को ही मौका मिलेगा जो मैरिट में आते हैं। इस तरह से हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अनारक्षित पदों में अब प्रतिभावान अभ्यर्थियों को ही मौका मिलेगा।
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कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि अब से मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के परीक्षा सेल द्वारा आयोजित सभी भविष्य की भर्ती परीक्षाओं में चयन प्रक्रिया के सभी चरणों में अनारक्षित श्रेणी में मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को माइग्रेशन का लाभ दिया जाएगा। हालांकि यह स्पष्ट किया गया है कि परीक्षा सेल द्वारा आयोजित चल रही भर्ती परीक्षा, जिसमें परीक्षा (प्रारंभिक या मुख्य) पहले ही आयोजित की जा चुकी है, इस आदेश से प्रभावित नहीं होगी। हाईकोर्ट ने अपने 20 नवंबर 2024 के आदेश को केवल 24 घंटे के भीतर पुनः सुनवाई कर निरस्त किया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले (दीपेंद्र यादव बनाम मध्य प्रदेश शासन, SLP 5817/2023) के आलोक में याचिका का अंतिम निपटारा कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस याचिका को लंबित रखकर आरक्षित वर्गों के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। फैसले में यह भी निर्देश दिया गया कि चयन परीक्षा के प्रत्येक चरण, चाहे वह प्रारंभिक हो या मुख्य, सभी अनारक्षित पदों को केवल मेरिट के आधार पर भरा जाएगा।
युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं
यह याचिका 20 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हुई थी, जिसमें हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों से जवाब तलब करते हुए समस्त भर्तियों को याचिका के अधीन कर दिया था। लेकिन उसी शाम 4:45 बजे फुल कोर्ट मीटिंग के बाद इसे 21 नवंबर को पुनः सूचीबद्ध किया गया। कोर्ट ने संबंधित अधिवक्ताओं को रात 7:30 बजे सूचित कर अगली सुबह सुनवाई के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, और पुष्पेंद्र शाह ने पैरवी की। उन्होंने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि चयन प्रक्रिया को लंबित रखकर युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। इस फैसले के तहत मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों की भर्तियों में मेरिट को सर्वोपरि मानने का स्पष्ट संदेश दिया गया है। हाईकोर्ट ने इसे सभी भविष्य की भर्तियों के लिए प्रभावी करार दिया है। यह फैसला सामाजिक न्याय और संविधान के सिद्धांतों को सुदृढ़ करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
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