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मध्य प्रदेश में साल 2019 से चल रहे ओबीसी आरक्षण विवाद को लेकर कई सारे विवाद चल रहे हैं। अब सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद इसमें अंतिम फैसले की घड़ी आ चुकी है। सितंबर माह में इसका हल होने की उम्मीद है। इसी के चलते सभी राजनीतिक दल भी वोट की राजनीति में साथ आ गए हैं। साथ ही, मिलकर ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिलाने की बात कह रहे हैं।
अब इस मामले में एक नई राजनीति ने करवट ली है। अब सामान्य वर्ग ने भी लड़ाई के लिए कमर कसी है। इसमें विविध समाजों को साथ लिया जा रहा है। साथ ही बड़े अधिवक्ताओं को सुप्रीम कोर्ट में उतारने की तैयारी है, जिससे किसी भी हाल में इंदिरा साहनी केस में लगी 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को पार करने और 27 फीसदी OBC आरक्षण का फैसला नहीं हो।
MP की राजनीति अब सामान्य वर्ग V/S ओबीसी की ओर
इस मामले में युवा उम्मीदवार पहले सपाक्स के पास भी गए लेकिन बताया जा रहा है कि कर्मचारी पदोन्नति में क्योंकि सामान्य और ओबीसी साथ हैं, तो उन्होंने इसमें साथ आने से इंकार कर दिया। इसके बाद करण सेना, परशुराम सेना जैसे संगठनों से बात हुई और वह इसमें साथ आने का आश्वासन दे रहे हैं। उधर युवाओं ने तो रीवा में डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला के विरोध की भी बात कह दी है। साथ ही अन्य सामान्य वर्ग के मंत्री, विधायकों को लेकर भी मोर्चा खोलने की तैयारी शुरू कर दी है।
सौ फीसदी पद ही आरक्षित कर दीजिए फिर
विविध दलों की बैठक के बाद यह सामान्य वर्ग ने भी तय किया है कि इस लड़ाई को लड़ना होगा और वह किसी भी हाल में यह 13 फीसदी होल्ड पद ओबीसी के पक्ष में नहीं जाने देना चाहते हैं। इसके लिए अब सोशल मीडिया पर अभियान भी शुरू हो गया है। इसमें तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को यहां तक अपील करते हुए कहा गया है कि - सभी 100 फीसदी ही फिर ओबीसी, एसटी, एसी वर्ग को दे दीजिए। हमें पूरी तरह से सरकारी भर्तियों से प्रतिबंधित ही कर दिया जाए।
50 फीसदी सामान्य के नहीं अनारक्षित के पद हैं
युवाओं का कहना है कि यह 50 फीसदी पद अनारक्षित श्रेणी के हैं, न कि सामान्य वर्ग के। इस 50 फीसदी में से कई पद मेरिट के आधार पर विभिन्न आरक्षित श्रेणियों के लोग ले जाते हैं। ऐसे में इसमें से 50 फीसदी में मुश्किल से आधे पद ही सामान्य वर्ग के लिए बचते हैं।
अनारक्षित यानी UR के पद जा रहे कैटेगरी मेरिट होल्डर को
राज्य सेवा परीक्षा 2025 के प्री के रिजल्ट की बात करें तो इसमें 1140 उम्मीदवार अनारक्षित में चयनित हुए। आयोग द्वारा हाईकोर्ट में पेश किए गए दस्तावेज के आधार पर इसमें 42 पद एससी के, 5 एसटी के, 381 ओबीसी के और ईडब्ल्यूएस के 262 चयनित हुए। कुल 1140 में से 690 आरक्षित श्रेणियों के मेरिट की वजह से अनारक्षित श्रेणी में पहुंचे हैं, यानी 60 फीसदी श्रेणियों के पास गए। यानि सामान्य वर्ग को 40 फीसदी की जगह मिली।
साल 2020 की राज्य सेवा परीक्षा में डिप्टी कलेक्टर के अनारक्षित वर्ग के 8 पद थे, इसमें 3 महिलाओं के और 5 पुरुषों के थे। इसमें दो सीट (एक ओबीसी और एक ईडब्ल्यूएस) अन्य श्रेणियों ने मेरिट पर हासिल की। यानी सामान्य वर्ग को 8 में 6 पद ही मिले।
2020 साल 2021 की राज्य सेवा परीक्षा के अंतिम रिजल्ट में अनारक्षित में डिप्टी कलेक्टर के 8 ही पद थे, इसमें से एक-दो नहीं बल्कि पांच सीट अन्य श्रेणियों वालों के पास गई। यानी सामान्य वर्ग को 8 में से केवल 3 सीट मिली।
2021 साल 2022 की राज्य सेवा परीक्षा में भी डिप्टी कलेक्टर के अनारक्षित में 8 पद थे, इसमें से 4 पद अन्य श्रेणियों वालों को मेरिट पर मिली। यानी 8 में से 4 पद ही सामान्य वर्ग पहुंच सके।
