इंदौर में पुलिस हिरासत में नाबालिग की मौत पर हाईकोर्ट का लसूड़िया टीआई, एसीपी, डीसीपी को नोटिस
इंदौर हाई कोर्ट ने 16 वर्षीय नाबालिग बालक की कथित पुलिस हिरासत में मौत के मामले में पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। यह याचिका एडवोकेट सागर प्रजापत, एडवोकेट प्रभात जैन और एडवोकेट लोकेन्द्र जोशी द्वारा जस्टिस सुबोध अभ्यंकर के समक्ष दायर की गई।
इंदौर का सबसे विवादित थाना लसूड़िया का एक और गंभीर मामला सामने आया है। यहां पर 16 वर्षीय नाबालिग की पुलिस हिरासत में मौत के मामले में हाईकोर्ट इंदौर ने संज्ञान लेते हुए 8 मई 2025 को टीआई, एसीपी और डीसीपी सहित पुलिस विभाग के कई अफसरों को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में जवाब मांगा है। वहीं, पीड़ित पक्ष द्वारा इस मामले की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग की गई है। लसूड़िया थाना हमेशा से ही विवादों में रहता है। गौरतलब है कि पिछले दिनों इसके टीआई तारेश सोनी द्वारा कोर्ट में ड्रिंक एंड ड्राइव मामले में उलझ चुके हैं। जिसके कारण उनपर कार्रवाई भी हुई थी और बाद में उन्हें हाईकोर्ट से बमुश्किल जमानत मिल पाई थी। इंदौर का सबसे मलाईदार थाना अब सबसे विवादित थाना बन चुका है। इसके लिए लंबी पहुंच लगाकर टीआई बनते हैं। यहां तैनात टीआई की कार्यशैली के कारण कई बार डीसीपी तक को परेशानी झेलनी पड़ती है। जहां एक ओर टीआई सोनी के मामले में कोर्ट ने डीसीपी तक को फटकार लगाई थी तो इस नाबालिग की हिरासत में मौत पर भी डीसीपी को नोटिस पहुंचा है।
पुलिस को नोटिस, सीबीआई जांच की मांग
इंदौर हाई कोर्ट ने 16 वर्षीय नाबालिग बालक की कथित पुलिस हिरासत में मौत के मामले में पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। यह याचिका एडवोकेट सागर प्रजापत, एडवोकेट प्रभात जैन और एडवोकेट लोकेन्द्र जोशी द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत जस्टिस सुबोध अभ्यंकर के समक्ष दायर की गई। जिसमें आरोप लगाया गया है कि थाना लसूड़िया की पुलिस ने नाबालिग को अवैध रूप से हिरासत में लिया और बाद में उसकी मौत हो गई व उसका शव रेलवे लाइन के पास मिला। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के शरीर पर कई गंभीर चोटों की पुष्टि हुई है। इसे उन्होंने गंभीर माना है।
एडवोकेट सागर ने बताया कि घटना 27 अप्रैल 2023 की है। जिसमें एक नाबालिग लड़की की शिकायत पर 16 वर्षीय नाबालिग लड़के को लसूड़िया पुलिस ने पकड़ा था। उस समय तत्कालीन टीआई संतोष दूधी थे और मामला कांस्टेबल मुनीष पांडे व दो अन्य पुलिस जवान देख रहे थे। इसको लेकर कांस्टेबल मुनीष ने परिजनों से डेढ़ लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी, जिसे परिजन नहीं दे पाए। इस मामले में थाने के सीसीटीवी फुटेज में रात को लगभग 8 बजे लड़का लसूड़िया थाने से निकला और फिर उसके पीछे कांस्टेबल मुनीष पांडे निकलता दिख रहा है। उसके बाद रात को 10 बजे परिजनों को थाने से फोन करके सूचना दी गई कि बेटे की मौत हो गई है और उसका शव रेलवे ट्रैक के पास मिला है। इस मामले में परिजनों ने थाने के बाहर प्रदर्शन भी किया था। तब टीआई संतोष दूधी ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए 80 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया था।
जब नाबालिग पुलिस हिरासत में था तो रेलवे ट्रैक पर कैसे पहुंचा
उन्होंने बताया कि घटना की मजिस्ट्रियल जांच में पुलिस को इस मामले में तो दोषी माना गया है कि नाबालिग पुलिस कस्टडी से निकलकर चला गया, लेकिन उसके शरीर पर मिले चोट के निशान को लेकर कुछ नहीं कहा गया है। वहीं, परिजनों का आरोप है कि उनके बेटे को पुलिस ने हिरासत में लेकर मार–मारकर अधमरा कर दिया था। हालांकि पुलिस इस बात का जवाब नहीं दे पाई कि नाबालिग थाने से निकलकर रेलवे ट्रैक तक कैसे पहुंच गया।
एडवोकेट सागर प्रजापत ने अपनी दलीलों में कहा कि पुलिस की कहानी संदेहास्पद है। क्योंकि पूरे शरीर पर चोटों के निशान स्पष्ट रूप से दिखाते हैं। जो कि यह दर्शाता है कि यह स्वाभाविक मृत्यु नहीं थी। इसके विपरीत न्यायिक मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉक्टर के अनुसार मृतक के शरीर पर मारपीट के कोई निशान नहीं थे। यह निष्कर्ष पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मेल नहीं खाता, जिससे मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर भी सवाल उठते हैं। जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नाबालिग के शरीर में किसी भारी वस्तु से मारने के शरीर के भीतर और बाहरी हिस्से में लगभग 150 निशान मिलने का उल्लेख है। साथ ही नाबालिग रेलवे ट्रैक के पास जिस परिस्थिति में मिला वह भी संदेहास्पद है।
हाई कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट तलब की है और संबंधित पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने स्वतंत्र एजेंसी, विशेष रूप से केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से जांच कराने की मांग की है और पुलिस अफसरों के खिलाफ धारा 302 में एफआईआर की जाए। ताकि न्याय सुनिश्चित हो सके। यह मामला एक नाबालिग की मृत्यु से जुड़ा है, जिस पर पुलिस कस्टडी में अत्याचार और कर्तव्य के घोर उल्लंघन के गंभीर आरोप लगे हैं। पीड़ित परिवार ने निष्पक्ष जांच, दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई और मुआवजे की मांग की है।