मध्यप्रदेश के नीमच जिले के आंतरी बुजुर्ग गांव में स्थित मां आंतरीमाता का मंदिर एक अनोखी परंपरा का केंद्र बन चुका है। मान्यता है कि, यह मंदिर 700 साल पुराना है और यहां हर साल भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर अपनी जीभ अर्पित करते हैं। यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है और अब तक हजारों भक्त अपनी जीभ चढ़ा चुके हैं।
कहा जाता है कि, भक्त नवरात्रि के पहले दिन यहां अपनी जीभ काटकर मां को चढ़ाते हैं। इसी अद्भुत परंपरा के कारण यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खास आस्था का केंद्र बन चुका है।
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मंदिर की स्थापना
मान्यता है कि, मां आंतरीमाता का मंदिर 1329 में राव सेवाजी खेमाजी द्वारा स्थापित किया गया था। यह मंदिर चंद्रावत राजपूतों की कुलदेवी से जुड़ा हुआ है और यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं। मंदिर के पुजारी, अवधेश सिंह राठौर, बताते हैं कि भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर अपनी जीभ चढ़ाते हैं।
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चैत्र नवरात्रि में भक्तों ने अर्पित की जीभ
बता दें कि, इस बार के चैत्र नवरात्रि में भी तीन भक्तों ने अपनी जीभ अर्पित की। इनमें नीमच के दीपक, एक महिला और रतलाम जिले के सेमलिया कालूखेड़ा गांव की एक महिला शामिल हैं। ये भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर मंदिर में उपस्थित हैं और नौ दिन तक वहां रहते हैं।
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एक अनोखी मान्यता
यह मंदिर और उसकी परंपरा मां आंतरीमाता की कृपा से जुड़ी हुई है। भक्तों का मानना है कि जो भी यहां मन्नत लेकर आता है, उसकी मुराद पूरी होती है। मंदिर में दो पवित्र पदचिह्न भी हैं, जो माता के वाहन के बताए जाते हैं, जिनमें एक पदचिह्न मंदिर के अंदर और दूसरा हनुमान घाट की शिला पर अंकित है।
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माता हर किसी की मनोकामना पूरी करती हैं
मान्यता है कि, मां आंतरीमाता के वाहन के दो पवित्र पदचिह्न इस मंदिर में स्थित हैं। एक पदचिह्न मंदिर के अंदर है, जबकि दूसरा हनुमान घाट की शिला पर दक्षिण दिशा में अंकित है। यहां आने वाले भक्तों का विश्वास है कि माता उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। शारदीय और चैत्र नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इन नौ दिनों के अनुष्ठान में भक्त माता के दरबार में रहते हैं और अपनी भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। मां आंतरीमाता के इस मंदिर की प्रसिद्धि केवल मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त यहां आते हैं।