2022 पुलिस कांस्टेबल की ईएसबी द्वारा 2023 की ली गई परीक्षा में, इसमें टॉप टेन में केवल 1 सामान्य वर्ग का उम्मीदवार था, इसमें 8 ओबीसी के और एक ईडब्ल्यूएस के पास गया।
2023 असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा 2022 में भूगोल विषय में अनारक्षित श्रेणी में 14 पद थे, इसमें से 6 पर ही सामान्य वर्ग का उम्मीदवार जगह बना सका।
असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा 2022
कमलनाथ सरकार ने यह भी नियम बनाया था
कमलनाथ सरकार ने जब साल 2019 में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का नियम बनाया था तो साथ ही परीक्षा नियम 2015 में भी एक बड़ा संशोधन किया था। इसके तहत आरक्षण बढ़ाने के साथ ही हर श्रेणी का मेरिट के आधार पर मूवमेंट बंद कर दिया गया, यानी एसटी, एससी, ओबीसी या ईडब्ल्यूएस श्रेणी वाला उसी श्रेणी में ही रहेगा और वह अनारक्षित में नहीं जाएगा।
यह आदेश लेकिन मेरिट होल्डर उम्मीदवारों को रोकने के सुप्रीम कोर्ट के विविध आदेशों के खिलाफ था। इसे हाईकोर्ट जबलपुर ने रद्द घोषित कर दिया। इसके बाद फिर पुरानी स्थिति बहाल कर दी गई, यानी मेरिट के आधार पर श्रेणी वाला उम्मीदवार अनारक्षित में जगह बनाएगा।
परीक्षा नियम 2015 को लेकर जारी है याचिका
उधर साल 2000 में मध्य प्रदेश सरकार के सर्कुलर हो या केंद्रीय कार्मिक (डीओपीटी) विभाग के नियम। इसी तहत परीक्षा नियम 2015 है, जिसमें एक नियम यह भी है कि यदि किसी ने अपने आरक्षित वर्ग में मिली छूट का लाभ लिया है तो वह अंतिम चयन परिणाम में भी उसी श्रेणी में रहेगा भले ही वह मेरिट के आधार पर ऊपर आ सकता हो। जैसे चर्चित टीना डाबी केस, उन्हें प्री में कटऑफ में आरक्षित वर्ग के कटऑफ की छूट ली थी, इसके चलते वह प्री पास हो सकी और बाद में अंतिम मेरिट में वह देश भर में टॉपर होने के बाद भी आरक्षित वर्ग में ही रही।
मुख्य छूट में उम्र सीमा छूट और प्री कटऑफ छूट ही आती है, फीस जैसी छूट शामिल नहीं की जाती है। इसे लेकर याचिका हाईकोर्ट जबलपुर में लगी है, जिसमें राज्य सेवा परीक्षा 2025 के विज्ञापन में परीक्षा नियम 2015 को चुनौती दी गई है और मांग की गई है कि यह आरक्षण के मूल सिद्धांत के खिलाफ है और भले ही उसने अन्य छूट ली हो, लेकिन श्रेणी वाले उम्मीदवार को अंकों के आधार मेरिट में अनारक्षित में जाने से नहीं रोका जा सकता है। इस मामले में अभी सुनवाई जारी है और 4 सितंबर की तारीख लगी हुई है।
ओबीसी वर्ग आबादी से मांग रहा अधिकार
उधर सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी वर्ग आबादी के आधार पर अपने हक की मांग कर रहा है। ओबीसी वर्ग का कहना है कि मध्य प्रदेश में 51 फीसदी आबादी ओबीसी की है और इनका सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व 13.66 फीसदी मात्र है।
ऐसे में इस वर्ग को सामाजिक, आर्थिक पिछड़ेपन की वजह से आगे आने का मौका मिलना चाहिए और यह 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण बनता है। इसलिए इसे लागू करते हुए 13 फीसदी होल्ड पद हमें दिए जाएं।
इन वर्ग का साफ कहना है कि वैसे ही इंदिरा साहनी केस की 50 फीसदी आरक्षण की दीवार ईडब्ल्यूएस को आरक्षण देकर तोड़ी जा चुकी है। छत्तीसगढ़ में भी अधिक आरक्षण पर भर्ती की अंतरिम मंजूरी सुप्रीम कोर्ट दे चुका है, फिर मध्य प्रदेश में इसे लागू करने में कोई समस्या नहीं है। क्योंकि इंदिरा साहनी केस में भी असाधारण स्थिति में और आंकड़ों के आधार पर इसे पार किया जा सकता है और मध्य प्रदेश में यह असाधारण स्थिति मौजूद है, जिससे ओबीसी को आरक्षण दिया जा सके।
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ओबीसी आरक्षण का मामला | ओबीसी आरक्षण का मुद्दा