शिक्षक भर्ती, ओबीसी आरक्षण समेत कई मुद्दों पर हाईकोर्ट ने सरकार से पूछे कड़े सवाल, जानें

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शिक्षक भर्ती और अन्य सरकारी भर्तियों में ओबीसी आरक्षण (87-13 फ़ॉर्मूला) पर सुनवाई के दौरान सरकार और महाधिवक्ता से कड़े सवाल किए।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में शिक्षक भर्ती और अन्य सरकारी भर्तियों में ओबीसी आरक्षण (87-13 फॉर्मूला) को लेकर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार और महाधिवक्ता से कड़े सवाल किए। चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने महाधिवक्ता से स्पष्ट किया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य में 58% आरक्षण को लागू करने की अनुमति दे दी है, तो मध्य प्रदेश सरकार इसे अपनाने से क्यों बच रही है? कोर्ट ने यह भी पूछा कि जब याचिका पहले ही खारिज हो चुकी है, तो 13% ओबीसी आरक्षण वाले पदों को अब तक अनहोल्ड क्यों नहीं किया गया?

महाधिवक्ता नहीं दे सके संतोषजनक जवाब

गुरुवार को हुई सुनवाई में जब हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता से पूछा कि किस हाईकोर्ट आदेश के तहत ओबीसी के 13% पदों को होल्ड किया गया है, तो महाधिवक्ता कोई ठोस जवाब नहीं दे सके। उन्होंने शिवम गौतम बनाम मध्य प्रदेश सरकार की याचिका में 4 मई 2022 को पारित अंतरिम आदेश का हवाला देते हुए दावा किया कि इसी आदेश के कारण ओबीसी वर्ग की नियुक्तियां रोकी गई हैं।हालांकि, याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक शाह ने कोर्ट को बताया कि महाधिवक्ता जिस आदेश का हवाला दे रहे हैं, वह याचिका पहले ही हाईकोर्ट से निस्तारित हो चुकी है। यही नहीं, मध्य प्रदेश सरकार खुद इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करा चुकी है, जहां अब तक कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं हुआ है। बल्कि, सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 24 फरवरी 2025 को छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण लागू करने की अनुमति दी है। इसके बावजूद, मध्य प्रदेश सरकार इस संबंध में कोई ठोस निर्णय नहीं ले रही।

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अपना ही कानून लागू क्यों नहीं करना चाहती सरकार - HC

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि जब न्यायालय ने स्पष्ट रूप से 13% ओबीसी आरक्षण वाले पदों को होल्ड करने का कोई आदेश पारित नहीं किया, तो सरकार किस आधार पर इन पदों को रोके हुए है? कोर्ट ने महाधिवक्ता से यह भी पूछा कि याचिका क्रमांक WP/18105/2021 में 4 अगस्त 2023 को पारित अंतरिम आदेश के कारण शिक्षक भर्ती की दूसरी काउंसलिंग के चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किए गए थे। लेकिन जब हाईकोर्ट ने 28 जनवरी 2025 को इस याचिका को खारिज की, तो अब तक योग्य उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र क्यों नहीं दिए गए? वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कोर्ट को यह भी अवगत कराया कि जब इस संबंध में अभ्यर्थियों ने कारण जानने के लिए सूचना का अधिकार (RTI) के तहत जानकारी मांगी, तो डायरेक्टर ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन (DPI) द्वारा जवाब दिया गया कि उपरोक्त याचिका के कारण नियुक्ति पत्र जारी नहीं किए गए। अब जब यह याचिका हाईकोर्ट द्वारा खारिज की जा चुकी है, तो सरकार नियुक्ति पत्र जारी करने में देरी क्यों कर रही है?

13% पद रहेंगे रिक्त रखने का अंतरिम आदेश

इस पूरे मामले पर कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा कि राज्य सेवा की सभी भर्तियों में, चाहे भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी हो या नहीं, ओबीसी वर्ग के 13% पद रिक्त रखे जाएंगे। इन पदों को याचिकाओं के अंतिम निपटारे के बाद भरा जाएगा। इसके साथ ही, कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि 2019 से लेकर अब तक की सभी सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं की पूरी जानकारी लिखित में कोर्ट में पेश की जाए। यह आदेश यह भी दर्शाता है कि कोर्ट सरकार की ओर से हो रही देरी और अनिश्चितता पर कड़ा रुख अपना रहा है।

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अगली सुनवाई 4 अप्रैल को

मामले की अगली सुनवाई 4 अप्रैल 2025 को तय की गई है, जिसमें सरकार को 2019 से अब तक हुई सभी भर्तियों की स्थिति स्पष्ट करनी होगी। याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक शाह, पुष्पेंद्र शाह और रूप सिंह मरावी ने की।

सरकार के रवैये पर सवाल

इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान परिस्थितियों में छत्तीसगढ़ को 58% आरक्षण की अनुमति दी जा चुकी है, तो मध्य प्रदेश सरकार अपना ही कानून लागू करने में आनाकानी क्यों कर रही है? क्या यह सरकार की नीतिगत अस्पष्टता है, या फिर किसी राजनीतिक कारण से देरी की जा रही है? इन सभी सवालों के जवाब 4 अप्रैल को होने वाली अगली सुनवाई में और स्पष्ट हो सकते हैं।

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