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कातिल बेटा - यह शब्द अब मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में एक कड़वा सच बन चुका है। श्योपुर में 32 लाख रुपए की एफडी (फिक्स्ड डिपॉजिट) के लिए अपनी मां की हत्या करने वाले बेटे को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है। यह घटना ना केवल अपराध की हदों को पार करती हैं, बल्कि समाज और धर्म के नजरिए से भी एक कड़ा संदेश देती है।
श्योपुर की भयावह घटना
8 मई 2024 को दीपक पचौरी ने अपनी मां ऊषा देवी के गायब होने की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई। इसके बाद, जब पुलिस ने कड़ी पूछताछ की, तो दीपक ने अपराध को स्वीकार कर लिया। उसने बताया कि 6 मई 2024 को ऊषा देवी, जो कि तुलसी पर जल चढ़ाने के लिए छत पर जा रही थीं, उन्हें उसने जानबूझकर सीढ़ियों से धक्का दे दिया। इसके बाद, उसने रॉड से उनकी सिर पर तीन-चार बार हमला किया और फिर साड़ी से उनका गला घोंटकर हत्या कर दी। दीपक ने शव को घर के बाथरूम में दफनाकर सीमेंट से चुन दिया।
यह कृत्य न केवल एक बेटे के जरिए अपनी मां के खिलाफ किया गया घिनौना अपराध था, बल्कि यह परिवार की आस्थाओं और रिश्तों के प्रति भी गहरी असंवेदनशीलता को दर्शाता है। दीपक ने इस हत्या को अपनी मां के 32 लाख रुपए की एफडी के लिए अंजाम दिया था, जिसमें वह नॉमिनी था।
मां के हत्यारे को कोर्ट ने सुनाई फांसी की सजा मामले पर एक नजर...
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अनाथालय से गोद लिया था दीपक को
उषा देवी के भाई अशोक शर्मा के अनुसार, उषा और उनके पति भुवनेन्द्र पचौरी की कोई संतान नहीं थी। भुवनेन्द्र एक वनकर्मी थे। इस दंपती ने ग्वालियर स्थित एक अनाथालय से तीन वर्षीय एक लड़के को गोद लिया और उसका नाम दीपक रखा। उन्होंने उसे पूरी देखभाल और शिक्षा दी। हालांकि, दीपक की मानसिकता समय के साथ बदल गई, और उसने अपनी मां की संपत्ति पर नजरें गड़ाई। पिता की मृत्यु के बाद दीपक को मिले 16 लाख 85 हजार रुपए का निवेश उसने शेयर बाजार में कर दिया, लेकिन वह पैसे को गंवा बैठा। फिर, मां के खाते में जमा 32 लाख रुपए के लालच में उनकी हत्या की साजिश रची और उसे सफलतापूर्वक अंजाम दे डाला।
अदालत का फैसला और धर्मग्रंथों में मां का स्थान
अपर सत्र न्यायाधीश एलडी सोलंकी की अदालत ने दीपक पचौरी को फांसी की सजा सुनाई। कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात का उल्लेख किया कि मां को श्रद्धा और सम्मान देना सभी धर्मों में अनिवार्य है। रामचरितमानस, गुरुग्रंथ साहिब, कुरान और बाइबिल में मां के महत्व को स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया है।
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रामचरितमानस में मां का महत्व
रामचरितमानस में मां के महत्व को अत्यधिक ऊंचा स्थान दिया गया है। इसमें भगवान श्रीराम के जीवन से प्रेरित होकर यह कहा गया है कि केवल वही बेटा सौभाग्यशाली है जो अपने माता-पिता के वचनों के प्रति अनुराग रखता है। रामचरितमानस के इस श्लोक में कहा गया है-
सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी, जो पितु मातु वचन अनुरागी।
अर्थात वही बेटा सौभाग्यशाली है जो अपने माता-पिता के आदेशों को सम्मान देता है और उन्हें प्रसन्न करता है। इस श्लोक का अर्थ है कि माता-पिता के प्रति श्रद्धा और सम्मान जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है।
गुरुग्रंथ साहिब में मां का महत्त्व
गुरुग्रंथ साहिब में भी मां के प्रति आदर और श्रद्धा का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। यह कहा गया है कि जो व्यक्ति माता-पिता की सेवा करता है, वही सच्चा वीर कहलाता है और वही अपनी कुल को संरक्षित करता है।
मात पिता की सेवा करही, अपना गति भिती जाणी।
अर्थात जो माता-पिता की सेवा करता है, वही समाज में सम्मान प्राप्त करता है और कुल का रक्षक होता है। यह शिक्षा भी यह बताती है कि माता-पिता के साथ सही व्यवहार और उनकी सेवा जीवन का सर्वोत्तम कर्म है।
कुरान में मां की महिमा
कुरान में भी मां के महत्व को रेखांकित किया गया है। सूरा अल-इसरा, आयत 23 में कहा गया है-
तुम्हारे रब ने हुक्म दिया है कि उसके सिवा किसी की भी इबादत न करो और अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो।
इस आयत से स्पष्ट होता है कि कुरान में भी माता-पिता का आदर करना अनिवार्य है और यह हर मुसलमान पर जरूरी है कि वह अपने माता-पिता से अच्छे तरीके से पेश आए।
बाइबिल में मां का सम्मान
बाइबिल में भी मां-पिता के प्रति अपमान को एक गंभीर अपराध माना गया है। बाइबिल के अनुसार-
माता-पिता का अपमान प्राणदंड योग्य अपराध है।
इसका मतलब यह है कि जो व्यक्ति अपने माता-पिता के खिलाफ जाता है या उन्हें अपमानित करता है, वह एक अत्यंत गंभीर पाप करता है, जिसका परिणाम मृत्यु हो सकता है।
श्योपुर की घटना से मिला कड़ा संदेश
यह घटना हमारे समाज में मौजूद रिश्तों और धर्म के महत्व को पुनः सिद्ध करती है। कोर्ट का फैसला और धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए यह कहा जा सकता है कि मां का स्थान हर धर्म में सर्वोच्च है और उसे किसी भी स्थिति में नीचा नहीं किया जा सकता।
इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश मिलता है कि चाहे किसी भी कारण से कोई भी हत्या की जाए, मां की हत्या को कभी भी माफ नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने भी इस मामले में फांसी की सजा देते हुए यह सिद्ध कर दिया कि अपराधी को उसकी करतूत का परिणाम भुगतना पड़ेगा।
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