कंसल्टेंसी कंपनियों पर मेहरबान MPBDC, एक ही फर्म को दिया 62 डिजाइन और डीपीआर का काम, सीमा से अधिक का किया भुगतान

मध्यप्रदेश में एक ही कंसल्टेंसी फर्म को 62 से अधिक डिजाइन का काम और 400% अतिरिक्त राशि मिलने का मामला सामने आया है। जानें डिजाइन और DPR में हुई गड़बड़ी के बारे में...

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Amresh Kushwaha
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मध्यप्रदेश में बिल्डिंग और ब्रिज निर्माण में एक अनोखा मामला सामने आया है। यहां एक ही फर्म को 62 से ज्यादा डिजाइन बनाने का काम दिए गए हैं। यह मामला मध्यप्रदेश बिल्डिंग डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (MPBDC) से जुड़ा हुआ है। यहां खास तौर पर एक ही फर्म को डिजाइन और डीपीआर का काम सौंपा गया। दिलचस्प बात यह है कि अनुबंध के मुताबिक 100 प्रतिशत अतिरिक्त काम दिया जा सकता था, लेकिन वास्तविकता (हकीकत) में उसे 260 प्रतिशत तक अतिरिक्त काम दे दिया गया। इसी के चलते लगभग 400 फीसदी अतिरिक्त कार्य का भुगतान भी कर दिया गया। इस फैसले के बाद यह सवाल उठता है - क्या यह काम अनुशासन और पारदर्शिता के हिसाब से किया जा रहा है या फिर इसमें कुछ गड़बड़ी छिपी है?

फर्म को 400 फीसदी अतिरिक्त का भुगतान

एमपीबीडीसी (MPBDC) ने एक विशेष कंसल्टेंसी फर्म शैलेंद्र शर्मा को एक के बाद एक डिजाइन और डीपीआर बनाने के लिए नियुक्त किया है। इस फर्म ने मध्यप्रदेश के भोपाल और रीवा क्षेत्रों में कई अहम सरकारी विभागों के लिए डिजाइन तैयार किए हैं। इन डिजाइनों की कुल लागत 458 करोड़ रुपए थी, लेकिन इनकी एवज में शैलेंद्र शर्मा को 2 करोड़ 57 लाख रुपए का भुगतान किया गया, जबकि अनुबंध में 54 लाख रुपए का ही भुगतान किया जाना था। इसका मतलब है कि लगभग 400 फीसदी अतिरिक्त भुगतान हुआ।

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क्या है एमपीबीडीसी का सफाई?

एमपीबीडीसी के प्रमुख अभियंता अनिल श्रीवास्तव ने इस मामले पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि ये सभी काम अनुबंध की शर्तों के अनुसार दिए गए हैं। अनुबंध में यह साफ था कि कंसल्टेंट को तय सीमा के मुताबिक अतिरिक्त काम दिया जा सकता था। इसीलिए, शैलेंद्र शर्मा को भोपाल और रीवा दोनों क्षेत्रों में काम सौंपा गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब इतनी अतिरिक्त राशि का भुगतान किया गया तो कहीं कोई गड़बड़ी तो नहीं हुई?

MPBDC की खबर पर एक नजर...

  • मध्यप्रदेश बिल्डिंग डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (MPBDC) ने शैलेंद्र शर्मा को 62 से अधिक डिजाइन बनाने का काम सौंपा, जिनकी कुल लागत 458 करोड़ रुपए थी।

  • शैलेंद्र शर्मा को 2 करोड़ 57 लाख रुपए का भुगतान किया गया, जबकि अनुबंध में केवल 54 लाख रुपए का भुगतान तय था, यानी 400 फीसदी अधिक भुगतान किया गया।

  • एमपीबीडीसी ने कहा कि अतिरिक्त काम अनुबंध की शर्तों के तहत दिया गया था और यह निर्णय पूरी तरह से नियमों के अनुसार लिया गया था।

  • भोपाल और इंदौर में कुछ डिजाइन में गड़बड़ी की खबरें आईं, जिनमें भ्रष्टाचार और कमीशन के लिए डिजाइन में बदलाव के आरोप लगाए गए।

  • शैलेंद्र शर्मा ने आरोपों को खारिज किया और बताया कि 62 डिजाइनों में से कई पहले ही रद्द किए जा चुके थे।

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इंदौर और भोपाल संभाग की डिजाइन में क्यों आई गड़बड़ी?

भोपाल और इंदौर के डिजाइन में गड़बड़ी की खबरें सामने आई हैं। इनमें दावा किया गया कि कुछ भवनों और ब्रिजों की डिजाइन में भ्रष्टाचार के तत्व शामिल थे। पीडब्ल्यूडी को डिजाइन दिखाने के बाद जब जांच की गई तो इसमें शैलेंद्र प्रजापति का नाम भी सामने आया। आरोप है कि कमीशन के लिए डिजाइन में बदलाव किए गए थे। इससे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की आशंका है।

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क्या कंसल्टेंट ने किया कोई गलत काम?

कंसल्टेंट शैलेंद्र शर्मा ने इस पूरे मामले पर सफाई दी है और कहा कि 62 डिजाइन (DPR) के काम का जो दावा किया गया, वह सही नहीं है। उन्होंने बताया कि इनमें से 8-9 डिजाइन तो पहले ही कैंसिल हो चुके हैं।

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