INC और एमपी नर्सिंग काउंसिल के अफसरों को MP हाइकोर्ट ने किया तलब

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता में फर्जीवाड़े को लेकर सख्त आदेश जारी किए। न्यायाधीश संजय द्विवेदी और अचल कुमार पालीवाल की पीठ ने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए ट्रांसफर के निर्देश दिए।

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Neel Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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JABALPUR. मध्य प्रदेश में वर्षों से चल रहे नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता से जुड़े फर्जीवाड़े की पोल परत दर परत हाइकोर्ट के सामने खुल रही है। इस गंभीर प्रकरण में शुक्रवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की विशेष खंडपीठ ने बेहद महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए न केवल जिम्मेदार अधिकारियों को कटघरे में खड़ा किया बल्कि पारदर्शिता और छात्रों के हितों को सर्वोपरि मानते हुए उनके ट्रांसफर को लेकर भी सख्त निर्देश जारी किए हैं।

जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की युगल पीठ के समक्ष जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई, जिसमें प्रमुख याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल द्वारा प्रस्तुत तथ्यों ने अदालत का ध्यान दोषियों की लापरवाही और कार्यशैली की ओर खींचा है।

आदेश की अवहेलना न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप के बराबर

याचिकाकर्ता द्वारा अदालत में यह विशेष रूप से दर्शाया गया कि हाईकोर्ट ने इंडियन नर्सिंग काउंसिल और मध्य प्रदेश नर्सिंग काउंसिल को पहले ही तीन बार स्पष्ट निर्देश दिए थे कि वे राज्य में नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता से संबंधित सभी दस्तावेज और रिकॉर्ड कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करें। 

लेकिन, इन निर्देशों के बावजूद दोनों संस्थाओं के उच्च अधिकारी न केवल कोर्ट के आदेशों की अनदेखी कर रहे हैं बल्कि रिकॉर्ड को दबाने का भी प्रयास कर रहे हैं। इस गंभीर अवहेलना पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि न्यायालय के आदेशों की अवहेलना केवल गैर-जिम्मेदारी नहीं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने जैसा कृत्य है। कोर्ट ने इस अवहेलना को ‘दोषियों को बचाने का संगठित प्रयास’ करार दिया।

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अगली सुनवाई में कोर्ट में उपस्थित होकर देनी होगी सफाई

कोर्ट ने इस पूरे मामले को अत्यंत गंभीर मानते हुए इण्डियन नर्सिंग काउंसिल की सचिव तथा एमपी नर्सिंग काउंसिल के रजिस्ट्रार व चेयरमैन को व्यक्तिगत रूप से अगली सुनवाई में उपस्थित होकर जवाब देने के निर्देश दिए हैं।

अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाना आवश्यक है कि आखिर इतने स्पष्ट और बार-बार जारी किए गए निर्देशों के बावजूद रिकॉर्ड क्यों नहीं सौंपा गया? यदि अधिकारी न्यायालय को सहयोग नहीं करते हैं, तो यह कानून की गरिमा के साथ खिलवाड़ माना जाएगा, जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिनमें अवमानना की कार्यवाही भी शामिल है।

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हाई लेवल कमेटी की भूमिका समाप्त, 31 मई तक सौंपे फ़ाइनल रिपोर्ट

हाईकोर्ट द्वारा नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता में फर्जीवाड़े की जांच के लिए गठित की गई उच्चस्तरीय समिति की भूमिका को अब समाप्त कर दिया गया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि कमेटी अपने कार्यकाल की समस्त गतिविधियों और निष्कर्षों का अंतिम प्रतिवेदन 31 मई, 2025 तक अनिवार्य रूप से कोर्ट में जमा करे।

याचिकाकर्ता द्वारा इस बाबत प्रस्तुत आवेदन में यह भी उल्लेख किया गया कि इस कमेटी ने राज्यभर के लगभग 30 ऐसे कॉलेजों को ‘अनसूटेबल’ घोषित किया, जो छात्रों को गुणवत्तापूर्ण नर्सिंग शिक्षा देने में असफल रहे थे। परंतु इन कॉलेजों के छात्रों को बिना पारदर्शी प्रक्रिया अपनाए अन्य कॉलेजों में स्थानांतरित कर दिया गया।

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नोडल अधिकारी की भूमिका पर उठे सवाल

याचिकाकर्ता ने इस स्थानांतरण प्रक्रिया पर भी सवाल खड़ा करते हुए कहा कि छात्रों को यह अवसर तक नहीं दिया गया कि वे अपनी पसंद के कॉलेज का चयन कर सकें। वहीं कमेटी के नोडल अधिकारी पर भी गंभीर आरोप लगाए गए कि उन्होंने समिति के समक्ष सभी तथ्य नहीं रखे और इस कारण निर्णय प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण रही।

हाईकोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए टिप्पणी की कि जब तक तथ्यों को समुचित रूप से नहीं रखा जाएगा, तब तक किसी भी निर्णय की पारदर्शिता और वैधता संदिग्ध बनी रहेगी।

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ट्रांसफर प्रक्रिया में पारदर्शिता जरूरी - HC 

कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण निर्देश जारी करते हुए कहा कि ‘अनसूटेबल’ घोषित किए गए नर्सिंग कॉलेजों के छात्रों को पुनः मान्यता प्राप्त ‘सूटेबल’ कॉलेजों में ट्रांसफर करते समय पूरी पारदर्शिता बरती जाए। छात्रों को अपनी शिक्षा और भविष्य के प्रति निर्णय लेने का पूरा अधिकार दिया जाए और उन्हें कॉलेज चयन करने का विकल्प उपलब्ध कराया जाए।

कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि इस पूरी प्रक्रिया से नोडल अधिकारी को दूर रखा जाए ताकि निष्पक्षता बनी रह सके और भविष्य में किसी भी छात्र को अन्याय न सहना पड़े।

मध्यप्रदेश में मेडिकल शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में निर्णायक कदम

मध्यप्रदेश में नर्सिंग शिक्षा को लेकर लगातार उठते सवालों और छात्रों के उज्जवल भविष्य को बचाने की दृष्टि से हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।

कोर्ट की सख्ती इस ओर संकेत करती है कि अब न केवल दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि राज्य में नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता दोनों को मजबूती मिले। आने वाले समय में इस आदेश के चलते कई और खुलासे और सख्त कदम देखने को मिल सकते हैं। MP News Hindi

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