मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा के लिए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना तेजी से हो रही है, लेकिन इन कॉलेजों की असल स्थिति बेहद चिंताजनक है। जहां एक तरफ राज्य में मेडिकल कॉलेजों की संख्या में इजाफा हो रहा है, वहीं दूसरी ओर इन कॉलेजों में बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) द्वारा हाल ही में की गई जांच में यह तथ्य सामने आए हैं कि राज्य के 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में गंभीर खामियां हैं।
एनएमसी की जांच रिपोर्ट में सामने आईं ये समस्याएं
नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) की जांच में पाया गया है कि इन कॉलेजों में मरीजों की कमी, आवश्यक जांचों की अनुपस्थिति, और शिक्षक-शिक्षा की कमी जैसी समस्याएं हैं। एनएमसी ने इन 13 कॉलेजों को 4 से 7 बिंदुओं पर नोटिस जारी किया है, जिसमें इन खामियों का उल्लेख किया गया है। जांच 3 से 7 मई 2025 के बीच की गई थी और सभी कॉलेजों पर मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन 2023 के उल्लंघन का आरोप है।
13 मेडिकल कॉलेजों में समान समस्याएं
यहां की समस्याएं लगभग सभी कॉलेजों में एक जैसी हैं, जिनमें विदिशा, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, नीमच, सागर, रतलाम, शिवपुरी और अन्य प्रमुख स्थान शामिल हैं। सबसे बड़ी समस्या मरीजों की कमी है, जहां विदिशा मेडिकल कॉलेज में आपातकालीन सर्जरी की संख्या शून्य पाई गई। इसके अलावा, अधिकांश फैकल्टी भोपाल से रोजाना आ-जा रही हैं, जो शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है।
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फैकल्टी की भारी कमी
राज्य के मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की गंभीर कमी देखी गई है। भोपाल (जीएमसी) के कॉलेज में 20 विभागों में फैकल्टी की संख्या बेहद कम मिली, और कई विभागों में आवश्यक संसाधन जैसे कि क्लिनिकल पैथोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी की सुविधाएं अनुपलब्ध थीं। जबलपुर और ग्वालियर के कॉलेजों में भी फैकल्टी और ट्यूटर की भारी कमी पाई गई।
इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति
इसके अलावा, कई कॉलेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति भी बेहद खराब है। जैसे कि नीमच में एमआरआई मशीन की अनुपस्थिति पाई गई, और सागर में कई महत्वपूर्ण परीक्षा वीडियो रिकॉर्डिंग गायब थीं। शिवपुरी, शहडोल और रतलाम में भी फैकल्टी की उपस्थिति कम थी और मरीजों की संख्या भी बहुत कम थी, जिससे इन कॉलेजों की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं।
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एनएमसी का सख्त रुख
नेशनल मेडिकल कमीशन ने इन कॉलेजों को 7 दिनों के भीतर जवाब देने का आदेश दिया है और सभी कॉलेजों पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस पर अधिकतम 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना भी लग सकता है। यह कदम राज्य के मेडिकल कॉलेजों में सुधार के लिए आवश्यक माना जा रहा है ताकि चिकित्सा शिक्षा के स्तर को बेहतर किया जा सके।
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