कैसे हुई काल के काल बाबा महाकाल की उत्पत्ति? पढ़ें महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की अद्भुत कहानी

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो उज्जैन में स्थित है, भगवान शिव की महिमा और उनके अवतारों का प्रतीक है। यह पवित्र स्थल न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसके खगोलीय और ऐतिहासिक महत्व ने इसे विश्वभर में प्रसिद्ध किया है।

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Kaushiki
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भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और खगोलीय महत्व का एक संगम है।

यह पवित्र स्थल मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है, जिसे धार्मिक नगरी के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां भव्य महाकाल लोक कॉरिडोर भी है जो भगवान शिव की महिमा, उनके अवतारों और उनसे जुड़ी जरूरी बातों को समर्पित है।

मान्यता है कि, जिन लोगों को अकाल मृत्यु का भय रहता है, उन्हें महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन जरूर करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि महाकाल की कृपा से अकाल मृत्यु भी टल जाती है।

जिस पर महाकाल की कृपा हो जाए, उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। आइए, इस विशेष अवसर पर हम जानते हैं कि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई, इसकी पौराणिक कथा और उज्जैन नगरी से जुड़े कुछ ऐसे वैज्ञानिक और ऐतिहासिक तथ्य जो इसे और भी अनमोल बनाते हैं।

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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

शिव पुराण में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की एक अद्भुत कथा का वर्णन मिलता है। यह कथा बताती है कि कैसे भगवान शिव ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए उज्जयिनी में स्वयं को प्रकट किया।

राजा चंद्रसेन की शिव भक्ति

कथा के मुताबिक, प्राचीन काल में उज्जयिनी में चंद्रसेन नाम का एक राजा शासन करता था। वह भगवान शिव का एक महान भक्त था। उसकी दोस्ती भगवान शिव के गणों में से एक मणिभद्र से थी।

एक दिन, मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक अमूल्य चिंतामणि भेंट की। यह मणि इतनी शक्तिशाली थी कि इसे धारण करने से राजा चंद्रसेन का प्रभुत्व और यश दूर-दूर तक फैलने लगा। उसकी कीर्ति चारों दिशाओं में फैल गई, जिससे दूसरे राज्यों के राजाओं में उस मणि को पाने की तीव्र लालसा जाग उठी।

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राजा पर हमला और महाकाल की शरण

मणि की लालसा में कुछ राजाओं ने मिलकर राजा चंद्रसेन पर हमला कर दिया। इस संकट की घड़ी में, राजा चंद्रसेन अपनी प्रजा और राज्य की रक्षा के लिए भागकर महाकाल की शरण में आ गया।

उसने भगवान शिव की घोर तपस्या शुरू कर दी, अपनी सारी चिंताओं को त्याग कर पूरी तरह से शिव भक्ति में लीन हो गया।

बालक की निष्ठा और चमत्कार

कुछ समय बाद, उसी स्थान पर एक विधवा गोपी अपने 5 साल के बेटे के साथ पहुंची। उस छोटे बालक ने जब राजा चंद्रसेन को शिव भक्ति में लीन देखा, तो वह भी उनसे प्रेरित हुआ।

उसने वहीं एक पत्थर का शिवलिंग बनाया और पूरी श्रद्धा के साथ उसकी पूजा करने लगा। बालक शिव आराधना में इतना लीन हो गया कि उसे अपनी मां की आवाज भी सुनाई नहीं दे रही थी।

उसकी मां उसे भोजन के लिए बार-बार बुला रही थी, लेकिन बालक अपनी भक्ति में डूबा रहा। गुस्से में आकर मां उसके पास गई और उसे डांटने लगी, यहां तक कि उसने बालक द्वारा अर्पित की गई शिव पूजा की सामग्री भी फेंक दी। बालक अपनी मां के इस व्यवहार से बहुत दुखी हुआ और उसके मन को चोट पहुंची।

ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य

तभी वहां एक अद्भुत चमत्कार हुआ। बालक की निष्ठा और भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव की कृपा से वहां तुरंत एक भव्य और सुंदर मंदिर निर्मित हो गया।

इस मंदिर के भीतर एक दिव्य शिवलिंग भी प्रकट हुआ और उस पर बालक की अर्पित की गई सारी पूजा सामग्री भी वैसी की वैसी रखी थी। इस तरह, उस स्थान पर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति हुई। इस घटना से वह बालक और उसकी मां दोनों ही आश्चर्यचकित रह गए।

महाकाल का उज्जैन में वास

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जब राजा चंद्रसेन को इस चमत्कार की सूचना मिली तो वह भी तुरंत महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने पहुंच गया। जिन राजाओं ने मणि के लिए चंद्रसेन पर हमला किया था, वे भी इस दैवीय घटना को देखकर युद्ध का मार्ग छोड़कर महाकाल की शरण में आ गए।

इस घटना के बाद से ही भगवान महाकाल उज्जयिनी में वास करते हैं और उन्हें यहां के राजा के रूप में पूजा जाता है। जैसे काशी के राजा बाबा विश्वनाथ हैं, वैसे ही उज्जैन के राजा भगवान महाकाल हैं।

