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Overloaded trucks dirt Dairies Photograph: (thesootr)
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर जिले के परसवारा-जमतरा मार्ग पर चल रही भारी वाहनों की अनियमित और खतरनाक आवाजाही तथा अवैध रूप से संचालित डेयरियों और पोल्ट्री फर्मों से फैली गंदगी और अव्यवस्था को गंभीरता से लिया है। इस मामले में चीफ जस्टिस की डिविजनल बेंच में एक जनहित याचिका लगाई गई है।
यह जनहित याचिका शहर के अधिवक्ता मोहित वर्मा द्वारा दायर की गई थी, जिसमें ग्रामीणों की पीड़ा, प्रशासन की निष्क्रियता और नागरिक अधिकारों का हनन उजागर किया गया। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने जबलपुर कलेक्टर को निर्देश दिए हैं कि वे याचिकाकर्ता द्वारा पूर्व में प्रस्तुत शिकायतों पर चार सप्ताह में विचार कर निर्णय लें और एक सप्ताह के भीतर निर्णय की प्रति याचिकाकर्ता को प्रदान करें।
संकरी सड़कों पर चल रहे ओवरलोड वाहन
ग्राम परसवारा और जमतरा की सड़कें कभी ग्राम्य जीवन की सहजता और सुगमता का प्रतीक थीं, लेकिन अब वही सड़कें रोजमर्रा की त्रासदी बन गई हैं। याचिका में दर्शाया गया है कि गांव की मुख्य सड़क, जो पहले करीब आठ फीट चौड़ी थी, अब दोनों ओर गड्ढों और कटाव के कारण मात्र चार से छह फीट की रह गई है। ऐसी स्थिति में भी यहां बड़े-बड़े ट्रक, डंपर, पानी के टैंकर और भूसे से भरे वाहन दिन-रात दौड़ रहे हैं। इन संकरी गलियों में भारी वाहनों का चलना न केवल यातायात को अव्यवस्थित करता है, बल्कि ग्रामीणों विशेषकर स्कूली बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए जानलेवा बन चुका है।
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अवैध डेरियों और पोल्ट्री फर्मों की मनमानी
जनहित याचिका में कोर्ट को बताया गया है कि गांव में अनेक डेयरियां ( डेयरी बिजनेस ) और पोल्ट्री फर्में बिना किसी विधिक अनुमति और सुरक्षा मानकों के कार्यरत हैं। इनमें परसवाड़ा, गौर, बरेला जैसे कई क्षेत्रों की डेयरी शामिल हैं। इन डेयरियों के संचालन में जहां पर्यावरणीय नियमों की खुलेआम अवहेलना हो रही है, वहीं इनके द्वारा दिनभर में दूध और चारे के परिवहन हेतु भारी वाहन गलियों से गुजारकर सड़क की हालत को बदतर कर दिया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि इन वाहनों से न केवल जाम की स्थिति बनती है, बल्कि तेज रफ्तार में चलने के कारण हर दिन दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
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डेरियों से फैल रही घातक गंदगी, प्रशासन मूक दर्शक
इस याचिका में यह भी जोर देकर कहा गया है कि इन डेयरियों द्वारा गोबर, पेशाब और दूषित जल का निपटान खुले में किया जाता है। सड़क किनारे बहने वाली नालियां इन अवशिष्टों से पट जाती हैं, जिससे गांव की गलियों में बदबू और कीचड़ का अंबार लग जाता है। मच्छरों, मक्खियों और अन्य रोगकारक जीवों की भरमार गर्मी के दिनों में और बढ़ जाती है, जिससे संक्रामक रोग फैलने का खतरा मंडरा रहा है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि न तो पंचायत और न ही स्वास्थ्य विभाग ने इस पर कोई ठोस कार्यवाही की, जिससे लोगों का जीना दूभर हो गया है।
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कई बार शिकायतों के बाद भी कार्रवाई नहीं
याचिकाकर्ता अधिवक्ता मोहित वर्मा ने याचिका में बताया है कि निगम सहित प्रशासन को पहले ही दो बार 27 फरवरी 2023 और 10 जनवरी 2024 को ज्ञापन सौंप चुके हैं। इन ज्ञापनों में साफ तौर पर अवैध गतिविधियों, गंदगी और ट्रैफिक अराजकता का उल्लेख किया गया था। हालांकि, कुछ समय के लिए प्रशासन ने भारी वाहनों पर मौखिक रोक अवश्य लगाई, लेकिन वह प्रतिबंध भी कुछ ही दिनों में समाप्त हो गया और स्थिति पूर्ववत हो गई। याचिकाकर्ता ने बताया कि प्रशासन की निष्क्रियता और उदासीनता ने लोगों को निराश कर दिया, जिससे उन्हें अंततः उच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ी।
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आए दिन हो रहीं जानलेवा दुर्घटनाएं
याचिका में यह भी बताया गया है कि 29 दिसंबर 2023 को ग्राम परसवारा में भूसा लेकर आ रहा एक भारी ट्रक (MP 20 HB 1538) संकरी सड़क में असंतुलित होकर पलट गया। यह हादसा उस समय हुआ जब सड़क पर कई राहगीर गुजर रहे थे। संयोगवश कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन यह घटना ग्रामीणों की चिंताओं को और प्रबल कर गई। यह केवल एक उदाहरण है, क्योंकि गांव में ऐसी घटनाएं अब आम हो गई हैं, जिससे बच्चों को स्कूल भेजना, लोगों को बाजार जाना या बीमार व्यक्तियों को अस्पताल ले जाना भी जोखिम भरा बन गया है।
जनस्वास्थ्य और सुरक्षा सर्वोपरि: हाईकोर्ट
जबलपुर हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत की डिविजनल बेंच ने इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना को निर्देशित किया है कि वह याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत दोनों ज्ञापनों पर चार सप्ताह के भीतर विधिसम्मत निर्णय लें। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निर्णय की प्रति एक सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को सौंपी जाए, जिससे यदि उसे संतुष्टि न हो तो वह उचित विधिक मंच पर चुनौती दे सके। यह आदेश जनस्वास्थ्य, स्वच्छता और नागरिक सुरक्षा की प्राथमिकता को दर्शाता है।
गंदगी से मुक्ति और सुरक्षित जीवन की उम्मीद
गांववासियों का कहना है कि वे अब सिर्फ इतना चाहते हैं कि उनकी गलियों में फिर से बच्चों की हंसी, बुजुर्गों की सहजता और स्वच्छता का वातावरण लौट आए। डेरियों की गंदगी और ट्रकों की गड़गड़ाहट ने उन्हें चैन से जीने नहीं दिया। महिलाएं घर के बाहर साफ-सफाई नहीं कर पातीं, बच्चे स्कूल के लिए निकलते समय डरते हैं कि कहीं कोई ट्रक कुचल न दे। ग्रामीणों को उम्मीद है कि अब जब न्यायालय ने हस्तक्षेप किया है, तो प्रशासन की आंखें खुलेंगी और उन्हें इस रोजमर्रा की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।