प्रधानमंत्री कहते हैं... मध्यप्रदेश अजब है, सबसे गजब है। वाकई अजब और गजब दास्तां है इस राज्य की। अब देखिए न... इस साल भी मार्च से अगस्त तक हजारों कर्मचारी रिटायर हो गए, लेकिन उनके हिस्से में प्रमोशन नहीं आया। स्थिति यह है कि अब तक सूबे में करीब एक लाख बीस हजार से ज्यादा कर्मचारी प्रमोशन की आस में रिटायर हो गए हैं। इसके उलट आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के प्रमोशन जारी हैं। उन्हें समय-समय पर पदोन्नति मिल रही है।
मध्य प्रदेश, देश का पहला राज्य है, जहां आठ वर्ष से कर्मचारियों के प्रमोशन पर पाबंदी लगी हुई है। प्रमोशन न करने के पीछे सरकार अदालत के फैसले का हवाला देती है, लेकिन कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकार अदालत में पूरी ताकत के साथ अपनी बात नहीं रखती है, लिहाजा...कोई हल नहीं निकल पा रहा है। यहां भी कहानी प्रमोशन में आरक्षण पर ही अटकी हुई है।
अब यदि दूसरे राज्यों में देखें तो वहां स्थिति मध्यप्रदेश से उलट है। महाराष्ट्र, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़ और बिहार में प्रमोशन किए जा रहे हैं, जबकि इन राज्यों में भी प्रमोशन का मामला अदालत में चल रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है केस
प्रमोशन और आरक्षण का मामला वर्ष 2002 में दिग्विजय सिंह की सरकार में शुरू हुआ था। तब कांग्रेस सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण का नियम जोड़ा था। इस अर्थ यह था कि आरक्षित वर्ग को नौकरी के वक्त आरक्षण का फायदा तो मिलता ही रहा था, सरकार के फैसले के बाद उन्हें प्रमोशन में भी आरक्षण मिलने लगा। बाद में इसका तगड़ा विरोध हुआ।
यहां से मामला अदालत की दहलीज पर पहुंचा। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने सरकार के नियम को गलत माना और 30 अप्रैल 2016 को पदोन्नति नियम खारिज कर दिए। साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिए कि वह नए नियम बनाए। हाईकोर्ट के इस फैसले को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसमें भी शीर्ष अदालत ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया, बस तब से यह मामला कोर्ट में चल रहा है।
सरकार ने ऐसे खोजे रास्ते, नतीजा जीरो का जीरो
- चुनाव के वक्त कर्मचारी वर्ग नाराज न हो जाए, इसलिए 2018 में सरकार ने कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी।
- राज्य सरकार ने 9 दिसंबर 2020 को प्रशासन अकादमी के तत्कालीन डीजी की अध्यक्षता में समिति बनाई। इससे 15 जनवरी 2021 तक अनुशंसा मांगी। समिति ने देर से ही सही पर, अपनी अनुशंसा सरकार को सौंप दी।
13 सितंबर 2021 को तत्कालीन गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल उपसमिति गठित हुई। समिति की बैठकें हुईं। रास्ता खोजने के लिए कर्मचारी संगठनों से सुझाव मांगे गए, पर फिर मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
हाईपॉवर कमेटी काम नहीं आई
आपको बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार में प्रमोशन पर फिर बात हुई थी। तब तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने कहा था कि जब तक राज्य के कर्मचरियों के प्रमोशन का रास्ता न निकले, तब तक नौकरशाहों के प्रमोशन भी नहीं होने चाहिए। तब एक हाईपॉवर कमेटी भी बनाई गई थी, लेकिन बाद में इसका हश्र भी पहले की तरह की हुआ।
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दोनों पक्षों को हो रहा नुकसान
कोर्ट कह चुका...प्रमोशन कर्मचारी अधिकार है...
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हाईकोर्ट अलग-अलग फैसलों में कह चुका है कि कर्मचारियों के प्रमोशन न रोके जाएं, लेकिन इसका सकारात्मक असर नजर नहीं आता।
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ग्वालियर हाईकोर्ट ने 5 दिसंबर 2022 को वेटरनरी डॉक्टरों के मामले में पदोन्नति के निर्देश दिए थे। सरकार सिंगल बेंच, डबल बेंच और फिर रिव्यू में गई, लेकिन फैसला डॉक्टरों के पक्ष में आया।
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21 मार्च 2024 को हाईकोर्ट जबलपुर ने नगरीय निकायों में काम करने वाले असिस्टेंट इंजीनियर्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए दो महीने में प्रमोशन का आदेश दिया, लेकिन यह केस भी उलझा है।
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