पृथ्वी का केंद्र और नाभि स्थल

धार्मिक नगरी उज्जैन केवल अपने महाकाल मंदिर के लिए ही नहीं, बल्कि अपने गहरे खगोलीय और वैज्ञानिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। यह शहर प्राचीन काल से ही काल-गणना के लिए बेहद उपयोगी और महत्वपूर्ण माना जाता रहा है।

हम सभी ने बचपन से पढ़ा है कि हमारी पृथ्वी गोलाकार है, लेकिन जब भी बात इसके केंद्र बिंदु की आती है, तो लोग अक्सर सोच में पड़ जाते हैं। खगोल शास्त्रियों के मुताबिक, मध्य प्रदेश का यह प्राचीन शहर उज्जैन ही पृथ्वी का केंद्र बिंदु है।

वे मानते हैं कि यह धरती और आकाश के बीच में स्थित है। यहां तक कि शास्त्रों में भी उज्जैन को देश का नाभि स्थल बताया गया है। वराह पुराण में भी उज्जैन नगरी को शरीर का नाभि स्थल और बाबा महाकालेश्वर को इसका देवता कहा गया है।

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महादेव क्यों कहलाए महाकाल

खगोल शास्त्रियों के मुताबिक, भोलेनाथ की नगरी उज्जैन हमेशा से ही काल-गणना के लिए बेहद उपयोगी और महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। देश के नक्शे में यह शहर 23.9 डिग्री उत्तर अक्षांश और 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर स्थित है।

इतना ही नहीं, खुद ऋषि-मुनि भी यह मानते आए हैं कि उज्जैन शून्य रेखांश पर स्थित है। कर्क रेखा भी इस शहर के ऊपर से गुजरती है। इसके अलावा, उज्जैन ही वह शहर है, जहां कर्क रेखा और भूमध्य रेखा (Equator) एक-दूसरे को काटती हैं।

इस प्राचीन नगरी की इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रख कर, प्राचीन समय से ही ज्योतिषाचार्य यहीं से भारत की काल गणना करते आते हैं।

काल की गणना में इसके महत्व की वजह से ही यहां के आराध्य भगवान शिव को महाकाल के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है 'काल के भी काल'।

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महाकाल मंदिर की अनोखी विशेषताएं

उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर  का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व इसे अन्य ज्योतिर्लिंगों से अलग बनाता है।

दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग का रहस्य

यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है। यही वजह है कि तंत्र साधना के लिहाज से इसे काफी अहम माना जाता है।

इस मंदिर को लेकर एक मान्यता यह भी है कि यहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। साथ ही, पुराणों में भी ऐसा कहा गया है कि उज्जैन की स्थापना खुद ब्रह्माजी ने की थी। यह भी मान्यता है कि महाकाल के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

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विक्रम संवत कैलेंडर और उज्जैन का योगदान

काल गणना के अलावा, उज्जैन शहर अपने महान राजा विक्रमादित्य की वजह से भी काफी जाना जाता है। दरअसल, प्राचीनकाल में इस नगरी में राज करने वाले राजा विक्रमादित्य ने हिंदुओं के लिए एक ऐतिहासिक कैलेंडर विक्रम संवत का निर्माण कराया था, जो वर्तमान में एक प्रचलित हिन्दू पंचांग है।

इसी पंचांग के आधार पर भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भाग में व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। इतना ही नहीं, इस संवत को नेपाल में भी मान्यता मिली हुई है।

सिंहस्थ कुंभ

हिंदू धर्म में उज्जैन शहर का अपना अलग महत्व है। यह प्राचीन धार्मिक नगरी देश के 51 शक्तिपीठों और चार कुंभ स्थलों में से एक है। यहां हर 12 साल में पूर्ण कुंभ और हर 6 साल में अर्द्धकुंभ मेला लगता है।

उज्जैन में होने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ कहा जाता है। दरअसल, सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। जब सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है, तो उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है जिसे सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है।

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उज्जैन के प्रमुख मंदिर

क्षिप्रा नदी का तट: 

  • क्षिप्रा नदी के तट पर बसे होने की वजह से इस शहर को 'शिप्रा' के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी यहां की जीवनरेखा है और इसके घाटों पर होने वाली आरती देखने लायक होती है।

कालिदास की नगरी: 

  • यह प्राचीन नगरी संस्कृत के महान कवि कालिदास की नगरी के नाम से भी काफी प्रचलित है, जिनके कई अमर काव्य यहीं रचे गए।

प्राचीन नाम: 

  • वहीं, बात करें इसके प्राचीन नामों की, तो उज्जैन को पहले अवन्तिका, उज्जयनी और कनकश्रन्गा के नाम से भी जाना जाता था।

पर्यटन का प्रमुख स्थल: 

  • यह मध्य प्रदेश के पांचवें सबसे बड़े शहरों में से एक है, जो अपनी धार्मिक मान्यताओं के चलते दुनियाभर में पर्यटन का प्रमुख स्थल है।
  • महाकालेश्वर मंदिर के अलावा यहां गणेश मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, गोपाल मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और काल भैरव मंदिर भी काफी प्रसिद्ध हैं।

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